रायपुर। राजधानी में 652 प्राइवेट अस्पताल, नर्सिंग होम व क्लीनिक बिना लाइसेंस के संचालित हो रहे हैं। बावजूद कार्रवाई करने के जिला स्वास्थ्य विभाग सिर्फ नोटिस देकर खानापूर्ति कर रहा है। स्वास्थ्य विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक जिन प्राइवेट अस्पतालों को लाइसेंस नहीं मिला है। इनके द्वारा नियम का पालन नहीं करने की वजह से फायर व पर्यावरण विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं मिला है।
राजनीतिक पहुंच होने से कार्रवाई नहीं –
वहीं नर्सिंग होम एक्ट के तहत कई अन्य नियमों का पालन नहीं नहीं किया जा रहा है। जिला स्वास्थ्य विभाग द्वारा ऐसे अस्पतालों की सूची बनाकर उन्हें नोटिस जारी किया गया, लेकिन कार्रवाई नहीं की जा रही है। अधिकारियों का कहना है कि कई अस्पतालो द्वारा कार्रवाई रूकवाने राजनीतिक पहुंच का फायदा उठाया जा रहा है। वहीं निरीक्षण करने वाले कुछ अधिकारियों के सांठ-गांठ से अस्पताल कार्रवाई से बचे हुए हैं।
फायर सेफ्टी की व्यवस्था नहीं
फायर सेफ्टी की व्यवस्था नहीं हालांकि मामले को लेकर जिला चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी ने नियम का उल्लंघन करने वालों पर नियम के तहत कठोर कार्रवाई की बात कही है। इधर कई अस्पताल, नर्सिंग होम आवासीय परिसर में संचालित हो रहे हैं। ऐसे में फायर सेफ्टी समेत कई तरह की व्यवस्थाएं नहीं हो पा रही है। इसके चलते इन संस्थानों को लाइसेंस मिलने में बाधा आ रही है।
जिले में 1332 अस्पताल व नर्सिंग होम स्वास्थ्य अधिकारियों ने बताया कि रायपुर जिले में कुल 1332 चिकित्सा संस्थान संचालित हो रहे हैं। इसमें से प्राइवेट अस्पतालों की संख्या 321 है। वहीं 799 क्लीनिक व 212 लैब संचालित हो रहे हैं। स्वास्थ्य विभाग ने 680 को लाइसेंस दिया गया है। इसमें 171 प्राइवेट अस्पताल व नर्सिंग होम, 417 क्लीनिक व 92 लैब शामिल है। जबकि 652 संस्थान बिना लाइसेंस संचालित हो रहे हैं।
हॉस्पिटल के निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों के डंपिग के प्रावधान में स्पष्ट उल्लेख है कि इसे आम नागरिकों से दूर रखा जाए । ताकि नष्टीकरण से होने वाले जहरीले धुंए और प्रदूषित रसायनिक द्रव्य लोगों को सीधे इफेक्ट नहीं कर सके। उसके बाद भी मेडिकल वेस्ट का नष्टीकरण के लिए कोई निर्धारित जगह नहीं है। यदा-कदा जहां कही भी उन्हें डंप करने की छूट प्रदूषण मंडल और नगर निगम ने एनओसी देकर जहरीले प्रदूषण को आम नागरिकों को सांसों के जरिए धीमा जहर दे रहा है।
राजधानी के अस्पतालों से रोजाना निकलने वाला मेडिकल वेस्ट की मात्रा 5-10 ट्रक है। जिसे कहां खपाया जाता है आज तक किसी को पता नहीं है। जहां सामान्य कचरा डंपिंग किया जाता उसी के आसपास मेडिकल वेस्ट डंप कर स्वस्थ लोगों को बीमारी के मुहाने पर खड़े कर दिया है। जहां राजधानी का हर खास और आम नागरिक मेडिकल वेस्ट और कचरों से चारों तरफ से सराबोर है।
