सिद्धार्थ मल्होत्रा और कियारा आडवाणी स्टारर फिल्म शेरशाह रिलीज हो गई है। कारगिल के हीरो शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा पर आधारित इस फिल्म में कैप्टन विक्रम के बचपन से लेकर उनके बड़े होने और उनके कारगिल की जंग में लड़ने तक की पूरी कहानी को दर्शाया गया है। इस फिल्म में उस सीन को भी दिखाया गया है। जब एक पाकिस्तानी ने शेरशाह से कहा था- माधुरी दीक्षित हमें दे दे। जिस पर कैप्टन विक्रम ने उस पाकिस्तानी सैनिक को बहुत ही अलग अंदाज में जवाब दिया था।
‘शेरशाह’ के एक सीन के मुताबिक कैप्टन विक्रम बत्रा अपनी टीम के साथ प्वाइंट 4875 के लिए जंग लड़ रहे थे, उस वक्त एक पाकिस्तानी ने लड़ाई के दौरान जारी गोलाबारी के बीच उनसे कहा था- ‘अबे माधुरी दीक्षित हमें दे दे, अल्लाह की कसम हम सब यहां से चले जाएंगे।’ पाकिस्तानी की बात सुनकर विक्रम बत्रा ने कहा था- ‘माधुरी दीक्षित तो दूसरे टाइप की शूटिंग में बिजी हैं, फिलहाल इससे काम चला लो।’ इसके बाद विक्रम बत्रा ने अपनी टीम के साथ तेजी से हमला करते हुए पाकिस्तानियों को सबक सिखाया था। वहीं जिस पाकिस्तानी ने माधुरी की बात कही थी, उससे गोली मारने से पहले विक्रम बत्रा ने कहा था- ‘ले बेटा माधुरी दीक्षित का तोहफा।’
शेरशाह ने किया लोगों को निराश
अगर फिल्म शेरशाह की बात करे तो इसकी सबसे कमजोर कड़ी विक्रम बत्रा के किरदार में सिद्धार्थ मल्होत्रा की कास्टिंग है। सिद्धार्थ की मात्र भाषा फौजी जैसी नहीं है और न ही उनको फौजी जैसी ट्रेनिंग सीखाई गई है। कारगिल युद्ध पर इससे पहले भी बहुत सी फिल्मे बनी है लेकिन सभी मूवी अपना जादू दिखाने में विफल ही रही हैं और इसका सबसे बड़ा कारण यही रहा है कि उसमें एक फौजी या उसके परिवार की मानवीय संवेदनाएं समाने लाने में चूक जाती रही हैं। फिल्म के स्टार सिद्धार्थ मल्होत्रा की बात करे तो उनके साथ सबसे बड़ी समस्या यही है कि वो किरदार को समझने और उसे पढ़ने की कोशिश नहीं करते है।
निर्देशक विष्णु वर्धन ने फिल्म की पटकथा को संतुलित करने की अपनी तरफ से कोई कोशिश भी नहीं की है। एक वॉर फिल्म हमेशा एक समूह की वीरता से सांसें पाती है। फिल्म शुरू में हालांकि दिखाती है कि विक्रम अपने वरिष्ठों और कनिष्ठों में समान रूप से लोकप्रिय है लेकिन अपने जोड़ीदार के साथ आखिरी पराक्रम के लिए चुने जाने के ठीक पहले वाला सीन बहुत नकली लगता है। फिल्म के सहायक कलाकारों के किरदारों को ठीक से न पनपने देना फिल्म की चौथी कमजोर कड़ी है। साहिल वैद को तो फिर भी थोड़ा बहुत फुटेज फिल्म में मिला भी है लेकिन शिव पंडित, निकितिन धीर जैसे कलाकारों के साथ निर्देशक न्याय नहीं कर सके। शताफ फिगार ने अपनी तरफ से किरदार की कद्र करने की पूरी कोशिश जरूर की है।