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मध्यप्रदेशः सरकार द्वारा करोड़ो रुपये खर्च करने के बावजूद भी 254 बाघों की अलग-अलग कारणों से हुई मौत

भोपालः बाघों को बचाने के लिए सरकार की तरफ से कई योजानाएं चलाई जाती रही हैं। जिनके माध्यम से उनकी सुरक्षा और देखभाल का खासा खयाल रखा जाता है। लेकिन बाघों का घर कहे जाने वाले मध्य प्रदेश में बीते एक दशक से सरकार द्वारा करोड़ो रुपये खर्च करने के बावजूद भी 254 बाघों की अलग-अलग कारणों से मौत हो चुकी हैं। 2012 से 2020 तक 8 सालों में जहां प्रदेश में 202 बाघों की मौत हुई। तो वहीं, महज 2021 से अब तक 15 महीनों में ही 52 से ज्यादा बाघ दम तोड़ चुके हैं।

सबसे ज्यादा बाघों वाला राज्य है MP
2010 में जब बाघों की गणना की गई थी तो देशभर में 1706 बाघ थे, जिसके बाद 2020 तक बाघों की संख्या दोगुनी करने का लक्ष्य रखा गया था। 2018 की गणना के अनुसार वर्तमान में देश में 2967 बाघ हैं, जिसमें से 526 बाघ अकेले मध्य प्रदेश में हैं। लेकिन सबसे ज्यादा बाघों वाले राज्य में ही सबसे ज्यादा बाघों की जान भी जा रही है। बाघों की मौत के पीछे आपसी संघर्ष, बीमारी और शिकार जैसी वजहें भी शामिल हैं। अलग-अलग कारणों के चलते ही प्रदेश में एक दशक के भीतर ही 254 से ज्यादा बाघों की मौत हुई है। बाघों की मौत का मुद्दा बीते साल विधानसभा में भी उठ चुका है।

बाघों की सुरक्षा के लिए करोड़ों का बजट

मध्य प्रदेश सरकार हर साल बाघों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए करोड़ों रुपये खर्च करती हैं, लेकिन उसके बावजूद प्रदेश में बाघ दम तोड़ रहे हैं। राज्य सरकार ने 2018-19 में बाघों के संरक्षण, सुरक्षा और निगरानी में 283 करोड़ रुपये, 2019-20 में 220 करोड़ और 2020-21 और 2021-22 में क्रमशः 264 करोड़ और 128 करोड़ रुपये खर्च किए हैं।

बिना आईडी के हो रही निगरानी
राष्ट्रीय पशु की सुरक्षा में करोड़ों का बजट व्यय करने के बाद भी 2017 के बाद प्रदेश में बाघों की आईडी नहीं बनी है। आईडी के जरिए ही वन विभाग बाघों की निगरानी करता है, लेकिन 2017 के बाद प्रदेश के कई टाइगर रिजर्व में बाघों की आईडी बनाने का काम बंद हैं। हाल ही में जारी विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार अकेले बांधवगढ़ में 50 से ज्यादा बाघ बिना आईडी के विचरण कर रहे हैं।

टाइगर रिजर्व में क्षमता से अधिक बाघ 
मध्य प्रदेश के बाघ संरक्षित क्षेत्रों में क्षमता से ज्यादा बाघों का होना भी मौतों का एक बड़ा कारण है। बाघों के आपसी संघर्ष और जंगल से रिहायशी इलाकों में भटकने से रोकने के लिए बाघ कॉरिडोर बनाने की जरूरत है। प्रदेश के टाइगर रिजर्व में वर्तमान में क्षमता से डेढ़ से दो गुना तक बाघ हैं। बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व की क्षमता 75 बाघ की है, लेकिन यहां 124 बाघ (2018 की गणना) हैं। कान्हा टाइगर रिजर्व की क्षमता 70 के मुकाबले यहां 108 बाघ हैं। यही स्थिति पेंच (82) और सतपुड़ा टाइगर रिजर्व (50) की है। सिर्फ संजय दुबरी टाइगर रिजर्व सीधी ही ऐसा है, जहां महज छह बाघ हैं।

मध्य प्रदेश में है 7 टाइगर प्रोजेक्ट
टाइगर स्टेट एमपी में वर्तमान में 7 टाइगर प्रोजेक्ट हैं, जिनमें कान्हा किसली, पेंच राष्ट्रीय उद्यान, पन्ना राष्ट्रीय उद्यान, बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान, सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान, संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान, रातापानी अभ्यारण्य शामिल हैं। प्रदेश में सबसे ज्यादा बाघ कान्हा किसली राष्ट्रीय उद्यान में हैं वहीं बंगाल टाइगर की जनसंख्या घनत्व के मामले में बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व दुनिया में पहले स्थान पर है।

सरबड़ी संख्या में आते हैं पर्यटक
मध्य प्रदेश के टाइगर रिजर्व में सैलानियों को आसानी से बाघों का दीदार हो जाता है, जिसके चलते यहां देश के साथ ही विदेश से भी पर्यटक बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। टाइगर रिजर्व से हर साल सरकार को अच्छी खासी आमदनी होती है।
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