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हुरियारनो ने नन्दगाँव के हुरियारों पर लट्ठ चलाकर मनाई होली

होली 13 मार्च को, बरसाने की लट्ठमार होली, लड्डू होली, नन्दगाँव के हुरियारों, बरसाने की हुरियारनोबरसाने की लट्ठमार होली

मथुरा के बरसाने में जमकर खेली गई लट्ठमार होली

मथुरा। समूचे देश में भले ही होली 13 मार्च को खेलेगा, लेकिन ब्रज मंडल के वातावरण में अभी से अबीर और गुलाल चारों ओर उड़ रहा है।  पूरा बरसाना “फाग खेलन आए हैं नटवर नंद किशोर” के गीतों से गूंज रहा है। महीने भर पहले से चल रही तैयारियां बरसाने में खेली जाने वाली लठमार होली की रविवार को लड्डू होली के दिन पूरी हो गई थीं।

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बरसाने की लट्ठमार होली

आज सोमवार को नंदगांव के ग्वाल-बाल रंगबिरंगे कपड़े पहनकर अपने सिर पर पगड़ी बांधे और हाथों में ढाल लिए बरसाना रवाना हो गए हैं।  ढाल इसलिए ली है, बरसाने की हुरियारिनों के लठ की मार से खुद को जो बचाना है।

द्वारकेश बर्मन की रिपोर्ट

यह हुरियारे सबसे पहले पिली पोखर पहुचे यहां पहुच कर विधिवत पूजा अर्चना कर इन्होंने अपने सर पर पग बांधकर हाथों में ढाल संभाल लीं।यह हुरियारे यानी नन्दगाँव से आये लोग आज के दिन देवर यानी राधा जी के देवर का स्वरुप और भगवान कृष्ण के सखा यानी ग्वालबाल माने जाते हैं।

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उधर, बरसाने की हुरियारने जो की राधिका का स्वरुप मानी जाती है वह भी सोलह श्रृंगार कर अपने ग्वाल-बालों की बाट जोह चुकी हैं। उन्होंने भी घरों से पुरानी लाठियां निकालकर उन्हें सरसों के तेल से चमका लिया है। यह बरसाने की भाभियाँ अपनी लाठियों को पिछले माह से ही तेल पिला रही है।

यह तैयारी ग्वालों के छेड़छाड़ करने पर उन्हें सबक सिखाने के लिए है।दरअसल होली का पर्व हँसी ठिठोली और छेड़खानी से भरा जो होता है।द्वापर युग यानी कृष्ण काल से चली आ रही बरसों पिरानी इस परम्परा का निर्वाहन आज बजी यहां ब्रज छेत्र में किया जा रहा है।

कल मंगलवार को यही क्रम नंदगांव में दोहराया जाएगा, जब बरसाने के देवर यानि ग्वाल ढाल लेकर नंदगांव पहुंचेंगे और नंदगांव की गोपियां लठमार कर उनका स्वागत करेंगी।

क्या है यह लठमार होली:-

दरअसल, नवमी के दिन राधारानी के बुलावे पर नंदगांव के हुरियार जहां बरसाना में होली खेलने जाते हैं, वहीं बरसाना के हुरियार नंदगांव की हुरियारिनों से होली खेलने दशमी के दिन नंदगांव आते हैं।तब नंद चौक पर होली के रसिया गायन के बीच धमाधम लठमार होली होती है।

नंदगांव की टोलियां जब पिचकारियां लिए बरसाना पहुंचती हैं तो उन पर बरसाने की महिलाएं खूब लाठियां बरसाती हैं।पुरुषों को इन लाठियों से बचना होता है और साथ ही महिलाओं को रंगों से भिगोना होता है।

नंदगांव और बरसाने के लोगों का विश्वास है कि होली का लाठियों से किसी को चोट नहीं लगती है। अगर चोट लगती भी है तो लोग घाव पर मिट्टी  जिसे ब्रजरज माना जाता है उसे मलकर फिर शुरू हो जाते हैं। इस दौरान आगंतुकों के लीये भांग और ठंडाई का भी भरपूर इंतजाम किया जाता है।

