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रूस-यूक्रेन युद्धः अपने साथियों के लिए खाना लाने गया था नवीन शेखरप्पा, दोस्तों ने दी जानकारी

लखनऊः यूक्रेन के खारकीव में कर्नाटक के जिस युवक नवीन शेखरप्पा की रूसी गोलाबारी में मौत हुई है, वह बंकर से बाहर निकल कर खाना लाने गया था। यह जानकारी नवीन के साथ बंकर में रह रहे हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के धनोटू निवासी अंकुर चंदेल और लोअर बैहली की रहने वाली छात्रा रिशिता ने अपने परिवार वालों को दी।

अंकुर ने बताया कि बंकर में 15 घंटों से भूखे-प्यासे थे। जब भूख बर्दाश्त नहीं हुई तो कर्नाटक का रहने वाला नवीन खाना लाने के लिए सुबह 10 बजे बंकर से बाहर निकल गया और रूस की गोलाबारी का शिकार हो गया। अंकुर ने बताया कि वह और रिशिता नवीन के साथ ही बंकर में रह रहे थे।
नवीन की मौत से बंकर में रहे रहे उसके 250 साथी सदमे में हैं। उनकी लोकेशन ट्रेस न हो, इसलिए यूनिवर्सिटी ने उन्हें मोबाइल बंद करने के लिए कहा है। अंकुर ने अपने पिता को यह सब जानकारी देते हुए बताया कि बंकर में सोने के लिए न कंबल हैं, न खाने का सामान और न टायलेट में पानी है।

अंकुर ने बताया कि वह खारकीव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में प्रथम वर्ष का छात्र है। पिछले दो दिनों में खारकीव पर रूस के हमले लगातार बढ़ते जा रहे हैं, जिस कारण अब वहां फंसे छात्र बंकर में भी सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं, लेकिन उन्हें वहां से निकालने के लिए भारत सरकार कोई कदम नहीं उठा रही है।

उन्हें केवल एडवाइजरी भेजी जा रही है कि जहां हैं, वहीं रहो, लेकिन बंकर में वैसे ही भूखे-प्यासे मर जाएंगे। अब स्थिति बेहद भयावह हो गई है। अंकुर ने बताया कि खारकीव में करीब 5000 भारतीय छात्र हैं। उसने और उसके साथी छात्रों ने भारत सरकार से गुहार लगाई है कि उन्हें जल्द यहां से निकालने का इंतजाम किया जाए।
परिजनों का आरोप केंद्र और राज्य सरकार नहीं कर रही सहयोग
अंकुर चंदेल के पिता नरेश चंदेल ने बताया खारकीव में एक छात्र की मौत होने से वह भी बेटे की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं, लेकिन न केंद्र और न राज्य सरकार कोई सहयोग कर रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री के नंबर पर व्हाट्सएप मैसेज और कई बार कॉल किए, लेकिन न तो उनका मैसेज पढ़ा गया है और न फोन सुना।

वह बुधवार को मंडी शिवरात्रि मेले के उद्घाटन पर पहुंच रहे मुख्यमंत्री से मिलकर उन्हें अपनी परेशानी बताएंगे। उन्होंने अन्य अभिभावकों से भी मंडी पहुंचने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि बच्चों के मरने के बाद सांत्वना नहीं, उनको निकालने के लिए मदद चाहिए।

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