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बुरे वक्त में कोई नहीं आया काम, अकेले रहे गए आसाराम

एक वक्त था, जब आसाराम बापू के पास किसी भी चीज की कोई कमी नहीं थी। फिर वो ऐश्वर्य हो या फिर दौलत। आसाराम के भक्त की बात करें तो 4 करोड़ से ज्यादा भक्त है। जहां जाएं वहां कद्रदानों की भीड़। बिजनेसमैन हो या फिर पॉलिटिशियन कौन नहीं था आसाराम के साथ।

क्या सत्ता पक्ष क्या विपक्ष, क्या केन्द्र सरकार क्या राज्य सरकारें, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री तक आसाराम के मुरीद रहे। मगर, जब वक्त पलटा तो कोई काम न आया।

भक्तों में उम्मीद तब जगी थी, जब नरेंद्र मोदी सत्ता में आए थे। तब भक्तों को लगा था कि उन्हें बचा लेंगे जो आसाराम के भक्त रहे थे, मगर बेकार। भक्त कहा करते थे कि कांग्रेस ने साजिशन आसाराम बापू को फंसाया है, मोदी राज में निष्पक्ष जांच होगी, आसाराम जरूर छूट जाएंगे। बेल नहीं मिलेगी, ऐसा तो किसी ने सोचा भी नहीं था।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह, मोतीलाल वोरा, कमलनाथ…कितने नाम गिनाए जाएं सब आसाराम के मिलने-जुलने वाले, उनसे आशीर्वाद लेने वाले रहे।

मुख्यमंत्रियों में शिवराज सिंह चौहान, रमन सिंह, वसुंधरा राजे, नरेंद्र मोदी जैसे नेता रहे जिन्होंने आसाराम के सामने शीश झुकाए।

2008 में आसाराम के मुटेरा आश्रम में 2 बच्चों की हत्या का मामला सामने आने के बाद से राजनीतिक दलों ने पैंतरा बदलना शुरू कर दिया था। नेताओं ने दूरी बनानी शुरू कर दी। बीजेपी के नेता और साधु-संत की ओर से ये आवाज़ जरूर उठी कि एक संत को फंसाया जा रहा है, लेकिन नाबालिग से बलात्कार और एक के बाद एक सामने आते रहे दूसरे मामलों ने उनकी ज़ुबान भी बन्द कर दी।

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