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देश में 1000 में 1 वयस्क एंकायलूजिंग स्पॉन्डिलाइटिस से पीड़ित : विशेषज्ञ

नोएडा, 4 मई (आईएएनएस)| आज के दौर में जहां एक ओर जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के बारे में जागरूकता कई गुना बढ़ गई है, वहीं दूसरी ओर जागरूकता के अभाव में एंकायलूजिंग स्पॉन्डिलाइटिस (ए.एस.) जैसी बहुत-सी बीमारियों के खतरे का सामना लोगों को करना पड़ता है। इसका परिणाम यह है कि देश में हर 1000 में एक वयस्क एंकायलूजिंग स्पॉन्डिलाइटिस से पीड़ित है। इसे जोड़ों, रीढ़ और कूल्हे की क्रॉनिक सूजन के रूप में जाना जाता है। जे.पी. अस्पताल मेंयूर्मेटोलॉजी विभाग की कन्सलटेंट डॉ. सोनल मेहरा का कहना है, एंकायलूजिंग स्पॉन्डिलाइटिस महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक पाया जाता है। भारत में हर 1000 में से एक वयस्क इस बीमारी का शिकार है और ये मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।
यह बीमारी 40 साल से कम उम्र के युवाओं में ज्यादा पाई गई है, और इसके प्रमुख कारणों में गतिहीन जीवनशैली, बैठने का गलत तरीका, तनाव, काम का बहुत अधिक दबाव शामिल हैं। इसके चलते कई बार दर्द बहुत गंभीर रूप ले लेता है।

डॉ. मेहरा ने कहा, भारत में तकरीबन 40 लाख लोग ए.एस. से पीड़ित हैं। यह बीमारी युवाओं में आजकल आम है और जीवन के सबसे उपयोगी वर्षों में उनपर बुरा असर डाल रही है। इस बीमारी में मरीज को पीठ के नीचले हिस्से और गर्दन के पिछले हिस्से में बहुत ज्यादा दर्द एवं अकड़न महसूस होती है।

रोग के जल्दी निदान के महत्व के बारे में जेपी अस्पताल में स्पाइन सर्जरी विभाग केकंसल्टेंट डॉ. सौरभ रावल ने कहा, आज भी आम जनता ही नहीं, बल्कि डॉक्टरों में भी ए.एस. के बारे में जागरूकता की कमी है, जिसके चलते बीमारी का पता समय पर नहीं चल पाता। रोग का पता चलने के बाद जरूरी है कि जल्द से जल्द मरीज का सही इलाज शुरू किया जाए, दवाओं के साथ थेरेपी भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

ए.एस. एक क्रोनिक इन्फ्लामेटरी बीमारी है, जो मुख्य रूप से कूल्हों, नितंबों और रीढ़ की हड्डी के जोड़ों को प्रभावित करती है। 40 फीसदी मामलों में इसका असर अन्य जोड़ों पर भी पड़ सकता है, जैसे कंधे, पसलियां, घुटने और हाथ-पैर के छोटे जोड़ों में। कभी-कभी इसका असर आंखों पर और बहुत ही कम मामलों में दिल और फेफड़ों पर भी पड़ सकता है। इसकी बाद की अवस्थाओं में मरीज को चलने-फिरने, रोजमर्रा के काम करने में मुश्किल हो सकती है।

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