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आख़िर क्यों कपास छोड़ सोयाबीन की खेती अपना रहे किसान

आगामी बोआई सीजन में कपास का रकबा न सिर्फ महाराष्ट्र में अन्य प्रदेश में भी घटेगा और सोयाबीन का बढ़ेगा।

नई दिल्ली (आईएएनएस)। महाराष्ट्र के राज्य कृषि मूल्य आयोग के प्रमुख पाशा पटेल का कहना है कि प्रदेश के किसानों का रुझान इस साल कपास के बजाय सोयाबीन की फसल की तरफ होगा। उन्होंने कहा कि सोयाबीन के भाव में अप्रत्याशित इजाफा हुआ है और इसकी खेती में पिंकबॉलवर्म जैसा कोई खतरा भी नहीं है। इसलिए आगामी बोआई सीजन में कपास का रकबा न सिर्फ महाराष्ट्र में अन्य प्रदेश में भी घटेगा और सोयाबीन का बढ़ेगा।

पाशा पटेल ने कहा कि सोयाबीन की कीमतों में पिछले साल के मुकाबले 1,000 रुपये प्रति क्विंटल से ज्यादा का इजाफा हुआ है और इसकी मांग भी देश में जबरदस्त है क्योंकि भारत खाद्य तेल की अपनी अधिकांश जरूरतों की पूर्ति आयात से ही करता है। जाहिर है कि भारत का खाद्य तेल आयात तकरीबन 150 लाख टन सालाना है।

उधर, कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने अपने मासिक विश्लेषण में आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया है कि कपास के बजाय सोयाबीन की खेती के प्रति इस साल किसानों का रुझान ज्यादा होगा। एसोसिएशन के प्रमुख अतुल गंतरा ने इसके दो प्रमुख कारण गिनाए। उनके मुताबिक, एक तो पिंक बॉलवर्म का प्रकोप है दूसरा कपास चुनने में मजदूरों का अभाव और दोनों से ही किसान परेशान हैं।

गंतरा ने कहा कि कपास उत्पादक पिंकबालवर्म से महाराष्ट्र और तेलंगाना में काफी परेशान रहे हैं और सोयाबीन उनके लिए लाभकारी व ज्यादा दाम दिलाने वाली फसल साबित हुआ है। वहीं कपास चुनने के लिए एक तो मजदूर नहीं मिलता है दूसरा चुनने की लागत भी ज्यादा है। यहां तक कि एक क्विंटल रूई पर कपास चुनने की लागत 1,000 रुपये से अधिक आती है। ऐसे में ऊंचे भाव पर बिकने के बावजूद भी यह किसानों के बहुत लाभकारी फसल साबित नहीं हुई है। ये सब कुछ ऐसी बातें हैं जिनसे आगामी बोआई सीजन में देशभर में कपास की खेती पर असर दिखेगा।

इसके अलावा, एक और बात है कि इस साल फिर मानसून की बरसात अच्छा होने की संभावना है जिससे खाद्य फसलों की तरफ किसानों का झुकाव बढ़ सकता है। हालांकि दो दिन पहले मुंबई में आयोजित सीएआई के सम्मेलन में भारत की टेक्सटाइल कमीश्नर कविता गुप्ता ने भी कहा कि कपास का रकबा भले ही आगामी बोआई सीजन में थोड़ा कम रहे मगर, रूई के उत्पादन में कोई कमी नहीं रहेगी। उनका यह अनुमान शायद उत्पादकता में बढ़ोतरी की उम्मीदों से प्रेरित है।

इसी सम्मेलन में शीर्ष उद्योग संगठन ने देश में 2017-18 में रूई के अपने उत्पादन के आंकड़ों में थोड़ी कटौती करके 360 लाख गांठ उत्पादन का अनुमान पेश किया। पिछले महीने सीए आई ने 362 लाख गांठ का उत्पादन का अनुमान लगाया था। इसी प्रकार खपत में बढ़ोतरी कर 320 के बजाए 324 लाख गांठ रहने का अनुमान जाहिर किया है। सीएआई के मुताबिक इस साल देश से 65-70 लाख गांठ रूई का निर्यात हो सकता है जबकि आयात 20 लाख गांठ रहेगा।

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Vineet Bajpai
the authorVineet Bajpai
Senior Reporter & Copy Editor