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क्या आप भी जानते हैं लेटे हनुमान मंदिर की सच्ची कहानी

लखनऊ|   हनुमानजी यानी चमत्‍कार का दूसरा नाम। पौराणिक काल से बजरंगबली का नाम चमत्‍कारों से जुड़ा है। चाहे फिर सीने में बैठे राम-जानकी के दर्शन करवाना हो या फिर लक्ष्‍मणजी को जीवित करने के लिए संजीवनी बूटी लाना हो। न सिर्फ पौराणिक काल बल्कि कलियुग  भी हनुमानजी के चमत्‍कारों से सजा है। हमारे देश में जगह-जगह पर हनुमानजी के प्राचीन चमत्‍कारिक मंदिर हैं। इन्‍हीं में से एक है प्रयागराज में संगम किनारे लेटे हनुमान का मंदिर।

अपने आप में अनोखे इस मंदिर में हनुमानजी की प्रतिमा खड़ी हुई नहीं बल्कि लेटी हुई अवस्‍था में विराजमान है। आखिर क्‍या वजह है कि यहां हनुमानजी लेटी हुई अवस्‍था में हैं। संगम के किनारे स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि संगम स्‍नान के बाद यहां दर्शन नहीं किए तो स्‍नान अधूरा माना जाता है।

ऐसी है यहां की मान्यता
इसलिए यहां लेटे हनुमानजी
 यहां के बारे में ऐसा भी कहा जाता है कि लंका पर जीत हासिल करने के बाद जब हनुमानजी लौट रहे थे तो रास्‍ते में उन्‍हें थकान महसूस होने लगी। तो सीता माता के कहने पर वह यहां संगम के तट पर लेट गए। इसी को ध्‍यान में रखते हुए यहां लेटे हनुमानजी का मंदिर बन गया।
मूर्ति को हिला नहीं सके मुगल सैनिक
आपको बता दे कि  यह मंदिर कम से कम 600-700 वर्ष पुराना  है। प्राचीन काल में मुगल शासकों के आदेश पर हिंदू मंदिरों को तोड़ने का क्रम जारी था, लेकिन यहां पर मुगल सैनिक हनुमानजी की प्रतिमा को हिला भी न सके। वे जैसे-जैसे प्रतिमा को उठाने का प्रयास करते वह प्रतिमा वैसे-वैसे और अधिक धरती में बैठी जा रही थी। यही वजह है कि यह प्रतिमा धरातल से इतनी नीचे बनी हुई है।

 

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