नई दिल्ली | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को 10वें सिविल सर्विसेज डे के पुरस्कार समारोह को संबोधित कर रहे थे। यहाँ उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के लिए आवंटित किए गए पैसे का उपयोग सूखे से निपटने के लिए ‘जल संचयन’ के लिए होना चाहिए। इस दौरान उन्होंने सकारात्मक बदलाव के लिए एक हितकर माहौल के लिए जिला प्रशासनों के बीच एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का आह्वान भी किया।
मोदी ने मनरेगा का जिक्र करते हुए कहा, “गांवों में हर कोई जिंदगी में बदलाव चाहता है। मनरेगा पर बहु पैसा खर्च किया जा रहा है।” उन्होंने कहा, “मैं देश में सूखे की स्थिति से वाकिफ हूं। जल संकट है, लेकिन यह भी सच है कि मानसून अच्छा रहने की संभावना जताई गई है।” मोदी ने कहा, “हम मनरेगा के पैसे का उपयोग अप्रैल, मई व जून के महीनों में जल संचयन अभियान चलाने के लिए क्यों नहीं कर सकते?” मोदी ने कहा, “जन भागीदारी से कोशिशों में सफलता मिली है। नागरिक समाज का साथ बहुत जरूरी है।”
सरकार ने मंगलवार को सर्वोच्च न्यायालय में स्वीकारा कि 12 राज्यों के करीब 256 जिले सूखे से प्रभावित हैं, जिनकी आबादी करीब 33 करोड़ है। मोदी ने यह भी कहा कि जिला प्रशासनों के बीच एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होनी चाहिए। उन्होंने कहा, “देश में कर्तव्य के निर्वहन में जिला प्रशासनों के बीच एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होनी चाहिए।” उन्होंने कहा कि अगर उनके जिले पीछे रह जाते हैं और अच्छा काम करने पर नजर में नहीं आते हैं, तो उनसे आगे चल रहे जिलों को उनसे इसकी वजह जरूर पूछनी चाहिए।
प्रधानमंत्री ने कहा कि जिला प्रशासन को लोगों का भरोसा जीतने और अग्रसक्रिय रहने की कोशिश जरूर करनी चाहिए। मोदी ने कहा, “सिर्फ प्रशासक व नियंत्रक होना पर्याप्त नहीं है। हर किसी को हर स्तर पर बदलाव का एजेंट बनना होगा। चलिए हम एक ऐसा माहौल बनाएं, जहां हर कोई योगदान दे सके। 125 करोड़ भारतीयों की ताकत देश को आगे ले जाएगी।” उन्होंने लोगों से प्रत्येक बाधा को एक अवसर के रूप में लेने का अनुरोध किया। मोदी ने कहा, “जिंदगी में केवल वही लोग सुखी हो पाएंगे, जो थकते नहीं हैं और हर अड़चन को एक अवसर के रूप में लेते हैं।”