आडवाणी सहित भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को लगा करारा झटका
नई दिल्ली। भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व उप-प्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी सहित पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं और विश्व हिंदू परिषद के वरिष्ठ नेताओं को सुप्रीम कोर्ट से करारा झटका लगा है।
कोर्ट ने आदेश दिया है कि बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, केंद्रीय मंत्री उमा भारती, कल्याण सिंह, विनय कटियार समेत भाजपा और विश्व हिन्दू परिषद के 13 नेताओं पर आपराधिक साजिश (धारा 120 बी)के तहत मुकदमा चलेगा।
सुप्रीम कोर्ट बुधवार को अपना फैसला देते हुए कहा कि मामले का ट्रायल जल्द पूरा किया जाय व रोजाना सुनवाई हो। हालांकि राजस्थान के राज्यपाल होने के कारण कल्याण सिंह पर यह मुकदमा नहीं चल पाएगा।
यह भी पढ़ें- बाबरी केस में आज सुप्रीम कोर्ट करेगा 13 नेताओं की किस्मत का फैसला
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस पीके घोष व आरएफ नारीमन की पीठ ने फैसले में कहा कि इस मामले में रायबरेली में चल रहे ट्रायल को लखनऊ सेशन कोर्ट में चल रहे ट्रायल के साथ जोड़ा जाए। इससे पहले 6 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।
बाबरी विध्वंस मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश
मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में 2010 में अपील की थी। हाईकोर्ट ने इन मामले में नेताओं को साजिश से बरी कर दिया था। अप्रैल में हुई सुनवाई में शीर्ष अदालत ने कहा था कि इस तरह के मामले में इंसाफ के लिए हमें दखल देना होगा।
यह देखते हुए तकनीकी कारणों से आडवाणी सहित इन नेताओं पर लगे आपराधिक षडयंत्र के आरोप हटाए गए थे, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था हम इसके लिए संविधान के अनुच्छेद- 142 (सुप्रीम कोर्ट को असाधारण अधिकार) का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। शीर्ष अदालत ने यह भी सवाल किया था कि इस मामले में एक ही षडयंत्र हैं, तो इसके लिए दो अलग-अलग ट्रायल क्यों?।
मालूम हो कि आडवाणी सहित अन्य नेताओं पर रायबरेली की अदालत में भीड़ को उकसाने का मामला चल रहा है जबकि लखनऊ की विशेष अदालत में कार सेवकों पर षडयंत्र और विवादित ढांचे को ढहाने का मुकदमा चल रहा है।
सीबीआई की ओर से दलील दी गई थी कि इन 13 नेताओं केखिलाफ आपराधिक षडयंत्र का मुकदमा चलना चाहिए। वहीं आडवाणी और जोशी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील केके वेणुगोपाल ने संयुक्त ट्रायल के विचार का विरोध किया था।
उनका कहना था कि सीआरपीसी के तहत ऐसा नहीं किया जा सकता। इस तरह के मामले में सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 का इस्तेमाल भी नहीं कर सकता क्योंकि यह आरोपियों के जीवन जीने और व्यक्तिगत आजादी के मौलिक अधिकार से जुड़ा मामला है।