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आपातकाल: जब देश पर बरपा था इंदिरा का कहर, जबरन कर दी गई थी 60 लाख लोगों की नसबंदी

नई दिल्ली। देश के इतिहास में कुछ तारीखें ऐसी हैं जिन्हे कभी भुलाया नहीं जा सकता। जैसे 15 अगस्त और 26 जनवरी। लेकिन एक तारीख ऐसी भी है जो लोगों के मन में आज भी सिहरन पैदा कर देती है। वो तारीख है 25 जून 1975। यही वो काला दिन है जब तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूरे देश में आपातकाल लागू कर दिया था। आपातकाल की जिस तरह से शुरुआत हुई लोगों ने अमूमन इसका स्वागत किया। लोगों को लगा कि इंदिरा ने पटरी से उतरी व्यवस्थाओं को ठीक करने के लिए आपातकाल लागू किया है। इसका असर दिखा भी।

सरकारी मुलाजिम समय पर दफ्तर जाने लगे, मास्टर स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने लगे। घूसखोरी बंद हो गई। आलम यह था कि खेतों में काम करने वाले हरवाह भी पूरे वक्त मेहनत करते क्योंकि उनके किसान मालिक यह कहते हुए धमकाते थे कि कामचोरी करोगे तो पुलिस बंद कर देगी। गांव से शहर जाने वाली बसें इतनी पाबंद हो गईं कि उनके आने-जाने पर आप घड़ी मिला लें, लेकिन आपातकाल की सबसे ज़्यादा भयावह यादें नसबंदी अभियान से जुड़ी हैं, जिसमें कई लोगों को लालच और धोखे से जबरन नसबंदी करने पर मजबूर किया गया। आपातकाल लागू करते हुए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रेडियो पर अपने संबोधन में कहा, “राष्ट्रपति ने आपातकाल की घोषणा कर दी है। इससे घबराने की ज़रूरत नहीं है। मुझे यकीन है कि आप इस गहरी और बड़ी साज़िश के बारे में जानते ही होंगे।

दिल्ली में सफ़ाई के नाम पर झुग्गियों को गिराना शुरू कर दिया। झुग्गी बस्तियों को साफ़ करने, नए मकान बनाने, सड़कें बनाने के बजाय उन्होंने झुग्गियों को गिराना शुरू कर दिया। उस समय की सबसे ख़राब बात थी- काला कानून। आबादी नियंत्रित करने के लिए उन्होंने नसबंदी शुरू की। लोगों के उनके घर के नजदीक लगे नसबंदी शिविर ले जाकर नसबंदी कर दी जाती थी। शुरुआत में लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए उन्हें ज़मीनें भी दी गईं लेकिन फिर वह घटते-घटते पांच किलो घी के टिन और एक घड़ी पर आ गया। ऐसे भी लोग थे जिन्हें नसबंदी करवाने पर ज़मीन देने का वादा तो किया गया था लेकिन मिली नहीं। पहले तो नसबंदी रज़ामंदी से की जानी थी लेकिन बाद में यह जबरदस्ती पकड़-पकड़कर की जाने लगी। लोगों को बसों से उतारकर, घरों से पकड़कर जबरदस्ती उनकी नसबंदी कर दी गई।

एक रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ एक साल के भीतर देशभर में 60 लाख से ज्यादा लोगों की नसबंदी कर दी गई इनमें 16 साल के किशोर से लेकर 70 साल के बुजुर्ग तक शामिल थे। यही नहीं गलत ऑपरेशन और इलाज में लापरवाही की वजह से करीब दो हजार लोगों को अपनी जान तक गंवानी पड़ी। जिन लोगों को नसबंदी में ज़्यादतियों के लिए ज़िम्मेदार माना जाता है उनमें से एक इंदिरा गांधी के 29 वर्षीय बेटे संजय गांधी थे। इस दौरान जीवन के हर क्षेत्र में आतंक का माहौल बन गया था। जिसका सबक जनता ने कांग्रेस को बखूबी सिखाया। जनता ने न केवल कांग्रेस बल्कि इंदिरा गांधी को भी धूल चटा दी, 16 मार्च को हुए चुनाव में इंदिरा और उनके बेटे संजय गांधी दोनों हार गए।

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BRIJESH SINGH
the authorBRIJESH SINGH