जबलपुर| मध्यप्रदेश सरकार द्वारा पूर्व मुख्यमंत्रियों को सरकारी आवास आवंटित किए जाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति एच.पी. सिंह की युगल पीठ ने बुधवार को राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। विधि स्नातक छात्र रौशन यादव की तरफ से दायर याचिका में कहा गया है कि प्रदेश सरकार ने 24 अप्रैल, 2016 को एक आदेश पारित किया था, जिसके अनुसार प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों को मंत्रियों के समान वेतन व भत्तों का लाभ मिलेगा और सरकारी बंगला भी उनके नाम पूरी उम्र आवंटित रहेगा।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता विपिन यादव ने संवाददाताओं से कहा, “याचिका में कहा गया है कि सरकार का पूर्व मुख्यमंत्रियों को सुविधाएं देने का आदेश मप्र मंत्री वेतन तथा भत्ता अधिनियम 1972 की धारा 5 (एक) के प्रावधानों के विपरीत है। अधिनियम के तहत पदमुक्त होने के एक माह के भीतर मुख्यमंत्री व मंत्रियों को सरकारी आवास खाली करना अनिवार्य है।”
यादव ने कहा कि याचिका में पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों को लेकर आए सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए कहा गया है कि जन प्रहरी विरुद्ध उप्र सरकार के मामले में भी सर्वोच्च न्यायालय ने पद से हटने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री के नाम सरकारी बंगला आवंटन व रहवास को गलत बताया है।
यादव ने कहा, “याचिका की सुनवाई करते हुए युगलपीठ ने सरकार को नोटिस जारी कर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश के परिपालन के संबंध में जवाब मांगा है।”
याचिका में राज्य सरकार सहित पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती, दिग्विजय सिंह तथा कैलाश जोशी को अनावेदक बनाया गया था।
युगलपीठ ने उप महाधिवक्ता समदर्शी तिवारी को निर्देश दिया कि वह सरकार से इस संबंध में निर्देश प्राप्त कर न्यायालय को अवगत कराएं। इसके बाद याचिका में अनावेदक बनाए गए पूर्व मुख्यमंत्री को नोटिस जारी करने पर विचार किया जाएगा।