फिल्म ‘बेलबॉटम’ की कहानी समझने से पहले उन दिनों को समझना भी जरूरी है जब देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं। इंदिरा गांधी ने ही इंटेलिजेंस ब्यूरो यानी आईबी को दो हिस्सों में बांटकर आईबी को घरेलू मामलों की जिम्मेदारी दी और इसके दूसरे हिस्से को रॉ यान रिसर्च एंड एनालिसिस विंग में तब्दील कर दिया। फिल्म ‘बेलबॉटम’ में एक शख्स लगातार इंदिरा गांधी के साथ दिखता है जिसे रॉ एजेंट बेलबॉटम का बॉस ए रॉ के संस्थापक के रूप में परिचित कराता है। रॉ के फाउंडर रहे आर एन काव 1984 में इंदिरा गांधी के सुरक्षा सलाहकार थे। फिल्म दिखाती है कैसे इंदिरा गांधी ने एक जोशीले रॉ एजेंट पर दांव लगाया? कैसे तमाम अफसरों और मंत्रियों के विरोध के बावजूद इस एजेंट की बात सुनी? और, कैसे देश ने पहली बार आतंकवादियों से वार्ता करने की पाकिस्तान की मांग ठुकराई। इसी कहानी के बीच चलती है एक विमान अपहरण की कहानी, जिसे अपहर्ताओं से मुक्त कराने की जिम्मेदारी रॉ एजेंट बेलबॉटम उठाता है।
फिल्म ‘बेलबॉटम’ की कहानी सच्ची घटनाओं से प्रेरित है। इसमें निर्देशक और उनके लेखक ने अपनी तरफ से भी तमाम कल्पनाएं जोड़ी हैं। इसी के चलते मामला कहीं कहीं पर पूरा फिल्मी भी हो जाता है। यूपीएससी की परीक्षा देते देते उम्र गुजार चुके बेटे अंशुल और उसकी मां वाला ट्रैक फिल्म में काफी लंबा है और फिल्म की रफ्तार को भी धीमी करता है। और, देश के लिए लड़ने निकले रॉ के एजेंट के सारे किए धरे को सिर्फ मां की मौत का बदला जैसा दिखाने से भी फिल्म थोड़ी कमजोर होती है। लेकिन, अक्षय कुमार ने एक रॉ एजेंट के तौर पर अच्छा काम कर दिखाया है और अपनी पिछली फिल्म ‘लक्ष्मी’ में की गई ओवरएक्टिंग का दाग भी धो डाला है। वाणी कपूर के साथ उनकी जोड़ी जमती है। एक्शन में तो वह माहिर हैं ही, फिल्म के कुछ दृश्यों में वह दर्शकों को अपने साथ भावनाओं में भी बहा ले जाने में सफल रहते हैं, खासतौर से मां को एयरपोर्ट पर विदाई देते समय का दृश्य।
इस फिल्म से हिंदी फिल्मों के क्रेडिट्स हिंदी में भी लिखे जाने की पंरपरा पटरी पर आती दिख रही है। शाहरुख खान की फिल्मों की तरह अब अक्षय की फिल्मों में भी हीरोइनों के नाम उनके नाम से पहले आने लगे हैं। फिल्म ‘बेलबॉटम’ की तीन हीरोइनें हैं और तीनों अलग अलग अपना काम करके निकल जाती हैं। इस फिल्म को देखकर फिर कहा जा सकता है कि हिंदी सिनेमा में नायकों की पत्नियों के किरदारों पर और काम होने की जरूरत है। फिल्म ‘भुज’ में जो गलती हुई, वही गलती यहां फिल्म ‘बेलबॉटम’ में भी दोहराई गई है। फिल्म की कहानी में रॉ एजेंट की पत्नी के किरदार में दिखी वाणी कपूर का किरदार सिर्फ खूबसूरत दिखने के अलावा और कुछ नहीं है। उनसे बेहतर किरदार बाकी दोनों हीरोइनों लारा दत्ता और हुमा कुरैशी को मिले हैं। इंदिरा गांधी के रोल में लारा दत्ता ने कमाल का अभिनय किया है और इस किरदार के लिए उन्हें अगले साल तमाम पुरस्कार मिलने भी पक्के हैं। फिल्म में आदिल हुसैन और अनिरुद्ध दवे ने भी अपने अपने किरदारों के साथ पूरा न्याय किया है। आदिल के हिस्से में फिल्म के कुछ चुटीले संवाद भी आए हैं।
बलिया, उत्तर प्रदेश से जाकर कोलकाता में बसे तिवारी परिवार में जन्मे और पले बढ़े रंजीत तिवारी इससे पहले फरहान अख्तर को लेकर फिल्म ‘लखनऊ सेंट्रल’ बना चुके हैं। उनके लिए ये फिल्म इसलिए भी महत्वपूर्ण थी कि उनको फिल्म निर्देशन की बारीकियां सिखाने वाले निखिल आडवाणी ने उन पर इस फिल्म के लिए विश्वास किया।
फिल्म ‘बेलबॉटम’ की सबसे कमजोर कड़ी फिल्म का संगीत है हालांकि निर्माता वाशू भगनानी की फिल्मों का म्यूजिक किसी समय उनकी फिल्म की यूएसपी हुआ करता था। लेकिन, संगीत की ये कमी सिनेमैटोग्राफर राजीव रवि और वीडियो एडीटर चंदन अरोड़ा ने खटकने नहीं दी है। दोनों का काम इसलिए भी बेहतरीन है क्योंकि ये फिल्म कोरोना काल के दौरान ही शूट हुई है। फिल्म में दिखने वाले सीन देखते समय अगर आप ये सोचें कि ये सारा काम कोरोना महामारी के उस दौर में हुआ है जब लोग एक दूसरे के आमने सामने आने से भी कतराते थे, तो समझ आता है कि फिल्म कितनी मेहनत से बनी है। फिल्म को बड़े परदे पर रिलीज करके इसके निर्माताओं ने इसके साथ सही न्याय किया है क्योंकि इस फिल्म का असली मजा बड़े परदे पर ही आने वाला है।