लखनऊः आजकल अधिकतर घरों में एक वाहन जरूर होता है। अगर आपके घर में भी कोई वाहन है तो आपको ये पता होगा कि एक वक्त के बाद वाहन के टायर खराब होने लगते हैं। इस कारण उसे बदलवा दिया जाता है और पुराने टायर हटा दिए जाते हैं। क्या कभी आपने ये सोचा है कि उन पुराने टायरों का आखिर क्या किया जाता है? अगर आपके मन में भी ये सवाल आता है पर आपको इसका जवाब नहीं पता, तो आज आपको इसी के बारे में बताने वाले हैं। दरअसल, इन पुराने टायरों को लेकर सरकार की एक पॉलिसी होती है। इसमें सरकार ने हाल ही में कुछ बदलाव किए हैं।
आइए इसके बारे में और भी विस्तार से जानते हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी मामले के लिए उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक, हर साल देशभर में लगभग 2,75,000 टायरों को बेकार छोड़ दिया जाता है, वहीं इसके निपटारे के लिए कोई व्यापक योजना नहीं है।
भारत में लगभग 30 लाख बेकार टायर हर साल रीसाइक्लिंग के लिए आयात किए जाते हैं। 19 सितंबर, 2019 को एनजीटी ने एंड-ऑफ-लाइफ टायर्स/वेस्ट टायर्स यानी ईएलटी के उचित प्रबंधन से संबंधित एक मामले में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड सीपीसीबी को विस्तृत कचरा प्रबंधन करने और बेकार टायरों व उनके पुनर्चक्रण की योजना पेश करने के आदेश दिए थे।
टायरों की रीसाइक्लिंग
अपशिष्ट टायरों को पुनर्नवीनीकरण रबर, क्रम्ब रबर, क्रम्ब रबर संशोधित बिटुमेन (सीआरएमबी), बरामद कार्बन ब्लैक, और पायरोलिसिस तेल / चार के रूप में पुनर्नवीनीकरण किया जाता है।
2019 रिपोर्ट्स के अनुसार, एनजीटी मामले में याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि भारत में पायरोलिसिस उद्योग निम्न गुणवत्ता वाले उत्पादों का उत्पादन करता है जिन्हें पर्यावरणीय क्षति को रोकने के लिए प्रतिबंधित करने की आवश्यकता होती है और उद्योग अत्यधिक कैंसर पैदा करने वाले प्रदूषकों का उत्सर्जन करता है, जो हमारे श्वसन तंत्र के लिए बेहद नुकसानदायक हैं।