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प्रधान न्यायाधीश पर महाभियोग खतरनाक कदम : विधि विशेषज्ञ

नई दिल्ली, 22 अप्रैल (आईएएनएस)| कानून के क्षेत्र में महारत रखने वाले अनेक लोगों व संविधान के विशेषज्ञों ने सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर महाभियोग चलाने के विपक्ष के प्रस्ताव की निंदा करते हुए शनिवार को इसे ‘दुर्भाग्यपूर्ण, आत्मघाती व खतरनाक’ कदम बताया।

भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश टी. एस. ठाकुर ने इस परिस्थिति को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ बताया, जबकि सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधी बी. सुदर्शन रेड्डी ने इसे ‘आत्मघाती व खतरनाक’ कदम करार दिया।

पूर्व लोकसभा महासचिव सुभाष सी. कश्यप ने कहा कि प्रस्ताव ‘विशुद्ध दलीय राजनीति’ से प्रेरित है।

सुभाष कश्यप ने दावे के साथ कहा कि संविधान के प्रावधानों के तहत सिर्फ राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाया जा सकता है। अनुच्छेद 124 में न्यायाधीश को कदाचार या अयोग्यता सिद्ध होने की सूरत में हटाने की बात कही गई है। न्यायाधीश पर महाभियोग चलाने का कहीं उल्लेख नहीं है।

दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में वकालत कर रहे आर. एस. सोढ़ी ने कहा, यह कांग्रेस का अत्यंत अपरिपक्व कदम और राजनीतिक हाराकिरी है।

प्रधान न्यायाधीश ने जब एक न्यायाधीश की मौत की जांच की मांग खारिज कर दी, तब प्रधान न्यायाधीश पर अन्य आरोप लगाते हुए कांग्रेस की अगुवाई में विपक्षी सात दलों ने 20 अप्रैल को राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू से मिलकर उन्हें प्रधान न्यायाधीश को कदाचार के आरोपों के आधार पर हटाने के लिए महाभियोग चलाने का प्रस्ताव सौंपा।

हैदराबाद से आईएएनएस से बातचीत में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश रेड्डी ने कहा, महाभियोग प्रस्ताव लाने वाले राजनीतिक दलों के लिए यह आत्मघाती कदम है।

उन्होंने दावे के साथ कहा, प्रथम दृष्टया प्रधान न्यायाधीश पर किसी कदाचार का आरोप तय करने के लिए कोई साक्ष्य नहीं है। उन्होंने कहा कि अनियमितता से कदाचार तय नहीं होता है।

मसले की गहराई में जाने से मना करते हुए पूर्व प्रधान न्यायाधीश टी.एस. ठाकुर ने कहा, यह अत्यंत दुर्भाग्यपूण है कि शीर्ष न्यायपालिका को इस संकट का सामना करना पड़ रहा है।

वहीं, कश्यप ने जोर देकर कहा कि महाभियोग प्रस्ताव बिल्कुल सफल नहीं होने वाला है। सुभाष कश्यप संसदीय नियमों व प्रक्रियाओं के जानकार हैं।

उन्होंने कहा, यह विशुद्ध दलीय राजनीति है। इसका मकसद न्यायपालिका और सरकार, यानी सत्ताधारी दल को परेशान करना है। यह पारित नहीं होने वाला है।

पूर्व लोकसभा महासचिव न्यायमूर्ति रेड्डी की बात से सहमत थे कि यह विपक्ष का यह खतरनाक कदम है।

इससे पहले 12 जनवरी को सर्वोच्च न्यायालय की कार्यप्रणाली से असंतुष्ट और वरिष्ठतम न्यायाधीशों में शुमार न्यायमूर्ति जे. चेलामेश्वर ने भी कहा था कि महाभियोग उच्चतर न्यायपालिका में हर समस्या का निदान नहीं है।

कश्यप ने कहा कि राज्यसभा सभापति एम. वेंकैया नायडू को अगर लगता है कि प्रस्ताव में कोई साक्ष्य नहीं है तो खुद अपने स्तर पर महाभियोग के नोटिस को अस्वीकार कर सकते हैं।

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