नई दिल्ली| दिल्ली उच्च न्यायालय ने 16 दिसम्बर, 2012 सामूहिक दुष्कर्म मामले में नाबालिग आरोपी की रिहाई के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका पर फैसला सोमवार को सुरक्षित रख लिया। स्वामी ने अपनी याचिका में नाबालिग में सुधार पर संदेह जाते हुए उसे सुधार गृह में ही रखने का अनुरोध किया है। नाबालिग अपराधी को किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) के आदेश पर 20 दिसम्बर को रिहा किया जाना है, लेकिन केंद्र सरकार ने भी यह कहते हुए इस अवधि को बढ़ाने का अनुरोध किया है कि उसकी रिहाई के बाद जो कुछ आवश्यक कदम उठाए जाने हैं, वे अभी पूरे नहीं हुए हैं। केंद्र सरकार ने तब तक किशोर अपराधी को सुधार गृह में ही रखने का अनुरोध किया है, जब तक प्रशासन उसकी मानसिक स्थिति तथा रिहाई के बाद की कुछ योजनाओं पर काम पूरे नहीं कर लेता।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) संजय जैन ने केंद्र सरकार की ओर से मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. रोहिणी और न्यायमूर्ति जयंत नाथ की खंडपीठ को बताया कि रिहाई के बाद की कई अनिवार्य जरूरतें अभी पूरी नहीं हुई हैं, इसलिए उसे सुधार गृह में ही रखने की अवधि बढ़ाने की जरूरत है। केंद्र सरकार की ओर से दलीलें सुनने के बाद न्यायालय ने इस मामले में आदेश सुरक्षित रख लिया और कहा, “हम इस मामले पर विचार करेंगे और बाद में फैसला सुनाएंगे।” गौरतलब है कि 16 दिसम्बर 2012 को पारा चिकित्सा की एक छात्रा के साथ बर्बर सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के समय किशोर की उम्र 18 साल से कम थी और इसलिए उसके खिलाफ किशोर न्याय अधिनियम के तहत मामला चलाया गया। उसे तीन साल के लिए बाल सुधार गृह में भेज दिया गया था। न्यायालय को इससे पहले एक मुहरबंद लिफाफे में खुफिया ब्यूरो (आईबी) की रिपोर्ट मिली थी, जिसमें नाबालिग आरोपी के चरमपंथ की ओर झुकाव के बारे में बताया गया था। आईबी ने बाल सुधार गृह में नाबालिग के दिल्ली उच्च न्यायालय विस्फोट के सिलसिले में पकड़े गए एक अन्य नाबालिग के संपर्क में आने और इस दौरान उसका झुकाव चरमपंथ की ओर बढ़ने का अंदेशा जताया था।