नई दिल्ली। दिल्ली की साकेत कोर्ट में कहा है कि हम क़ुतुब मीनार में किसी को पूजा की इजाजत नहीं दे सकते। एएसआई ने कहा कि कुतुब मीनार 1914 से एक संरक्षित स्मारक है और इसकी संरचना को अब नहीं बदला जा सकता है। एएसआई ने कहा, “एक स्मारक में पूजा के पुनरुद्धार की अनुमति नहीं दी जा सकती है। जब इस स्मारक को संरक्षित किया गया था, उस समय भी यहां पर पूजा नहीं होती थी।”
ASI ने साकेत कोर्ट में उस याचिका का विरोध करते हुए ये बात कही जिसमें कुतुब मीनार परिसर में 27 हिंदू और जैन मंदिरों की बहाली की मांग की गई है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने साफ कहा कि भूमि के किसी भी स्थिति में उल्लंघन से मौलिक अधिकार का लाभ नहीं उठाया जा सकता है। दरअसल, कुतुब मीनार के पास कुछ हफ्ते पहले हिंदू संगठन प्रदर्शन कर चुके हैं। उनका दावा है कि कुतुब मीनार का निर्माण 27 जैन और हिंदू मंदिरों को तोड़कर किया गया है। वहां पूजा करने का अधिकार देने और नाम बदलने की भी मांग की जा रही है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने कुतुब मीनार मामले पर अपना जवाब साकेत कोर्ट को सौंप दिया, जहां उसने उस स्थान पर मंदिर को पुनर्जीवित करने की याचिका का विरोध किया है। संस्कृति मंत्रालय ने भी एएसआई को अपनी खुदाई रिपोर्ट सौंपने को कहा था। मीनार के दक्षिण में मस्जिद से 15 मीटर की दूरी पर खुदाई शुरू की जा सकती है। एएसआई ने कहा कि हिंदू याचिकाकर्ताओं की याचिका कानूनी रूप से सुनवाई योग्य नहीं है। इसने कहा, “कुतुब मीनार परिसर के निर्माण के लिए पुराने मंदिरों को तोड़ना ऐतिहासिक तथ्य है। कुतुब मीनार परिसर एक जीवित स्मारक है, जिसे 1914 से संरक्षित किया गया है। परिसर में पूजा करने का अधिकार किसी को नहीं है।”