नई दिल्ली। (द्वारकेश बर्मन) कोरोना का कहर, नए स्ट्रेन का खोफ और शरीर को गला देने वाली और ठिठुराने वाली कड़कड़ाती ठंड के बीच नए कृषि कानूनों के विरोध में कई हजारों की संख्या में किसान लगभग एक महीने से ज्यादा समय से दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। तीन कृषि कानूनों को लेकर पिछले लगभग एक महीने से सरकार और किसानों के बीच चला आ रहा गतिरोध शुक्रवार को आठवें दौर की बातचीत के बाद भी समाप्त नहीं हो सका है। यह बात अलग है कि अब तक बैठकें बेनतीजा ही साबित हो रही है। अब बैठक की अगली तारीख पन्द्रह जनवरी मुक़र्रर की गई है।
इस सब के चलते दिल्ली बॉर्डर पर किसानों को धरने के संबंध में याचिकाकर्ता ऋषभ शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट ने नया एफेडेविट दाखिल किया है। इसमें कहा गया है कि किसानों के विरोध प्रदर्शन व सड़क जाम होने की वजह से रोजाना 3500 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। एक तरफ महामारी के दौर में जी डी पी में भारी गिरावट है तो वहीं, कच्चे माल की कीमत तकरीबन तीस फीसदी तक बढ़ चुकी है।
बीते शुक्रवार तक अन्नदाताओं के साथ बातचीत का सिंसिला अब तक के अंतिम दौर में होने के बाद केंद्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने अपने बयान में कहा कि बातचीत के दौरान किसान संगठनों द्वारा तीनों कानूनों को खत्म करने की उनकी मांग के अतिरिक्त न तो कोई वाझिब तर्क दे सके न ही कोई विकल्प प्रस्तुत किए जाने की वजह से वार्ता आठवें दौर तक कोई फैसला नहीं हो सका है।
उधर किसान संगठनो से जुड़े नेताओं का कहना है कि कृषि कानून वापिस नहीं लिए जाने की स्थिति में किसान पूर्व की योजना के मुताबिक गणतंत्र दिवस , छब्बिस जनवरी को दिल्ली में पुनः अपना शक्ति प्रदर्शन करते हुए ट्रैक्टर रैली निकालेंगे और तानाशाह सरकार को पुनः चेतावनी देंगे।