नई दिल्ली। देश की राजधानी दिल्ली में हुए अग्निकांड में 43 जिंदगियां काल के गाल में समां गईं। इनमें से ज्यादातर की मौत दम घुटने से हुई है। आग लगने के बाद उसका धुआं कमरों में भरता चला गया जिससे लोगों का दम घुटने लगा। इसके बाद एक एक कर आग ने 43 ज़िंदगियां लील लीं। इस बीच एक ऐसी दर्दनाक कहानी का पता चला है, जिसे जानकर आप भी खुद को भावुक होने से रोक नहीं पाएंगे।
सुबह 4 बजे के आसपास जब दिल्लीवासी रजाई में दुबक कर सो रहे थे तो मुशर्रफ अली बिहार फोन मिला रहा था। वो अपने पड़ोस में रहने वाले दोस्त के सामने गिड़गिड़ा रहा था। वो मिन्नतें कर रहा था। वो कह रहा था कि मैं मर रहा हूं। मेरे मरने के बाद परिवार को देखने वाला कोई नहीं है। अब तुम ही सहारा हो। उनका ख़्याल रखना। मुशर्रफ अली सुबह 4 बजे के करीब पड़ोस के दोस्त को फोन करता है। वो कहता है। मोनू, भैया खत्म होने वाला हूं आज मैं। आग लगने वाली है यहां। तुम आ जाना करोल बाग। गुलजार से नंबर ले लेना।
मुशर्रफ कहा है कि अब कुछ नहीं हो सकता है। मेरे घर का ध्यान रखना। किसी को एक दम से मत बताना। पहले बड़ों को बताना (कराहते हुए या अल्लाह)। मेरे परिवार को लेने पहुंच जाना। तुझे छोड़कर और किसी पर भरोसा नहीं है। अब सांस भी नहीं ली जा रही है। पूरी बिल्डिंग में आग लगी दिख रही है भैया। ऊपर वाला जैसे करे। आखिरी टाइम है ये। अब तो गए भैया। तीसरे, चौथे माले तक आग लगी है। किसी से जिक्र मत करना ज्यादा।