शहर सरकार कितना भी स्वच्छता अभियान और स्मार्ट सिटी बनाने के लिए पापड़ बेल ले, जब तक कचरों और मेडिकल वेस्ट की शहर में उपस्थिति रहेगी तब तक राजधानी में कोई भी स्वस्थ नहीं रह सकेगा। जिस पर नगर निगम और प्रदूषण मंडल को कड़ाई का रूख अख्तियार करना होगा नहीं तो ऐसे ही औपचारिकता का खेल पैसे लेकर चलता रहेगा। इस तवाही का राजधानी का हर नागरिक शिकार होता रहेगा।
बहुतों के पास लाईसेंस नहीं, पैसे से खरीद रहे पर्यावरण क्लीयरेंस मेडिकल वेस्ट के डंपिंग को लेकर सख्ती होने के बाद भी नगर निगम और प्रदूषण मंडल की कार्रवाई मात्र औपचारिकता तक सीमित हो गई है। जानकारों की माने तो प्रदूषण मंडल और नगर निगम अस्पतालों से निकलने वाले मेडिकल वेस्ट की बिना जांच पड़ताल किए पैसा लेकर हॉस्पिटलों को प्रदूषण मुक्ति प्रमाणपत्र बांट रहा है। जबकि प्रावधान यह है कि कचरा डंपिंग और मेडिकल वेस्ट निर्धारित स्थल पर नहीं करने पर 5 लाख तक जुर्माना है जिसे लाख-दो लाख लेकर नगर निगम और प्रदूषण मंडल के स्वच्छता निरीक्षकों ने लोगों को जहरीली हवा में सांस लेने के लिए छोड़ दिया है।
दुर्ग जिले एक ही नसीरिंज से कई मरीजों को लगा रहे इंजेक्शन
आपको बता दे, एक ही निडिल-सीरिंज से कई लोंगों को लगा रहे इंजेक्शन दुर्ग जिले में ऐसे नर्सिंग होम का खुलासा हुआ है, जहां इलाज के नाम पर बड़ी बीमारी बांट रही थी। यहां एक सीरिंज से कई लोगों को इंजेक्शन लगाया जा रहा था। इसका खुलासा दुर्ग एसडीएम आईएएस लक्ष्मण तिवारी के छापे के दौरान हुआ। इसके साथ ही नर्सिंग होम में कई अन्य बड़ी खामियां भी पाई गईं। इसके चलते दो नर्सिंग होम को सील करने के निर्देश दिए गए हैं।
एसडीएम ने बताया कि उन्होंने अपनी टीम के साथ शनिवार को हाईटेक अस्पताल, सिन्हा नर्सिंग होम सुपेला और सुपेला नर्सिंग होम सहित कई अन्य जगह छापेमारी की थी। इस दौरान जहां हाईटेक अस्पताल में सभी चीजें ठीक पाई गईं तो वहीं दो नर्सिंग होम में भारी खामियां देखने को मिली। यहां एक ही सिरिंज से चार-चार लोगों को इंजेक्शन लगाकर संक्रामक बीमारियां फैलाने का काम किया जा रहा था।
चेकिंग के दौरान कोई भी क्वालीफाइड डॉक्टर नहीं पाया गया
सिन्हा नर्सिंग होम में मरीजों को भर्ती तो किया गया था, लेकिन कोई क्वालीफाइड डॉक्टर नहीं था। सुपेला नर्सिंग होम और सिन्हा नर्सिंग होम की हालत बहुत ही बदतर मिली। दोनों ही जगह नर्सिंग होम एक्ट की गाइड लाइन का पालन नहीं किया जा रहा था।एसडीएम दुर्ग ने बताया कि दोनों ही नर्सिंग होम में मरीज भर्ती पाए गए। जब वहां के स्टाफ से मरीजों की बीमारी के बारे में पूछा गया तो उन्हें पता ही नहीं था कि किसे क्या बीमारी है। वहां जब डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ का क्वालीफिकेशन चेक किया गया तो कोई भी क्वालीफाइड डॉक्टर नहीं पाया गया।