नई दिल्ली। अटल जी होते तो आज सौ बरस के होते. अटल भारतीय राजनीति का एक समदर्शी विचार हैं. नेहरू के आलोचक हैं और प्रशंसक भी. लोहिया के सखा हैं और विरोधी भी. इंदिरा से सहमत भी हैं और असहमत भी. अटल राजनीति में कट्टरता से दूर उदारता के निकट खड़े हैं. भारत आजाद होते ही हिंसात्मक और कड़वी राजनीति के मुहाने पर था. जिन नेताओं ने देश की राजनीति को मनुजता की तरफ लौटाया उसमें एक नाम अटल बिहारी का भी है. जिनकी हस्ती में अपने दल से ज्यादा बल है.
नब्बे के दशक में धर्म, जाति, पंथ, संप्रदाय में फंसी राजनीति में भी अटल प्यार की पगडंडी बनाने की कोशिश करते हैं. काजल की कोठरी से साफ-सुथरे निकले हैं. जो विचारधारा से जुड़े हैं अटल उनके लिए भरोसा हैं और जो विचारधारा से दूर हैं उनके लिए उम्मीद. भारतीय राजनीति में अटल से दूर होता रास्ता आपको कटुता की तरफ ले जाएगा. अटल आदर्श भारतीय राजनेता का मानक कहे गए. वे सर्वसमावेशी राजनीति के शिखर पुरुष कहे जा सकते हैं. उनका मानना था कि बोलने के लिए वाणी चाहिए और चुप रहने के लिए वाणी और विवेक दोनों.
अटल जी सोलह साल लखनऊ के सांसद रहे और उस दौरान मैं जनसत्ता का राज्य संवाददाता. तब जनसत्ता खूब पढ़ा जाने वाला अखबार था. देश में उसका असर और रसूख था. अटल जी लखनऊ में होते थे तो मुझसे जरूर बात होती थी. मैं उनका मुंहलगा था. कहीं बैठकी हुई तो किसी ने मजाहिया अंदाज में वही कहा जो अक्सर कहा जाता था. ‘अटल जी आदमी अच्छे हैं लेकिन गलत पार्टी में हैं’. कहने वाले नेताजी विरोधी पार्टी के थे. वाजपेयी जी कहते है- “अगर मैं अच्छा आदमी हूं तो गलत पार्टी में कैसे रह सकता हूं और अगर गलत पार्टी में हूं तो अच्छा आदमी कैसे हो सकता हूं. अगर फल अच्छा है तो पेड़ खराब नहीं हो सकता”.
अटल जी के मिजाज के कई रंग
मैंने अटल जी के मिजाज के कई रंग देखे और उन्हें हर रंग में बेजोड़ पाया. ये बात 1999 की है. तब कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे और अटल जी देश के प्रधानमंत्री. कल्याण सिंह ने किन्हीं विशेष कारणों से पार्टी नेतृत्व के खिलाफ झंडा उठा लिया था. वे अटल जी के भी खिलाफ हो गए. बाद में उन्हें मुख्यमंत्री पद भी छोड़ना पड़ा और रामप्रकाश गुप्त उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. जब यह विवाद चरम पर था, वाजपेयी जी लखनऊ आए. वे राजभवन में रुके. दोनों में आपकी कटुता इस हद तक बढ़ चुकी थी कि लखनऊ के अखबारों में उस रोज ये कयास भरी खबरें भी छपीं थी कि कल्याण सिंह राजभवन में प्रधानमंत्री से मिलने जाएंगे या नहीं.
मैं ना टायर्ड हूं ना रिटायर होने जा रहा…
अटल जी के भीतर भवितव्यता का अनुमान कर लेने वाली सहज बुद्धि मौजूद थी. इसका भी मुझे परिचय मिला. यह बात जुलाई 1995 की है. भाजपा में इस बात को लेकर पशोपेश था कि अटल जी के नेतृत्व में चुनाव हो या आडवाणी को आगे कर. पुणे में हुई कार्यसमिति की बैठक में अटल जी पार्टी के अध्यक्ष तो चुने गए, पर पार्टी किसके चेहरे पर चुनाव लड़े इस बात पर भीतर भीतर बहस चल रही थी. अटल जी को इस बहस का अहसास था कि कुछ लोग आडवाणी को नेता बनाना चाहते हैं. तब तक आडवाणी मंदिर आंदोलन के हीरो हो चुके थे. उसी दिन शाम की रेस कोर्स की सार्वजनिक सभा में वाजयेपी अपने चुंबकीय व्यक्तित्व के साथ मंच पर थे. उनकी आवाज का संगीत सभा पर छाया था. आरोह-अवरोह. दो शब्दों के बीच नाटकीय विराम के साथ आंख मूंदना और फिर चीरने वाली नजरों से देखना. शायद इन्हीं वजहों से वाजपेयी जी का भाषण सुना नहीं, देखा जाता था.
