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सुषमा की दो टूक- ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों से फर्क नहीं पड़ता, कारोबार जारी रहेगा

अमेरिका की तरफ से ईरान और वेनेजुएला पर प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद भी भारत उनके साथ कारोबार करना जारी रखेगा. सुषमा स्वराज ने यह बात मोदी सरकार के 4 साल पूरा होने के मौके पर संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा. साथ ही उन्होंने जोर देते हुए कहा कि भारत सिर्फ संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों को मानता है. आपको बता दें कि सोमवार को राजधानी दिल्ली में सुषमा स्वराज और उनके ईरानी समकक्ष जावद जरीफ की मुलाकात भी हुई है.

विदेश मंत्री स्वराज ने कहा, ” हम सिर्फ संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों को ही मानते हैं.” स्वराज ने अमेरिकी प्रतिबंधों का ईरान और वेनेजुएला से भारत के तेल आयात पर असर पड़ने के सवाल में जवाब में यह टिप्पणी की. उन्होंने यह भी कहा कि भारत किसी भी देश के दबाव में अपनी विदेश नीति नहीं बनाता है.

इस माह की शुरुआत में अमेरिका ने ईरान के साथ 2015 में हुए परमाणु समझौते से खुद को अलग कर लिया था. इस निर्णय की घोषणा के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के खिलाफ फिर से प्रतिबंध लगा दिए थे.

अमेरिका ने वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो के पुनर्निर्वाचन के बाद उसके खिलाफ प्रतिबंधों को और सख्त करने की घोषणा की थी. ईरान भारत का तीसरा सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता है, जबकि वेनेजुएला भारत को तेल की आपूर्ति करने वाले प्रमुख देशों में शुमार है.

ईरानी विदेश मंत्री के साथ सुषमा की बैठक

स्वराज ने सोमवार ईरान के विदेश मंत्री जावद जरीफ के साथ विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की. इस बैठक में ईरानी विदेश मंत्री ने दुनिया की ताकतों के साथ ईरान के परमाणु करार को बचाने के लिए भारत से समर्थन मांगा. सूत्रों ने बताया कि इस बैठक में भारत के ईरान के साथ कच्चे तेल के कारोबार तथा चाबहार बंदरगाह परियोजना पर भी प्रमुखता से बातचीत हुई.

विदेश मंत्रालय ने बयान में कहा कि जरीफ ने अमेरिका द्वारा समझौते से बाहर निकलने के बाद ईरान की संयुक्त वृहद कार्रवाई योजना (जेसीपीओए) के पक्षों के साथ हुई बातचीत का भी ब्योरा दिया.

जरीफ की भारत यात्रा का मकसद अमेरिका द्वारा 2015 के ऐतिहासिक परमाणु करार से बाहर निकलने के बाद दुनिया की प्रमुख ताकतों के समक्ष अपने पक्ष को रखने के प्रयास का हिस्सा है. सूत्रों ने बताया कि जरीफ ने परमाणु करार पर भारत का समर्थन मांगा. चीन, रूस और कई यूरोपीय देश भी इस करार को कायम रखने के लिए प्रयासरत हैं.

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