नई दिल्ली। सेमी फाइनल में विदर्भ की जीत के हीरो रहे रजनीश गुरबानी एक बार फिर सुर्खियों में है। दरअसल रणजी ट्रॉफी के खिताबी मुकाबले में एक बार फिर उनकी गेंदबाजी बल्लेबाजों के लिए खौफ का केंद्र बन गई है।
दिल्ली और विदर्भ के बीच खेले जा रहे पांच दिनी रणजी ट्रॉफी फाइनल के मुकाबले के दूसरे दिन शनिवार को सुबह-सुबह इस गेंदबाज का कहर दिल्ली पर टूटा है। इस फाइनल मुकाबले में विदर्भ के इस गेंदबाज ने हैट्रिक लेकर दिल्ली के बल्लेबाजों की कमर तोड़ दी है। रणजी ट्रॉफी के इतिहास में नये गेंदबाज बन गए है।
इस तरह से रणजी ट्रॉफी टूर्नामेंट के करीब 83 साल के इतिहास में बनने वाली कुल 74वीं हैट्रिक रही। रणजी ट्रॉफी के इतिहास में पहली बार किसी गेंदबाज ने यह कारणामा साल 1934-35 में उत्तर भारत के बागा जिलानी ने साउदर्न पंजाब के खिलाफ किया था। यह भी एक रोचक है कि रजनीश गुरबानी की यह हैट्रिक करीब आठ दशकों केवल दूसरी बार आई है। बता दें कि 34 साल बाद किसी गेंदबाज ने रणजी ट्रॉफी के इतिहास में इस तरह का कारनामा किया है।
होल्कर स्टेडियम में चल रहे खिताबी मुकाबले में रजनीश गुरबानी ने दिल्ली के शतकवीर धु्रव शौरी को पावेलियन की राह दिखाकर अपनी हैट्रिक पूरी कर ली जबकि इससे पूर्व उन्होंने अपनी दो गेंदों पर विकास और नवदीप को आउट कर सबकों चौंका दिया।
विदर्भ को पहली बार रणजी ट्रॉफी के फाइनल में पहुंचाने वाले तेज गेंदबाज रजनीश गुरबानी ने गुरुवार को कहा था कि उन्होंने जब अपने कोच चंद्रकांत पंडित को खुश देखा तो वह खुद भावुक हो गए थे। गुरबानी ने दूसरे सेमीफाइनल में कर्नाटक के खिलाफ 12 विकेट लेते हुए अपनी टीम को फाइनल में जगह दिलाई। मैच के बाद उन्होंने कहा, अंतिम विकेट लेने और चंदू सर की प्रतिक्रिया देखने के बाद मैं काफी भावुक हो गया था।
गुरबानी ने कहा, था कि मैं पूरी रात काफी घबराया हुआ था। पहले मैं 12: 30 बजे उठा, मुझे लगा कि सुबह के छह बज गए हैं। इसके बाद में 4: 30 बजे उठा और इसके बाद मैं सो नहीं सका। पांच बजे उठकर मैं तैयार होने लगा और छह बजे तक तैयार हो गया। दो बार क्वार्टर फाइनल में मात खाने के बाद इस साल हम फाइनल खेलने को लेकर काफी प्रतिबद्ध थे।
गुरबानी ने सीविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है। उन्होंने अपना पहला लिस्ट-ए मैच बीई के आखिरी सेमेस्टर को 80 प्रतिशत के साथ पास करने के बाद खेला था। उन्होंने कहा, कि जब मैं मैदान पर गया तो कोच ने मुझे प्रोत्साहन दिया और किसी तरह मुझे शांत किया। मैदान के अंदर जब विकेट नहीं मिल रहे थे तो मुझे काफी परेशानी हो रही थी। इसके बाद मेरे सीनियर खिलाडय़िों, कप्तान और चंदू सर ने मुझे शांत रहने को कहा। इस युवा गेंदबाज ने कहा कि भारतीय टीम के लिए खेलने वाले उमेश यादव के टीम में रहने से उन्हें काफी मदद मिली। उन्होंने कहा, “उमेश यादव के रहने से मुझे काफी मदद मिली। उमेश भईया के साथ गेंदबाजी की शुरुआत करना मेरे लिए सपने के सच होने जैसा है। वह एक छोर से गेंदबाजी कर रहे थे और मैं उन्हें देख रहा था। वह मेरे प्ररेणास्त्रोत हैं और पसंदीदा गेंदबाज भी।”