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सर्वोच्च न्यायालय ने आंध्र पुनर्गठन अधिनियम पर केंद्र से जवाब मांगा

नई दिल्ली, 2 अप्रैल (आईएएनएस)| सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को केंद्र से आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम के उचित कार्यान्वयन पर दिशा-निर्देश की मांग करने वाली याचिका पर जवाब दाखिल करने को कहा है।

अधिनियम के तहत ही राज्य का विभाजन हुआ था। न्यायमूर्ति ए.के. सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने केंद्र से पूछा कि विभाजन के बाद से इन चार सालों में आपने क्या किया है।

अदालत ने अतिरिक्त महाधिवक्ता (एएसजी) मनिंदर सिंह को चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। अदालत ने कहा, अधिनियम पारित हुए करीब चार साल हो चुके हैं और कुछ भी नहीं हुआ। अपना जवाब दाखिल कीजिए।

यह याचिका कांग्रेस नेता और विधान परिषद सदस्य पोंगुलेटी सुधाकर रेड्डी ने दायर की थी। उन्होंने आरोप लगाया कि अधिनियम के कई प्रावधान अभी तक लागू नहीं किए गए हैं, जिसमें तेलंगाना के लिए अलग उच्च न्यायालय का गठन शामिल है।

याचिका में कहा गया है, अधिनियम के कई प्रावधान केंद्र सरकार और उसके अंतर्गत आने वाले विभागों/मंत्रियों ने लागू नहीं किए। इसके परिणामस्वरूप दोनों राज्यों के लाखों लोगों को मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है और अधिनियन के प्रावधानों को लागू नहीं किए जाने से लोगों के बीच संसद की विश्वसनीयता घटेगी।

इसमें कहा गया है, जो बड़े प्रावधान लागू नहीं किए गए, उसमें हैं 10वीं अनुसूची में 107 राज्य संस्थानों में सुविधाओं की निरंतरता, 11वीं अनुसूची में नदी प्रबंधन, 12वीं अनुसूची में विशेष आर्थिक उपायों का आवंटन और बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल, खम्माम और कड़प्पा जिलों में इस्पात संयंत्र की स्थापना, तेलंगाना में चार हजार मेगावॉट क्षमता का विद्युत संयंत्र, रेलवे कोच फैक्ट्री, तेलंगाना और आंध्र में जनजातीय विश्वविद्यालय और तेलंगाना में बागवानी विश्वविद्यालय और आईआईटी, एनआईटी, आईआईएम, आईआईएसईआर, केंद्रीय विश्वविद्यालय, कृषि विश्वविद्यालय और एम्स शामिल हैं।

रेड्डी की ओर से पेश हुए वकील श्रवण कुमार ने कहा कि प्रावधानों को लागू नहीं करने से लोगों का संसद पर से विश्वास कम हो जाएगा।

अधिनियम दो जून, 2014 को प्रभावी हुआ था।

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