नई दिल्ली। देश को आजाद हुए 71 साल बीत गए है,जल्द ही हम 72वां स्वंत्रता दिवस मनाने जा रहे हैं। लेकिन उनके जुल्म के निशां आज भी जगह-जगह पर मौजूद है। यूं तो हर गांव और हर शहर में एक बरगद का पुराना पेड़ होता है। जो परिवार के किसी बुजुर्ग सदस्य की तरह अपने आसपास रहने वाले सभी लोगों को आश्रय देता है।
24 दीवानों को इसी पेड़ पर फांसी पर लटका दिया गया था
लेकिन, हम आपको आज ऐसे बरगद के पेड़ के बारे में बताने जा रहा है, जिसे देखकर लोग सहम जाते हैं। बरगद का ये प्राचीन पेड़ मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल मंडला शहर में है। 1857 की बगावत को दबाने के लिए अंग्रेजों ने आजादी के 24 दीवानों को इसी पेड़ पर फांसी पर लटका दिया था।
बरगद के इस पेड़ पर आज भी फांसी के फंदे में काम आने वाले लोहे के मोटे शिकंजे कसे हुए नजर आते है। अंग्रेजों ने खौफ पैदा करने के लिए कई लोगों को इस पेड़ पर फांसी पर लटकाया। आजादी के अधिकांश मतवाले गुमनामी में खो गए। आशाजीत सिंह, भूकादेवरी, खुमान सिंह गौंड जैसे ही कुछ ही नाम है, जिनका नाम इतिहास में दर्ज हैं।1858 में रामगढ़ की रानी के विरुद्ध मुकदमा चलाने का आदेश वाला डिप्टी कमिश्नर, वाडिंगटन का पत्र भी इस संग्रहालय में संरक्षित है।