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प्रदूषण और घटता भूजलस्तर बना कृषि संकट का कारण

thediplomat_2014-06-01_06-56-12-386x251संदीप पई/प्रथमेश मुले

कोल्हापुर/दिल्ली। रमाकांत दसाई ने पांच साल पहले जब अपने खेत में बोरवेल गड़ाई थी, तो पानी 200 फुट पर मिला था। आज बोरवेल गड़ाने पर पानी 900 फुट की गहराई में मिलता है। दक्षिणी महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले में देसाई के गरगोटी गांव में यह आम स्थिति है। वहीं 682 किलोमीटर उत्तर में जलगांव जिले के भुसावल में राजेंद्र नाद ने ऊर्वरक के अधिक उपयोग पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “ऊर्वरकों के जरूरत से अधिक इस्तेमाल से भूजल प्रदूषित हो गया है।” ईए वाटर कंसल्टेंसी की एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि 2025 तक भारत में पानी का अभाव हो जाएगा। इस समस्या को देखते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि उनकी सरकार भूजल प्रबंधन पर 6,000 करोड़ रुपये खर्च करेगी।

विश्व बैंक के एक आंकड़े के मुताबिक, भारत में ताजा जल की सालाना उपलब्धता 761 अरब घन मीटर है, जो किसी भी देश से अधिक है। पानी की किल्लत इसलिए और भी गंभीर हो गई है कि इसमें से आधा से अधिक उद्योग, अवजल जैसे कारणों से प्रदूषित हो चुका है और उसके कारण डायरिया, टायफाइड तथा जॉन्डिस जैसे रोगों का प्रसार बढ़ रहा है। सरकार की एक जल नीति रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रति व्यक्ति सालाना जल उपलब्धता 1947 के 6,042 घन मीटर से 74 फीसदी घटकर 2011 में 1,545 घन मीटर रह गई है। भूजल का स्तर नौ राज्यों में खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है, यानी, ऐसे राज्यों में 90 फीसदी भूजल निकाले जा चुके हैं और उनके पुनर्भरण में काफी गिरावट आई है।

एक अन्य मुद्दा यह है कि देश में आधे से अधिक भूजल फ्लोराइड, नाइट्रेट, आर्सेनिक और लोहा से प्रदूषित हो चुका है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड प्रदूषित नदियां भूजल को प्रदूषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और 650 शहर इन नदियों के किनारे बसे हुए हैं। केंद्रीय भूजल बोर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक 276 जिले के भूजल में फ्लोराइड, 387 जिले के भूजल में नाइट्रेट और 86 जिले के भूजल में आर्सेनिक की मात्रा सीमा से अधिक हो गई है। प्रदूषित जल के कारण 2007 से 2011 के बीच डायरिया के एक करोड़ मामले, टायफाइड के 7.4 लाख मामले और जांडिस के 1.5 लाख मामले सामने आए।
( ये लेखक के निजी विचार हैं)

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