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उर्दू को धर्म से जोड़ना सही नहीं : राम नाईक

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Ram Nayik

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने बुधवार को यहां कहा कि उर्दू भाषा में जोश, मिठास और अपना जलवा है। उर्दू को धर्म से जोड़ना ठीक नहीं है।

नाईक बुधवार को लखनऊ विश्वविद्यालय के मालवीय सभागार में अपनी पुस्तक ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ के उर्दू संस्करण पर आयोजित चर्चा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा, ‘उर्दू को उसका पूरा सम्मान मिले। संस्कृत सभी भारतीय भाषाओं की जननी और हिंदी बड़ी बहन। हिंदी के बाद उर्दू सबसे ज्यादा बोली और समझी जाने वाली भाषा है।’

राज्यपाल ने कहा, ‘अगले कुलपति सम्मेलन में उर्दू को विश्वविद्यालय स्तर पर उचित स्थान दिलाने हेतु गंभीरता से विचार किया जायेगा ताकि उर्दू का लाभ मिल सके।’ उन्होंने यह भी कहा कि उर्दू उत्तर प्रदेश की दूसरी सरकारी भाषा है। वे इस बारे में सरकार को विचार करने के लिये लिखेंगे कि उर्दू को और व्यवहारिक बनाया जाये। वह यह भी सुनिश्चित करेंगे कि उनका वार्षिक कार्यवृत्त उर्दू में भी प्रकाशित हो।

नाईक ने कहा, ‘मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि लेखक बनूंगा। यह भी नहीं सोचा था कि उत्तर प्रदेश का राज्यपाल बनूंगा। ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ का उर्दू अनुवाद होगा और यह भी नहीं सोचा था।’

लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एसपी सिंह ने कहा, ‘चरैवेति! चरैवेति!!’ इंसानों को जिंदगी का रास्ता दिखाने वाली पुस्तक है। पुस्तक में युवाओं के लिए गुरूमंत्र है, जिसमें नामुनकिन जैसा कोई शब्द नहीं है।’

प्रो. फजले इमाम के मुताबिक, ‘किताब में राज्यपाल राम नाईक ने बीते हुये समय की बातें बड़ी बेबाकी से रखी हैं। किताब जीवन जीने का सलीखा सिखाती है। मानवीय जीवन पर आधारित उनकी पुस्तक समाज सेवा के प्रति समर्पित है। उन्होंने कहा कि राज्यपाल राम नाईक बेबाक कलमकार हंै।’

अम्मार रिजवी ने राज्यपाल की पुस्तक वर्तमान में राजनीति करने वालों के लिये एक सबक बताया। कहा, ‘इस यह पुस्तक भाषा, विचार और स्वीकार्यता की ²ष्टि से मुक्कमल है।’ जबकि प्रो. आसिफा जमानी ने कहा, ‘राज्यपाल ने समाज सेवा करके अपने व्यक्तित्व की पहचान बनायी। दो बार मौत को शिकस्त देकर उन्होंने तीसरी जिंदगी पायी है, इसलिये वे लौहपुरूष जैसे हैं।’

 

अनवर जलालपुरी ने कहा, ‘राम नाईक ने कर्म के दर्शन को अपने जीवन में उतारा है। कैंसर पर जीत पाना उनसे सीखा जा सकता है, क्योंकि उनके शब्द कोष में मायूसी जैसा कोई शब्द नहीं है। राज्यपाल ने अपने जीवन में कभी अपने आदर्श से समझौता नहीं किया।’

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