Monsoon Session Of Parliament 2018National

मानसून सत्र : मुरझाया विपक्ष मुस्कुराया कमल, जानिए अविश्वास प्रस्ताव के 7 मायने

साभार - इंटरनेट

मानसून सत्र 18 जुलाई से शुरू हो चुका है। मोदी सरकार मानसून सत्र के दौरान होने वाली 18 बैठकें में ज़्यादा से ज़्यादा विधेयकों की पास कराना चाहती है। लेकिन सत्र के पहले ही दिन मोदी सरकार के ख़िलाफ़ पहला अविश्वास प्रस्ताव लाया गया, जिसे लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने स्वीकार कर लिया। विपक्ष के लिए भी मौका है कि वह जिस महागठबंधन का प्रयोग जमीनी स्तर पर कर रहा है उसे सदन में जिन्दा कर दिखलाए।लेकिन, क्या विपक्ष ऐसा कर पाएगा?

संसद भवन से मिशन 2019 का इलेक्शन कैम्पेन  – अविश्वास प्रस्ताव चुनाव अभियान का श्रीगणेश है। यह वर्तमान मोदी सरकार के लिए सुनहरा अवसर भी है क्योंकि सत्ताधारी दल एक पार्टी के रूप में और गठबंधन के रूप में कहीं अधिक संगठित और एकजुट है। संचार के माध्यमों का बेहतरीन उपयोग बीजेपी से बेहतर करने की स्थिति में कोई नहीं है।

विपक्ष के लिए चुनौती है अविश्वास प्रस्ताव – वहीं, विपक्ष खासकर कांग्रेस के लिए यह ऐसा अवसर है जब वह अपने प्रयासों से चौंका सकती है। अकेले कांग्रेस के बूते की बात नहीं है कि वह बीजेपी को संसद से चुनाव प्रचार में संसाधनों के इस्तेमाल में हरा सके, मगर ये मौका होगा जब वह महागठबंधन को एकजुट कर संसद में चुनाव का अभियान चलाए। अगर ऐसा हुआ तो सत्ताधारी दल से पीछे रहकर भी कांग्रेस एक उम्मीद पैदा कर सकेगी।

विपक्ष का है ही नहीं यह अविश्वास प्रस्ताव – 4 साल में मोदी सरकार के खिलाफ पहला अविश्वास प्रस्ताव। अपने आप में सत्ता पक्ष की जीत और विपक्ष की हार का प्रतीक है यह। विपक्ष की हार इसलिए भी है क्योंकि वास्तव में यह अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष का है भी नहीं। यह एनडी सरकार में चार साल तक रहे टीडीपी का अविश्वास प्रस्ताव है जो नितांत क्षेत्रीय मुद्दे पर है। यही वजह है कि अविश्वास प्रस्ताव को लेकर खुद विपक्ष असहज दिख रहा है।

चार साल फेल रही कांग्रेस – यह अविश्वास प्रस्ताव इस बात पर मुहर लगाता है कि कांग्रेस मोदी सरकार के खिलाफ बीते चार साल में कोई अविश्वास प्रस्ताव लाने में विफल रही। यह उस कांग्रेस की रणनीतिक हार भी है जिसके पास विपक्ष का दर्जा तक नहीं है।

संसद में क्यों नहीं दिखा महागठबंधन – जिस महागठबंधन के बूते कांग्रेस बीजेपी सरकार को सत्ता से बाहर करने का सपना देख रही है वह महागठबंधन अविश्वास प्रस्ताव के मामले में बीते चार सालों में कभी क्यों नहीं दिखा? यह किसकी असफलता है? केवल चुनाव के दौरान महागठबंधन की रट से क्या मतदाता मोदी विरोधी दलों पर विश्वास कर पाएंगे?

अविश्वास प्रस्ताव के लिए राष्ट्रीय मुद्दा तक नहीं – यह मोदी सरकार की सफलता है और मोदी विरोध की विफलता कि अविश्वास प्रस्ताव के लिए किसी भी दल के पास राष्ट्रीय मुद्दा तक नहीं है। इसे यूं भी कह सकते हैं कि कोई ऐसा राष्ट्रीय मुद्दा नहीं है जिस पर मोदी विरोधी दल एकजुट हो सकें।

टीडीपी के अविश्वास प्रस्ताव का दबाव मोदी नहीं नीतीश सरकार पर – आपको आश्चर्य होगा लेकिन यही सच है। अविश्वास प्रस्ताव मोदी सरकार के खिलाफ है और बेचैन है नीतीश सरकार। कारण ये है कि टीडीपी ने आन्ध्र प्रदेश को विशेष राज्य देने के वादे से मुकरने का आरोप लगाते हुए यह अविश्वास प्रस्ताव लाया है।

यही कारण नीतीश कुमार के पास भी है, बिहार के पास भी है। मगर, राजनीतिक मजबूरी के कारण नीतीश न इस अविश्वास प्रस्ताव का साथ दे पाएंगे और न ही खुद ऐसे किसी अविश्वास प्रस्ताव के साथ आ पाएंगे। बिहार की राजनीति में उनके लिए आने वाला समय इस लिहाज से उन्हें बेचैन करने वाला होगा।

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