प्रज्ज्वल वर्मा, बाराबंकी:- मैं खारकीव में था। इंडियन एम्बेसी ने बहुत मदद की। जनरल वीके सिंह सर लगातार संपर्क में रहे। हम लोगों को पहले पोलैंड में होटल में ठहराया गया। फिर 03 मार्च को फ्लाइट से वापस आए। हमारा एक भी रूपया खर्च नहीं हुआ।
आकांक्षा चौरसिया, लखनऊ:- मैं वेनेसा में थी। वहां सीरियस इशू नहीं थे। शुरुआत में थोड़ी असुविधा हुई डर भी लगा। लेकिन दूतावास के अधिकारियों से बातचीत होती थी। मैं रोमानिया बॉर्डर पहुंची, वहां सब लोग मौजूद थे। भोजन, होटल, कपड़े सब सरकार ने दिया। मुंबई लाया गया फिर योगी जी ने घर तक पहुँचाया।
आयुष्मान, कानपुर देहात:- सौभाग्यशाली हूं कि मोदी और योगी जी हमारी चिंता करते हैं। मैंने एम्बेसी की एडवाइजरी को गंभीरता से लिया और 23 फरवरी को ही लौट आया। तब अंतिम फ्लाइट थी। फिर तो सब बंद हो गया। युद्ध शुरू हो गया।
चाहत कपूर, कानपुर:- देश से 6000 किलोमीटर दूर थे, डर कग रहा था। सब लोग परेशान थे। लेकिन प्रधानमंत्री जी के प्रयासों से हम लौट सके। पीएम को हमारा धन्यवाद। मैंने हंगरी बॉर्डर पार किया, वहां पर कई देश के बच्चे थे। सबने बताया वो लोग अपने खर्चे पर जा रहे हैं, मैंने बताया कि हमारी सरकार ने इवैक्युकेशन प्लान तैयार किया है। हमसे कुछ नहीं लिया जा रहा। यह सुनकर सबने कहा कि आप लकी हैं कि आपके यहाँ ऐसी सरकार है।
शिवांजलि गुप्ता, गोरखपुर:- उम्मीद छोड़ दी थी, लेकिन सरकार ने हौसला बढ़ाया। भारत तो वापस लाये ही सीएम योगी सर ने दिल्ली में यूपी भवन में रुकने की व्यवस्था दी। इनोवा गाड़ी से घर तक छोड़ा। बहुत आभार।
शिखर गुप्ता, गोंडा:- खारकीव में 05 दिन बंकर में रहा। शुरुआत में थोड़ी दिक्कत जरूर हुई लेकिन दूतावास से संपर्क बनाए रखा। एक बार बॉर्डर पार किया फिर तो हमारे अधिकारी-मंत्री सब हमारे सामने थे। मेंटली सपोर्ट बहुत मिला।
जय सक्सेना, हरदोई:- वहां सिचुएशन खराब थी। रोमैनिया बॉर्डर क्रॉस करने तक भर की दिक्कत थी। लेकिन सरकार ने पूरी व्यवस्था कर रखी थी। कहीं कोई दिक्कत नहीं हुई। बस हमारी पढ़ाई पूरी होने का प्रबंध हो तो और अच्छा है।
शिवेंद्र प्रताप सिंह, बहराइच:- मैं तो कीव में ही था। वहां बहुत खतरा था। लेकिन हमें खुशी है कि हमने मोदी जी और योगी जी को अपना अभिभावक बनाया है। सच कहूं तो सुखद यात्रा रही। अविस्मरणीय तो है ही। यूक्रेन में एहसास हुआ कि मोदी और योगी हैं तो मुमकिन है।