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धड़क ट्रेलर रिव्यू: फिल्म हिट होगी, क्योंकि हमें इस तरह के पैखाने की आदत हो गई है

मुंबई। श्रीदेवी के बेटी जाह्नवी कपूर और शाहिद कपूर के भाई ईशान खट्टर की फिल्म धड़क का ट्रेलर रिलीज कर दिया गया है। ‘धड़क’ मराठी की सुपरहिट और राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित फिल्म ‘सैराट’ का हिंदी रीमेक है। ‘धड़क’ का ट्रेलर देखकर पता चलता है कि इस बार इस मासूम प्रेम कहानी को महाराष्ट्र से उठाकर राजस्थान के बैकग्राउंड में रखा गया है, लेकिन इतना तो तय है कि ये फिल्म लोगों को सैराट वाली संतुष्टि नहीं दे पाएगी।

सबसे पहले यह बता दूं कि सैराट की चली हुई सुपर डुपर हिट आंधी के लगभग दो महीने बाद मैंने इसे देखा था या यह कह लें कि तब तक देखना नसीब नही हुआ था तब भी गलत नही होगा। देखिये मेरे कोई “सेट पैमाने” नहीं हैं कि किसी विशेष खांचे में यदि फ़िल्म फिट होगी तभी मेरी नज़र में वो हिट होगी। मेरे मन मे जो सवाल उतपन्न हुए वह यह थे कि उस मासूम बालक का क्या हुआ होगा जो फ़िल्म के आखिरी फ्रेम में अकेला रह जाता है?? आर्ची और पार्श्या के निःस्वार्थ प्रेम का यही जायज़ मुक़ाम था?? क्या आज नफ़रत प्रेम पर हावी है और क्या प्रेम करने के लिए किसी सामाजिक लाइसेंस की आवश्यकता होती है?

यकीं कीजिये अंत के दस मिनट मैं स्तब्ध था। मेरी आँखें वह मंज़र, वह दृश्य देखकर फटी की फटी रह गयी थी। देखिये जहाँ तक “सैराट” का प्रश्न है उसके हिट होने का कारण ही कुछ और है। यदि आप इनडेप्थ एनालिसिस करेंगे तो पाएंगे कि यह नागराज मंजुले का ईमानदार प्रयास था। ध्यान रहे प्रयास और अप्रोच ईमानदार था, नॉर्मल नहीं वरना सैराट, सैराट कभी न बनती। इसके किरदारों में आपका दिल चीरकर निकल जाने वाली बात थी। इन किरदारों को फिर से जीना अब किसी के बस की बात नही है। यहाँ तक कि स्वयं नागराज और उनकी पूरी टीम फिर से ठीक यही कलाकृति का निर्माण नही कर सकते।

रही रीमेक की बात तो यह पैसेवालों का बाज़ार है साहब, यहाँ पैसा फेंको, राइट्स खरीदो, स्टार किड्स को बाज़ार में बिना तैयारी के उतारो और फ़िल्म के साथ साथ अपने बच्चों का भी तमाशा बना दो। यह फ़िल्म जिम, योगा, डांस या एक्टिंग क्लास जाकर नहीं की जा सकती और ना ही “न” को “ण” बोलने से कोई प्रांतीय भाषा बोली जा सकती है।

आप जाकर स्वयं गूगल कीजिये कि जाह्नवी को यह फ़िल्म कैसे मिली, आपको समझ आ जाएगा कि इनका फिल्मों में आना और मर्द जात का सड़क किनारे खड़े होकर किसी दीवार को गीला करना दोनों ही बड़े सुगम कार्य हैं। ठीक यही कार्य कपूर खानदान के चश्मोंचिराग ने अर्जुन ने “तेवर” नामक बवासीर बनाकर की थी। दसों साल पहले बनी “विजय” अभिनीत “गिल्ली” का ऐसा दर्दनाक स्वरूप देखकर मेरी रूह कांप गयी थी।मेरा सिर्फ यह सवाल है कि…

“अपने बच्चों पर ऐसे बोरे लादते ही क्यों हो जब आपको पता है कि वह उसे उठा भी नही पाएंगे और आप इन्हें इस बोझ के साथ दौड़ाना चाहते हो??” पर यह फ़िल्म हिट होगी क्योंकि हमें इस प्रकार के पैखाने की आदत हो गयी है। श्रीदेवी जी का फैन प्रेम उनके बच्चों को उबार कर ले जाएगा और ये स्टार किड्स अगले दो साल की फिल्मो को साइन करके पुनः आग xxxxx को तैयार मिलेंगे और….और…इसी गलतफहमी में पलते हुए जब इनका पांच साल बाद सूपड़ा साफ़ हो जाएगा तब यही अपनी नाकामयाबी का ठीकरा किसी गरीब निर्देशक पर फोड़ते दिखेंगे।

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BRIJESH SINGH
the authorBRIJESH SINGH