National

बजट से बच्चों को भी हैं काफी उम्मीदें

Construction site crane building a blue 3D text. Part of a series.

 

Construction site crane building a blue 3D text. Part of a series.

नई दिल्ली | भारत की आबादी का 40 फीसदी हिस्सा बच्चों का है और इनकी संख्या 40 करोड़ से ज्यादा है, इसलिए सरकार को बच्चों के लिए बजट में कटौती नहीं करनी चाहिए। यह कहना है बच्चों से जुड़ी संस्था क्राई का। चाइल्ड राट्स एंड यू यानी क्राई का कहना है कि सरकार साल दर साल बच्चों के बजट में कटौती कर रही है। साल 2014-15 में कुल बजट में बच्चों के हिस्से में 81,075.26 करोड़ रुपये की कटौती की गई थी। वहीं, 2015-16 के दौरान इसमें 57,918.51 करोड़ रुपये की कटौती की गई।

संस्था के मुताबिक, 14वें वित्त आयोग की अनुशंसा में कहा गया है कि बच्चों के बजट में केंद्र का अनुपात घटाकर राज्यों का बढ़ा दिया गया। लेकिन यह स्पष्ट है कि राज्यों के पास इस मद में खर्च करने के लिए पैसों की कमी है। संस्था की मांग है कि बाल विकास योजनाओं में खर्च बढ़ाया जाए। आंगनवाड़ी केंद्रों को मजबूत किया जाए। आंगनवाड़ी के 15,246 सुपरवाइजर और 83,243 हेल्पर के पद रिक्त पड़े हैं, जिन पर जल्द नियुक्ति करने की जरूरत है। इसलिए बजट में कौशलयुक्त मानव संसाधन पर निवेश बढ़ाने की जरूरत है।

क्राई के मुताबिक, देश के बच्चों में 40 फीसदी से ज्यादा 5 साल से कम उम्र के बच्चे भूख और कुपोषण से पीड़ित हैं। इसलिए बजट में उन पर भी ध्यान देने की जरूरत है। बच्चों के टीकाकरण कार्यक्रम में खर्च बढ़ाने की जरूरत है। शिक्षा का अधिकार (आरटीई) 2009 में लागू हुआ था और इसके 5 साल पूरे होने को हैं, लेकिन इसके लक्ष्य को अभी भी पूरा नहीं किया जा सका है। देश भर के स्कूलों की हालत बदहाल है। बिहार के 34 फीसदी और झारखंड के 54 फीसदी स्कूलों में बिजली नहीं है। इसके लिए बजट में विशेष व्यवस्था करने की जरूरत है। साथ ही योग्य शिक्षकों पर निवेश बढ़ाने की जरूरत है।

आरटीई के मानदंडों पर 9 लाख से ज्यादा शिक्षक खड़े नहीं उतरते हैं। आरटीई के अगले चरण में शिक्षण की गुणवत्ता पर ध्यान देने की जरूरत है। पिछले बजट (2015-16) में सरकार ने मिड डे मील पर किए जाने वाले खर्च में 7,811 करोड़ रुपये की कटौती की थी जो कि पिछले साल 41 फीसदी कम था। इसलिए संस्था को उम्मीद है कि इस बजट में सरकार इस मद में खर्च बढ़ाएगी। बच्चों के खिलाफ बढ़ते अपराध के रोकथाम पर भी ध्यान देने की जरूरत है। साल 2013 से बच्चों के खिलाफ अपराध में 53 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इसके लिए ग्रामीण स्तर तक एक मजबूत बाल सुरक्षा प्रणाली स्थापित करने की जरूरत है। इसके लिए अलग से धन का प्रबंध करना चाहिए।

बाल श्रम हमारे देश की बड़ी समस्या है। 14 साल से कम उम्र के 10.13 लाख बच्चे और 15 से 18 साल की उम्र के 22.87 लाख बच्चे मजदूरी में लगे हैं। इस आयु समूह को बाल श्रम और दूसरे किस्म के अत्याचारों से निकालने के लिए संसाधनों में भारी निवेश की आवश्यकता है। माध्यमिक शिक्षा में निवेश बढ़ाने की जरूरत है, ताकि स्कूलों से पढ़ाई बीच में छोड़ने की दर घटाई जा सके। देश के 27 प्रतिशत अनुसूचित जाति के बच्चे और 24 प्रतिशत मुस्लिम बच्चे कक्षा 8 के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं। बाल विवाह एक दूसरी बड़ी समस्या है। हर सात में एक बच्ची की शादी 15 से 18 साल के बीच हो जाती है।

इसका नतीजा यह होता है कि बड़ी संख्या में बच्चियां खून की कमी से पीड़ित हैं। कम उम्र में शादी की गई 30 प्रतिशत बच्चियां कम उम्र में मां बन जाती है और उनके एक से अधिक बच्चे होते हैं, जिसका नतीजा है कि वे कमजोरी समेत कई शारीरिक बीमारियों का शिकार हो जाती हैं। बाल विवाह रोकथाम कानून के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए बजट में खासतौर से प्रबंध करना चाहिए और इसे प्रत्येक गांव तक लागू करना होगा। क्राई का कहना है कि सरकार को पॉस्को (यौन अपराध के खिलाफ बच्चों का संरक्षण कानून 2012) में निवेश बढ़ाना चाहिए, ताकि बच्चों के खिलाफ अपराधों को रोका जा सके। इसके तहत बच्चों के लिए विशेष अदालत और उनके हित में प्रणाली और संस्थागत ढांचा तैयार करना चाहिए।

=>
=>
loading...