डॉ मोहम्मद कामरान
लखनऊ — हिंदुस्तान की मिट्टी और आबोहवा का कुछ ऐसा असर है कि देश के कोने कोने में चाय की दुकान हो या पंच सितारा सुविधाओं से लैस होटल हर इंसान को हवा में बात करने में न सिर्फ महारत दिखाई देती है बल्कि गूगल बाबा से प्राप्त अधकचरे ज्ञान के चलते स्वयं को मास्टर, कोच या ट्रेनर घोषित कर आसमान के ऊंचे शिखर पर विराजमान हो जाता है और अपने अधूरे ज्ञान से आने वाली नई पीढ़ी को हवा में ही तैरना सिखा रहा है,। हवा में तैरते ऐसे जांबाज जमीनी हकीकत की दुनिया से कोसों दूर जब जमीन पर पैर रखते हैं तो डगमगा कर गिरे, पड़े नज़र आते हैं ऐसे में इनको ज्ञान के सागर या पानी में उतार दिया जाए तो डूब कर मरना निश्चित है क्योंकि सही ज्ञान और शिक्षा बिना ज्ञानी गुरु के नही मिलता और जमीन पर चलना तो दूर पानी में उतरना भी असंभव सा दिखता है, वहीं उत्तर प्रदेश के शहीद भगत सिंह तरण ताल की गुरु शिष्य की परंपरा आज देश-विदेश में इसलिए विख्यात हो रही है क्योंकि यहां पर मिलने वाले ज्ञान से न सिर्फ युवा पीढ़ी बल्कि बुजुर्गी की दहलीज पर कदम रखते अनेक बुजुर्ग भी पानी में न सिर्फ चलना सीख रहे हैं बल्कि बड़े आसानी से तैर रहे हैं। नामचीन चिकित्सक हो या वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी,अधिवक्ता हो या व्यवसायी, पत्रकार हो या खिलाड़ी पानी मे सभी बराबर श्रेणी में।नज़र आते है, न तन पर कपड़ा और न मन मे कोई ग़ुरूर बस गुरुकुल के ज्ञान के सागर में डुबकी लगाते नज़र आएंगे।
गुरु शिष्य की यह परंपरा हमारे देश में सदियों से चली आ रही है लेकिन ऑनलाइन टेक्नोलॉजी की व्यवस्था से अब न तो गुरु मिलते है और न ही शिष्य दिखाई देते है लेकिन विलुप्त होती गुरु शिष्य की इस परंपरा का जीवंत रूप में निर्वाहन तरण ताल में देखकर बच्चों, महिलाओं एवं पुरुषों का दिल आनंदित और प्रफ्फुलित होता है। तरुणताल के गुरुकुल में कोच, ट्रेनर, मास्टर की तरह न तो अंग्रेज़ी तौर तरीके दिखते है और न ही ट्रेनिंग के नाम पर महंगी फीस वसूली जाती है, बल्कि दिन की शुरुआत राम-राम, नमस्कार,दुआ, सलाम से होती है और हमारे देश के संस्कार को मूर्त रूप में देखकर तरण ताल का पानी भी लहरें मारकर आनंदित होते दिखता है।
,ग्लैमर और रंगीली नगरी मुम्बई से बॉलीवुड अभिनेता संदीप ने जब उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में कदम रखा तो पूल में आते ही फिल्मी अंदाज में ट्रेनर या अंग्रेजी बोलते कोच को उनकी निगाहें तलाश रही थी लेकिन तरण ताल के इस आश्रम के पूल में उतरते ही उनको न सिर्फ एक बड़ा परिवार मिला बल्कि अनेक गुरुओं का साथ मिला, देश-विदेश के पूल में जहां एक या दो मास्टर ट्रेनर होते हैं वहीं शहीद भगत सिंह तरण ताल महानगर के पूल में 40-40 साल से जल में तपस्या कर रहे अनेक योगी पुरुषों का सानिध्य प्राप्त होना सौभाग्य की बात है। कहते हैं एक गुरु मिल जाए तो सही ज्ञान और दिशा मिल जाती है लेकिन यहां आने वाले सभी शिष्य इतने सौभाग्यशाली हैं कि बिना किसी शुल्क, बिना किसी पूर्व निर्धारित दक्षिणा के अनेक गुरुओं का न सिर्फ सानिध्य प्राप्त होता है बल्कि पानी में दक्षता हासिल करने का निःशुल्क प्रशिक्षण प्राप्त होता है।
