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बुंदेलखंड की महिलाएं पानी से भरेंगी धरती का पेट

छतरपुर/ललितपुर, 20 जून (आईएएनएस)| मानसून दस्तक देने की तैयारी में है, मगर बुंदेलखंड का इलाका बूंद-बूंद पानी के संकट के दौर से गुजर रहा है। कई-कई किलोमीटर का रास्ता तय करने के बाद पीने का पानी नसीब हो पा रहा है। पानी का इंतजाम करने के लिए सबसे ज्यादा संघर्ष करने वाली महिलाओं ने संकल्प लिया है कि वे पानी से धरती का पेट भरने में पीछे नहीं रहेंगी, ताकि आने वाले वर्षो में उन्हें इस तरह की समस्या से न जूझना पड़े।

बुंदेलखंड वह इलाका है, जहां कभी 9000 से ज्यादा तालाब और इससे कहीं ज्यादा कुएं हुआ करते थे। लगभग हर घर में एक कुआं होता था। आज ऐसा नहीं है। दूसरी तरफ , पानी संग्रहण और संचय की प्रवृत्ति भी कम हो गई है। इसके साथ ही पानी का दोहन बढ़ गया है।

छतरपुर जिले के बड़ा मलेहरा के झिरिया झोर की पानी पंचायत की सचिव सीमा विश्वकर्मा बताती हैं, इस इलाके में पानी का संकट बना हुआ है। झिरिया झोर की महिलाओं ने बीते वर्षो में कई स्थानों पर पानी रोकने का काम किया था, उसी का नतीजा है कि एक तालाब में अब भी पानी बचा हुआ है। गांव के हैंडपंप ने पानी देना बंद कर दिया है, यहां की कई महिलाएं हैंडपंप भी सुधार लेती हैं, अगर पाइप मिल जाएं तो हैंडपंप को और गहरा करके पानी हासिल करने का प्रयास कर सकती हैं।

ललितपुर के तालबेहट के निवासी बुजुर्ग रामसेवक पाठक हरिकिंकर (70) बताते हैं, पहले बुंदेलखंड के लगभग हर घर में कुआं हुआ करता था, आज लोगों ने कुएं खत्म कर दिए हैं, बोरिंग पर जोर है, लिहाजा पानी का स्तर नीचे चला गया है। इतना ही नहीं, तालाबों व अन्य जलस्रोतों तक बारिश का पानी पहुंचने के रास्ते भी बंद हो गए हैं, अगर अब भी नहीं जागे तो आने वाले वर्षो में हालात और भी बिगड़ेंगे।

बुंदेलखंड में महिलाओं में जल संरक्षण के प्रति जागृति लाने के लिए ग्रामीण स्तर पर काम करने वाली जल सहेली गनेशी बाई बताती हैं कि क्षेत्र की महिलाओं ने संकल्प लिया है कि इस बार बारिश के पानी को बहकर नहीं जाने देंगी। उसे धरती के पेट तक पहुंचाने के लिए जगह-जगह पानी को रोकेंगी। ऐसा करने से भूजल स्तर बढ़ेगा और पानी के संकट से काफी हद तक मुक्ति मिलेगी।

तालबेहट नगर पंचायत की अध्यक्ष मुक्ता सोनी का कहना है कि पानी से सीधा जुड़ाव महिलाओं का होता है, यह वह इलाका है, जहां पानी की व्यवस्था भी महिलाओं के जिम्मे होती है। पानी संरक्षण के लिए तो महिलाएं काम करेंगी ही। साथ ही वे एक महिला जनप्रतिनिधि हैं, इसलिए उन्होंने निर्णय लिया है कि जो नए मकान नगर में बनेंगे और रेन वाटर हार्वेटिंग सिस्टम की व्यवस्था करेगा, उसे 100 फीसदी गृहकर में छूट दी जाएगी।

बुंदेलखंड के कई गांव में सामाजिक संगठनों ने पानी पंचायतें बनाई हैं, इन पानी पंचायतों में से दो को ‘जल सहेली’ चुना जाता है। यह पानी पंचायत और जल सहेलियां मिलकर पानी संरक्षण के प्रति जनजागृति लाने का प्रयास करती हैं। जल सेहली रानी उपाध्याय कहती हैं कि ‘जल है तो जीवन है’- यही संदेश वे महिलाओं को दे रही हैं।

उन्होंने कहा, हम सबने ठाना है कि इस बार मानसून की बारिश के पानी को जगह-जगह रोकेंगे और बेकार बह जाने वाले पानी को तालाबों तक पहुंचाएंगे, ताकि जलस्तर नीचे न जाए और गर्मियों में पानी का संकट न गहराए।

मध्य प्रदेश के छह जिले- छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना, दमोह, सागर, दतिया और उत्तर प्रदेश के सात जिलों- झांसी, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, बांदा, महोबा, कर्वी (चित्रकूट) को मिलाकर बुंदेलखंड बनता है। सूखे के कारण इस क्षेत्र में खेती हो नहीं पा रही है और गांव में काम नहीं है, लिहाजा यहां से बड़ी संख्या में लोग काम की तलाश में दिल्ली, गुरुग्राम, गाजियाबाद, पंजाब, हरियाणा और जम्मू कश्मीर के लिए पलायन कर रहा है। तालाब मैदान में बदल गए हैं। कुओं की तलहटी सूखी नजर आने लगी है। कई हिस्सों में तो लोग पानी के लिए पूरा-पूरा दिन लगा देते हैं।

बुंदेलखंड की महिलाओं ने पानी बचाने, संग्रहीत करने और धरती का पेट भरने का संकल्प लिया है और अगर इसमें वे सफल होती हैं तो आने वाले दिनों में इस इलाके की सूरत बदलेगी जरूर, ऐसी उम्मीद तो की ही जा सकती है।

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