प्रोफेसर आर एन त्रिपाठी
समाजशास्त्र विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी
वाराणसी| आज फिर पूरी दुनिया गांधी को याद कर रही है,क्योकि जहां कहीं भी आंदोलन की शुरुआत होती है वहां आंदोलन में गांधी याद आ ही जाते हैं, गांधी दिखाए जाते हैं वही गांधी जो अपने देश के लिए आजादी के पूर्व आजाद भारत का एक सपना सोचा था, भारत तो आजाद हो गया लेकिन गांधी का वह सपना आजाद आज तक ‘आजाद’-यानी मूर्त नहीं हुआ इसके पीछे कारक क्या था? हमारी गुलामी तो आर्थिक आधार पर शुरू हुई थी और स्वतंत्रता के बाद भी राजनीतिक और सांस्कृतिक आधार पर चलती आ रही है। आज चारों तरफ जिस अराजकता, आधिपत्य,आतंक ,अधिग्रहण का बोलबाला है ऐसे में केवल गांधी ही एक पथ प्रदर्शक दिखाई देता है जहां से मानवताके बचाव की रोशनी निकलती नजर आ रही है।
गांधी दर्शन सदैव प्रेम की इबारत लिखता है और सत्य और अहिंसा के पालन के कांटेदार दो ऐसे रास्तों के बीच चलता है, जिस पर चलकर के फिर से हमें मनुष्यता की सच्ची अनुभूति हो सकती है,स्वतंत्रता का वास्तविक भाव आ सकता है।आज सनातन धर्म को लेकर के काफी बात चीत चल रही है कोई हिंद -स्वराज पढ़ ले तो मुझे लगता है कि सनातन का मूल दस्तावेज हिंद स्वराज ही है जहां राज्य और जनता दोनों के लिए लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना कैसे की जाती है स्पष्ट बताई गई है। गांधी यहां स्पष्ट करते हैं सही स्वराज सत्य पर खड़ा होना होता है पवित्र लोकसत्ता की स्वीकार्यता स्वधर्म आधारित ही हो सकती है और धर्म से ही सद्भाव का मूल तत्व निकलता है जब तक इस सद्भाव के मूल तत्व से हम स्वराज की स्थापना नही करेंगे तब तक ना तो समाज में समानता आएगी और न तब तक समाज में शांति ही आ सकती है। उनकी अहिंसा के धर्म का पालन करने वाला व्यक्ति आत्मबल का सबसे बड़ा व्यक्ति होता है उनका अस्तेय पालन करने वाला व्यक्ति, विराट व्यक्तित्व का होता है उनका अपरिग्रह का पालन करने वाला व्यक्ति बहुत बड़ा त्यागी होता है आज समाज में अहंकार,अधिकार को लेकर के जो लड़ाई चल रही है उसके पीछे अहिंसा के मूल में जो प्रेम छुपा है उसकी सकारात्मक प्रवृत्ति का अभाव है।
आज जिस सनातन धर्म की बात लोग करते हैं तो उस सनातन धर्म का मूल ‘सत्य’ है और सत्य ही ईश्वर है अगर हम सत्य को अपना लेंगे तो हमारे जीवन पद्धति सुधर जाएगी और जब जीवन पद्धति सुधर जाएगी तब व्यक्ति सुधर जायेगा, क्योंकि व्यक्ति में दोष नहीं है बल्कि व्यक्ति के मानस और उसकी जीवन पद्धति में दोष है जिसे दूर करने के लिए गांधी के सत्य और अहिंसा का सहारा लेना पड़ेगा।गांधी का यह योग गीता के अनासक्ति योग से है और इसी अनासक्ति योग से ही उन्होंने न्यासिता का सिद्धांत दिया और अंततःवो रस्किन के ‘अन टू दी लास्ट’ को परिमार्जित कर भारत के अनासक्ति योग से जोड़कर ‘अंत्योदय’ तक ले जाते हैं जहां समावेशी विकास सामूहिकता, एकात्मकता ममता भरी समतापूर्ण समाज की कल्पना है।वे व्यक्ति को सत्ता का केंद्र मानते थे इसलिए पहले व्यक्ति का सुधार चाहते थे क्योंकि शक्ति का केंद्र व्यक्ति है यदि उसके व्यवहार और विचार में सुधार नहीं हुआ तो उसीसे राष्ट्र का निर्माण होता है विना उसके यह संभव नहीं हो पाएगा। गांधी आजादी के पूर्व आजाद भारत का जो सपना सजोये थे,और उसे सपने में जिस व्यक्ति की कल्पना करते थे जो सत्य और अहिंसा के रास्ते चलकर के एक ऐसे भारत का निर्माण करें जो आत्मनिर्भर हो और जहां पर सहचर भाव से सभी लोग रह सके क्योंकि वह एक वैष्णव थे और सच्चा वैष्णव उसे कहते हैं ‘जो पीर पराई जाने रे’इसी सत्य धर्म के अनुरागी थे ,इसी करूणा की नीति पर चलने वाले थे। उनका मानना था कि लोगों को अपनी प्राचीन संस्कृति से इस प्रकार जुड़कर रहना चाहिए जैसे एक बच्चा अपनी मां की छाती से जुड़ा रहता है। इसका एक उदाहरण तब देखने को मिला जब 4जनवरी 1916 को काशी हिंदू विश्वविद्यालय में वह मालवीय जी के कार्यक्रम में बोलने लगे तो उन्होंने कहा कि ‘विदेशी भाषा में बोलना शर्म की बात है अगर हमारे पास अपनी भाषा नहीं है तो मैं अपने विचार संस्कृति के बारे कुछ नहीं कह पाऊंगा और एक दिन ऐसा आएगा कि हमारा अस्तित्व ही मिट जाएगा।
