खाना हर इंसान की बेसिक जरूरत होती है। बिना खाने के कोई भी इंसान जिन्दा नहीं रह सकता है। आज हम आपको एक लड़की के बारे में बताने जा रहे है, वो खाना तो बनाती है, लेकिन खाती है। दरअसल, इस लड़की के पास पेट नहीं है।जी हां, अपने एकदम सही सुना है,इसके पास पेट नहीं है, फिर भी दूसरों के लिए खाना बनाती है।बता दे कि इस लड़की का नाम नताशा दिद्दी है और इंस्टाग्राम पर इसका ‘द गटलेस फूडी’ नाम से एक अकाउंट भी है। इसी के जरिये वो अपने खाने की फोटोज़ लोगो के साथ शेयर करती है। इसके इलावा नताशा के करीब 76 हजार फोल्लोवेर्स है। इंस्टाग्राम फीड देखेंगे तो खाने के अलावा और कुछ दिखाई ही नहीं देगा। खाना भी ऐसा कि देखते ही जी ललचा जाए।बात साल 2010 की है जब नताशा ने अपने बाएं कंधे में एक चुभता हुआ सा दर्द महसूस किया। जैसे ही वो कुछ खातीं, दर्द और बढ़ जाता। चूंकि दर्द कंधे में था, वो आर्थोपेडिशियन (हड्डी के डॉक्टर) के पास गईं।एक्स-रे और दूसरे कई टेस्ट के बाद उनके कंधे की दो बार सर्जरी हुई और उन्हें छह महीने कड़ा वर्कआउट करने को कहा गया। बावजूद इसके, नताशा की हालत में रत्ती भर भी सुधार नहीं हुआ। वो दर्द से तड़पतीं और पेनकिलर खाती रहतीं। उनकी हालत सुधरने के बजाय और बिगड़ती चली गई। कभी 83 किलो की रहीं नताशा का वज़न अब घटकर 38 किलो हो चुका था।
नताशा की मुलाकात पुणे के केईएम हॉस्पिटल के एक डॉक्टर एसएस भालेराव से हुई। डॉक्टर ने नताशा की बीमारी झट से पकड़ ली।डॉक्टर ने बताया कि नताशा के पेट में अल्सर है। जिससे खून बह रहा है। इसी वजह से दर्द हो रहा था। नताशा के पेट में 2 अल्सर थे। वह दर्द की वजह से इतने पेनकिलर ले चुकी थी कि पेट ने काम करना बंद कर दिया था।
डॉक्टर के मुताबिक, नताशा के पेट में अल्सर उस हिस्से में था जो डायफ्राम से लगा था। डायफ्राम और कंधे की एक नर्व जुड़ी होती है। और इसी वजह से पेट का दर्द कंधे तक पहुंचता था। मेडिकल साइंस की भाषा में इसे ‘रेफर्ड पेन’ कहते हैं।
अल्सर की वजह से नताशा की हालत इतनी खराब हो गई कि उसका पेट ही निकाल दिया गया। इसमें पेट के उस हिस्से को निकाला जाता है जिसमें खाना पचता है। इस ऑपरेशन के बाद नताशा की पूरी जिंदगी बदल गई। वो अब आम इंसानों की तरह खाना नहीं खा सकती थी। वो ज्यादातर लिक्विड ही लेती है।
नताशा कहती हैं, “पहले तो मैं इस सच को कबूल ही नहीं कर पा रही थी लेकिन असलियत से कब तक दूर भागती? असलियत की ठोकर लगी तो खूब सोचा और पाया कि मेरे पास दो रास्ते हैं। या तो मैं नाउम्मीदी में डूबकर अपना शौक़ छोड़ दूं या फिर नए सिरे से जीना शुरू करूं। मैंने दूसरा रास्ता चुना।”
इन सबके बाद भी नताशा ने हार नहीं मानी। जिंदगी की शुरूआत नए सिरे से की। अब नताशाखुद को ‘द गटलेस फूडी’ कहती है। इसका मतलब ये है कि जिसे खाने पीने का शौक हो लेकिन जिसका पेट ना हो। आज नताशा कई होटलों में कंसल्टेंट का काम कर रही हैं। इन्होंने FOURSOME नाम की एक किताब भी लिखी है। जिंदगी से हार मान जाने वालों के लिए इनकी कहानी किसी मिसाल से कम नहीं।