एक झटके में वाजपेयी ने कहा, “कुछ लोगों को लग रहा है मैं थक गया हूं. कुछ समझते हैं कि मैं रिटायर हूंगा. मैं ना टायर्ड हूं ना रिटायर होने जा रहा हूं. चलिए आडवाणी जी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा. हम आगे बढ़ेंगे”. यह अटल जी का अपनी बात कहने का अंदाज था. विवाद खत्म हो चुका था. मगर असर ये था कि शाम को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर आडवाणी जी को कहना पड़ा कि चुनाव अटल जी के नेतृत्व में होगा. 1996 में चुनाव अटल जी के नेतृत्व में हुआ. अटल जी प्रधानमंत्री बने.
जब लखनऊ-दिल्ली फ्लाइट हुई हाईजैक
एक और किस्सा याद आ रहा है. बात 1993 की है. उस रोज लखनऊ से लेकर दिल्ली तक सनसनी फैल गई थी. लखनऊ से दिल्ली के लिए उड़ान भर रहे इंडियन एयरलाइंस के प्लेन को हाईजैक कर लिया गया था. तारीख थी 22 जनवरी 1993 की. लखनऊ से हवाई जहाज अभी उड़ा ही था कि 15 मिनट के बाद ही अफरातफरी की स्थिति हो गई. एक आदमी हाथ में कपड़ा लपेटे हुए चेतावनी भरे लहजे में कह रहा था, ‘मेरे हाथ में केमिकल बम है. इस प्लेन को फौरन लखनऊ वापस ले चलो, वरना अंजाम बेहद भयानक होगा.’ यात्रियों की जान सूख चुकी थी. आनन-फानन में लखनऊ स्थित एयर ट्रैफिक कंट्रोल को प्लेन के हाइजैक होने की खबर दी गई. विमान में 48 यात्री थे. अब तक जहाज लखनऊ के हवाई अड्डे पर वापस लैंडिंग कर रहा था. जब हाइजैक की वजह मालूम चली तो अधिकारी सन्न रह गए.
हाइजैकर अटल बिहारी वाजपेयी को बुलाने की मांग कर रहा था, वरना जहाज उड़ा देने की धमकी दे रहा था. लखनऊ के उस वक्त के डीएम अशोक प्रियदर्शी थे. वे भागे भागे अटल बिहारी वाजपेयी के पास राज्य अतिथि गृह पहुंचे. अटल जी खाना खाने की तैयारी में थे. वे खाना छोड़कर मौके पर पहुंचे. एटीसी की लाइन पर हाईजैकर से बात कराई गई. मगर वह फिर भी नहीं माना. वह उन्हें बुलाने पर अड़ा हुआ था. अटल जी ने कहा मुझे जाने दो. अब डीएम, लालजी टंडन और अटल बिहारी वाजपेयी एक जीप में बैठकर प्लेन तक पहुंचे. हाइजैकर बाहर से बात करने पर नहीं माना, सो उन्हें भीतर जाना पडा. पहले डीएम अशोक प्रियदर्शी भीतर घुसे, फिर लालजी टंडन प्लेन में घुसे. तब तक वो समझ चुके थे कि अपहर्ता चाहता क्या है.
टंडन जी ने अटल जी को जहाज में बुलाया. अब अटल जी उसके सामने थे. उनके सिक्योरिटी गार्ड भी अंदर घुस चुके थे. लालजी टंडन ने हाइजैकर को समझाया कि अटल जी तुम्हारे सामने हैं. तुम पहले उनका पैर छुओ. फिर अपनी बात कहो. हाइजैकर मान गया. वह जैसे ही झुका, गार्ड्स ने उसकी गर्दन दबोच ली. केमिकल बम की बात गलत निकली. पुलिस उसे पकड़ कर ले गई. जनता अटल बिहारी की जय जय के नारे लगा रही थी. सारा हंगामा थम चुका था. अब लालजी टंडन ने प्लेन में नजर घुमाई. कांग्रेस के तब के कोषाध्यक्ष सीताराम केसरी उसी प्लेन में चुपचाप कोने में दुबके पड़े थे. उस रात यात्रियों का लखनऊ में ही ठहरने का इंतजाम किया गया. अगले दिन उसी फ्लाइट से सारे यात्री दिल्ली गए. फ्लाइट में उनके साथ अटल बिहारी वाजपेयी और लालजी टंडन भी थे.