40 साल की जल तपस्या में लीन शैलेश गुरु जल में खड़े होने की शिक्षा देते है तो दिनेश गुरु जिंदगी को उल्टा लेट कर खूबसूरत आसमान को देखने की शिक्षा देते है, भागती दौड़ती ज़िंदगी मे किसी अप्रत्याशित मिलने वाले धक्के से लड़ने और बाहर निकलने की ताकत और मुकाबला करने हेतु शरद गुरु 10 मीटर ऊपर से 18 फिट अंदर तक जाकर एक बड़ी शिक्षा शिष्यों को देते हैं, गुरु खनका के स्पर्श मात्र से ही टूटी हुई हड्डियों वाले भी खनखाते हुए तरणताल में तैरते नजर आते हैं और गुरुओं के इस जमघट पर भीष्म पितामह की तरह मुस्तादी से उस्ताद हैदर की आंखें सब पर नजर रखती हैं। उस्ताद हैदर ने सालों पहले जो बीज बोया था आज न सिर्फ उसका वृक्ष दिखाई देता है बल्कि उस वृक्ष में हज़ारों बीज निकल आये हैं, उस्ताद हैदर पहली कड़ी थे और अब उस कड़ी का विस्तार शहीद भगत सिंह तरण ताल से होकर पूरी दुनिया में फैल चुका है. गिरना, संभलना, निकलना, तैरना और चलना सब कुछ तरण लाल के गुरुओं के सानिध्य में सीखा जा सकता है, सैनी गुरु तो संगीत के धुन से लैस होकर स्विमिंग पूल के पानी की छपाक छपाक की ध्वनि से पूरे वातावरण को संगीतमय बनाने में महारत है, लक्ष्मण और मियां आरिफ की जुगल जोड़ी पानी में गंगा जमुनी तहजीब घोलते दिखेगी और युवा शिष्यों को प्रोत्साहित करते हुए पूरे जोश में लक्ष्मण पानी में कुचाले भरते दिखेंगे तो आरिफ भाई पुराने लखनऊ की धुन को समेटे अपनी ही नजाकत और नफासत के साथ पानी मे तैरते हुए शिष्यों को तैराकी के साथ अदब और तहज़ीब की मिसाल पेश करेंगे। तरणताल गुरुकुल की अनेक खूबियों में एक सबसे बड़ी खास बात है जहां गहमा गहमी, गुस्सा गर्मी होगी वहीं पानी मे जाते ही सिर्फ तैराकी और मोहब्बत दिखेगी, तन और मन दोनों का मैल मिट जाता है और पानी की तरह मस्तिष्क साफ हो जाता है।
तरणताल का अपना अलग कानूनी नज़रिया है जहां धरातल पर ब्रेस्ट स्ट्रोक करने पर अधिवक्ता पांडेय कानून की संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज करा देते वहीं तरुणताल में ब्रेस्ट स्ट्रोक करने पर वाह वाही मिलती है, आम ज़िंदगी मे बटरफ्लाई हवा में उड़ती है तो यहां इंसान पानी मे बटरफ्लाई बन कर खुशियों के आसमान पर दिखता है, मेंढक की तरह उछलना भी पड़ता है तो बंदरो की तरह कूदने की कलां में बौव्वा गुरु का अपना अलग ही तरह का आश्रम है, सुबह पानी मे डुबायेंगे तो रात में पानी मे खास द्रव्य मिलाकर इंसान को हवा में उड़ाने की इनकी कला को सीखने के लिए अनेक विदेशी लोग कतारों में खड़े दिखाए देते है ।
गुरु शिष्य की परंपरा से चल रहे इस खुशहाल परिवार के लिए अत्यंत उत्साह का दिन होता है जब शिष्य संपूर्ण रूप से परिपक़्व होकर पानी में चलने और दुनिया को तैरने की अपनी कला से प्रभावित कर उत्तीर्ण होता है और स्वेच्छा से शुक्ला गुरु के सानिध्य में जलेबी और खस्ते का प्रसाद वितरण कार्यक्रम में गुरुजनों द्वारा प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित करते हुए जिंदगी में सफलता की ऊंचाइयों को प्राप्त करने का आशीर्वाद दिया जाता है । गुरु शिष्य की परंपरा का ये अनूठा मेल समाप्त नहीं हो जाता है बल्कि गुरु शिष्य का यह परिवार एक दूसरे के सुख दुख में साथ खड़े होने और साथ निभाने के लिए हमेशा जुड़ा रहता है और तरणताल की गुरु शिष्य की लगभग 40 साल पुरानी परंपरा को इसी तरह आगे बढ़ाने के लिए चेला गुरु बनकर वचनबद्ध होकर इस परंपरा को आगे बढ़ाता है।
गोमती नदी भले ही दूषित हो गयी है लेकिन गुरुकुल की परम्परा उसी निर्मल, स्वच्छ् वातावरण में बहती जा रही है और उस्ताद हैदर को देखकर डाइविंग बोर्ड से बच्चे दौड़ते हुए उनके कदमों को छूकर जिस तरह प्रेमभाव प्रदर्शित करते है वो नाम प्रदर्शन करने की मज़हबी सियासत को आइना दिखते हुए गुरु’ को समर्पित दोहे को चरितार्थ करते हुए शहीद भगत सिंह तरण ताल के परिसर में जिवंत रूप में दिखती है ::
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।