कैसे दिया जाता है लठामार होली का निमंत्रण:-

खास बात यह है कि ग्वाले बरसाने या नंदगांव में यूं ही होली खेलने नहीं जाते।बकायदा उन्हें होली खेलने के लिए आने का निमंत्रण दिया जाता है।

राधारानी की सखी के रूप में बरसाना की हुरियारिन परम्परागत तरीके से नंदगांव में कान्हा से होली खेलने के लिए हांडी में गुलाल, इत्र, मठरी, पुआ आदि मिठाई लेकर निमंत्रण देने नंदभवन पहुंचती हैं। वहां उनका होली का निमंत्रण स्वीकार करते हुए समाज के लोगों को जानकारी दी जाती है। नंदभवन पहुंची सखियों से होली का निमंत्रण मिलने पर समाज के हुरियारे उनका जोरदार स्वागत करते हैं.

कल हुई थी लडुआ होली:-

लठमार होली से पहले शाम को  बरसाने में लडुआ (लड्डू) होली होती है। मंदिर परिसर में जमा लोग रसिया गा-गा कर एक-दूसरे पर लड्डू मारते हैं. दरअसल, होली के निमंत्रण की स्वीकारोक्ति के लिए नंदगांव से पंडा आता है।

जैसे ही ये सूचना यहां के लोगों को लगती है, सभी मंदिर में जुटकर नाचगाना करते हैं। छतों पर खड़े श्रद्धालु लड्डुओं की बरसात करने लगते है। इन लड्डुओं का प्रसाद पाने के लिए देश-विदेश से आए लोग जुटते हैं।

सब जग होली या जग होरा:-

रंगभरनी एकादशी के दिन यानी 8 मार्च से वृंदावन के ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर में भी रंगों की होली होने लगती है।

इस मौके पर ठाकुर जी साल में केवल एक बार मंदिर परिसर में बाहर पधारकर भक्तों को दर्शन देते हैं तथा रंगों की होली का आनंद लेते हैं. इसी दिन वृंदावन के सभी बाजारों में से होकर ठा. राधावल्लभ लाल के चल विग्रह का हाथी पर डोला पारंपरिक रूप में निकाला जाता है और मथुरा में जन्मस्थान के लीलामंच एवं प्रांगण में होली के विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते है।

यहां होती है छड़ी मार होली:-

इसके अगले दिन यानी 9 मार्च को गोकुलवासी छड़ी मार होली खेलेंगे। 13 मार्च को फाल्गुन उत्तरा नक्षत्र की उपस्थिति में मथुरा के ठा. द्वारिकाधीश मंदिर से ठाकुरजी का डोला निकाला जाएगा। यह शहर के सभी प्रमुख बाजारों में होता हुआ पुन: वहीं पहुंचकर यात्रा पूर्ण करेगा.

दाऊजी मन्दिर के रिसीवर रामकटोर पाण्डेय ने बताया, ‘चैत्र कृष्ण पक्ष द्वितीया के दिन मनाया जाने वाला दाऊजी का हुरंगा इस वर्ष 14 मार्च को मनाया जाएगा। इसी दिन कोसीकलां के निकट जब गांव में हुरंगा मनाया जाएगा और अगले दिन उसके निकटवर्ती बठैन गांव में मनाया जाएगा।

धधकते अंगारों से गुजरेगा पांडा

छाता तहसील के  ‘फालैन’ गांव में होलिका दहन के समय पंडा होली की आग से होकर गुजरता है और इस पंडे को कोई नुकसान नहीं होता।

चरखुला नृत्य:-

रंग से अगले दिन यानी 14 मार्च को राधारानी के ननिहाल गांव मुखराई में विश्व प्रसिद्ध चरखुला नृत्य का आयोजन किया जाता है। चरखुला नृत्य में गांव की महिलाएं करीब 50 किलो वजनी रथ के पहिएनुमा चक्र, जिस पर सैकड़ों दीपक जलते रहते हैं, अपने सिर पर रखकर नाचती हैं।

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