पश्चिम बंगाल की सीमा के पास झारखंड के गोड्डा जिला स्थित हैं.यह जिला भारत की सबसे पुरानी कोयले की खानों में से एक माना जाता है। हालांकि इस इलाके में देश में सबसे कम विद्युतीकरण दर है। गोड्डा में अडानी पॉवर लिमिटेड का 1600 मेगावॉट की क्षमता वाला एक ऊर्जा संयंत्र विवादों में फंस गया है।
आपको बता दे अडानी पावर लिमिटेड 1,600 मेगावाट के थर्मल पावर प्रोजेक्ट का निर्माण कर रहा है लेकिन सबसे चौकाने वाली बात यह है कि यहां से पर बनने वाली बिजली अब स्थानीय उपयोग के लिए नहीं होगी बल्कि इसे सीमा के पार बांग्लादेश की आपूर्ति की जाएगी। साथ ही साथ आपको बता दे की यहाँ किसानों ने अडानी ग्रुप को जमीन देने से इंकार कर दिया है। राज्य की पालिसी के अनुसार झारखंड कानूनी रूप से राज्य के भीतर चलने वाल वाले थर्मल पावर परियोजनाओं द्वारा उत्पन्न बिजली का 25% खरीदने का हकदार है। तो वहीँ अदानी पावर लिमिटेड ने कहा हम इस आवश्यकता को पूरा करेगा लेकिन दूसरे स्रोत से, जिसको अभी स्पष्ट नहीं किया गया है।
Scroll.in की रिपोर्ट की माने तो प्राप्त सरकारी दस्तावेजों से पता चलता है कि झारखंड ने 2016 में अपनी ऊर्जा नीति में संशोधन किया है ताकि कंपनी अन्य थर्मल परियोजनाओं के राज्य की तुलना में राज्य में अधिक कीमत पर बिजली बेच सके।
आपको बता दे कि यह झारखंड ऊर्जा नीति में बदलाव से राज्य को 294 करोड़ का सालाना नुकसान होगा। यह समझौता 25 साल का है तो इससे 7410 करोड़ रु का नुकसान होने की संभावना है।
बांग्लादेश को बिजली देने का हुआ है समझौता
खबरों के अनुसार 2015 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ढाका यात्रा पर गए थे तब उन्होंने शेख हसीना से अनुरोध किया था कि बांग्लादेश में भारतीय ऊर्जा कंपनियों को भी मौका दिया जाए क्योंकि बांग्लादेश में बिजली की भारी कमी है। इससे पहले साल 2010 में एनटीपीसी और बांग्लादेश पॉवर डेवलपमेंट बोर्ड के बीच एक समझौता हुआ था इसके तहत बांग्लादेश में कोयले से चलने वाले दो ऊर्जा संयंत्र बनाए जाने थे। 6 जून 2015 को अपनी पहली ढाका यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत बांग्लादेश के 2021 तक 24,000 मेगावाट ऊर्जा के लक्ष्य को पाने में उसकी मदद कर सकता है।