गांधी का सदा मानना था कि सदाचरण का मूल तत्व प्रेम है यदि सत्य और अहिंसा का मार्ग मानव जीवन में आ जाएगा तो प्रेम की नई इबारत लिखी जा सकती उन्होंने कहा की सत्य और अहिंसा दो साधन ऐसे साधन हैं जैसे बीज और पेड़, बीज प्राप्त किए जाने का माध्यम पेड़ है और पेड़ प्राप्त होता है बीज से, दोनों आत्मीय हैं,ये सत्य और अहिंसा ही हैं जिसको अपनाकर व्यक्ति पहले आत्मशोधन कर सकता है फिर वह आत्मपरिष्कार करेगा फिर वह आत्मबोध करेगा और तब परिणाम यह होगा कि उसके हृदय का अहंकार जल जाएगा उसके हृदय में ‘मैं से हम की भावना’ आएगी और फिर वही ईश्वर का सच्चा दर्शन स्वयं में कर सकता है, समाज में कर सकता है। गांधी जी का सत्य, सत्यवादी विनम्र सत्य है,वे विनम्रता के साथ सत्याग्रह की बात करते हैं,इसलिए सविनय अवज्ञा आंदोलन नाम दिया था। उन्होंने स्पष्ट कहा था की सत्य ही ईश्वर है और सत्याग्रह प्रेम-धर्म है इसको उन्होंने वैसे नहीं लिया था इन्होंने इसको दार्शनिक मीमांसा के अनासक्ति योग से लिया था और इस अनासक्ति योग से निरपेक्ष भाव से संपत्ति का मालिक केवल ट्रस्टीशिप के माध्यम से अंत्योदय तक जाना जाने की बात कहा था। उनका यह भी मानना था आजादी का क्या मतलब जब गलतियां करने की सुविधा हो और उसे सुधारने के लिए भी सुविधा हो तभी व्यक्ति आजाद हो सकता है। आज व्यक्ति और उसका मानस उसकी जीवन पद्धति सभी प्रदूषित हो गयी है गांधी व्यक्ति के इसी मानस और उसके जीवन पद्धति को सुधारने का कार्य करते हैं और कहते हैं कि व्यक्ति की अंतःकरण में जो राग द्वेष की हलचल चल रही है जहां उसकी मानवीय कोमलता नष्ट हो रही है जहां हथियारों की होड़ चल रही है जहां आधिपत्य का साम्राज्य चल रहा है वहां इसको दूर करने की शल्यचिकित्सा केवल गांधी के पास है, यहां एकमात्र अकेला खड़ा गांधी ही दिखाई देता है जहां आपको प्रकाश की कुछ किरण मिल सकती जिससे अंतःकरण की शुद्धि हो सकती है और प्रेम के बीज हृदय में पनप सकते हैं।दुर्भाग्य है कि गांधी अब दिखाए जाते हैं गांधी को मानने वाले बहुत कम लोग रह गए हैं।आज का दर्शन आंख के बदले आंख का है गांधी कहा करते थे कि इसका अंत नहीं है इसका अंत प्रेम ही है यहां और स्पष्ट कर देना होगा कि वह व्यक्ति के भय से अहिंसा को नहीं जोड़ते थे उनका मानना था कि सामर्थ्यवान और शक्तिमान व्यक्ति ही अहिंसा व्रत का पालन कर सकता है।
आज भारत 65 करोड़ युवाओं का देश है जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है डेमोग्राफिक डिविडेंड भारत की सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है गांधी यहां भी स्पष्ट कहते हैं कि ‘जवानी सस्ते कुशल श्रमिक बनाकर अपनी क्षमताओं को बेचने में नहीं है, बल्कि युगधर्म के अनुसार चुनौतियों को स्वीकार करने की और सदा नया करने की सोच में है’ यही बात नई शिक्षा नीति में कौशल विकासके बारे में कही गई है गांधी इस विचार की नींव अपने स्वधर्म और स्वराज में बहुत पहले डाल चुके थे, वह कहते हैं की ग्राम स्वराज का तात्पर्य व्यक्ति की उन क्षमताओं में वृद्धि करना है जिन क्षमताओं में वह महारथ हासिल किया है यदि दार्शनिक तौर पर सोचा जाए तो नई शिक्षा नीति में इसी स्वराज दर्शन की झलक दिखाई देती है। रचनात्मकता,मनोबल और अभिरुचि की बात गांधी बहुत पहले करते हैं इसी को शिक्षा का आधार बताते है,वे शिक्षा को साधन मानते हैं, निज भाषा को उन्नति का आधार मानते हैं,’योगसु कर्मषु कौशलम’ के आधार पर वह कुटीर उद्योगों का बढ़ावा देते हैं।स्वच्छता में ईष्वर का वास है, इस लोकचेतना को गांधी अमल में लाने की बात करते है जब लोकचेतना जग जाएगी तब स्वमेव भारत स्वच्छ हो जाएगा,नदियां स्वच्छ हो जायेगीं,प्रदूषण कम हो जाएगा। गांधी प्रेम का साकार रूप हैं जितना गांधी पर सोचेंगे जितना गांधी को देखेंगे प्रेम की नई-नई इबारत गढ़ते चले जाएंगे,मैं पहले भी कहा कि गांधी विरोध भी आंदोलन भी सविनय करता है।निराला की ये पंक्तियां गांधी पर आज भी चरितार्थ हैं,
तेरा विराट वह रूप
कल्पना पथ पर नहीं समाता है।
जितना कुछ कहूं, मगर कहने को शेष बहुत रह जाता है।