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‘चीन ने भारत के रणनीतिक क्षेत्र को किया प्रभावित’

नई दिल्ली, 27 फरवरी (आईएएनएस)| चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने राष्ट्रपति शी जिनपिंग के लिए राष्ट्रपति की पारंपरिक दो कार्यकाल की परंपरा से आगे का मार्ग प्रशस्त करने के लिए देश के संविधान में संशोधन किया है। देश के एक प्रमुख चीनी विशेषज्ञ और बीजिंग में तैनात पूर्व राजदूत का कहना है कि चीन की प्रमुख बेल्ड एंट रोड पहल (बीआरआई) एक इसके क्षेत्रीय और वैश्विक विस्तार की रणनीतिक शुरुआत है, जिसका ‘अनिवार्य रूप से भारत के रणनीतिक क्षेत्र में टकराव’ होगा।

इंस्टीट्यूट ऑफ चाइनीज स्टडीज के निदेशक और चीन में भारत के पूर्व राजदूत अशोक कंठ ने चीन के ‘बेल्ट ऑफ रोड पहल : प्रकृति, प्रभाव और भारत का जवाब’ पर यहां सोमवार शाम को एक भाषण में कहा, बीआरआई को पहले वन बेल्ट वन रोड कहा जाता था और चीन ने इसे आधुनिक युग के अतर्राष्ट्रीय व्यापार मार्ग के लिए पुराने सिल्क रूट को पुनर्जीवित करने का आह्वान करार दिया है।

यह राष्ट्रपति शी की एक महत्वाकांक्षी योजना है, जिस पर 1,000 अरब डॉलर खर्च किया जा रहा है। इस योजना की आधिकारिक रूप से 2015 में शुरुआत की गई और इसमें अब तक 70 देशों ने भाग लिया है।

यह भाषण ‘चेंजिंग एशिया’ व्याख्यान श्रृंखला का हिस्सा था, जिसे सोसाइटी फॉर पॉलिसी स्टडीज थिंक टैंक ने इंडिया हैबिटेट सेंटर के साथ मिलकर आयोजित किया था।

पूर्व डिप्लोमैट ने कहा, चीन अब एक आर्थिक रूप से समृद्ध और सैन्य रूप से मजबूत राष्ट्र की 19वीं शताब्दी के उद्देश्य की खोज में अपनी परिधि में अपने आसपास को आकार दे रहा है।

उन्होंने कहा कि चीन भारत के रणनीतिक क्षेत्र पर असर डाल रहा है और भारत के रणनीतिक और परिचालन वातावरण को महत्वपूर्ण तरीके से बदलकर रख देगा।

भारत ने अब बीआरआई पहल में शामिल होने से इनकार किया है और इसे अपनी सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता के लिए खतरा करार दिया है।

कंठ ने कहा, चीन भारत के हितों और चिंताओं पर विचार करने के लिए सहमत हुआ है। इसलिए भारत को बीआरआई को एक भू-राजनैतिक चुनौती के रूप में देखना चाहिए और मित्र देशों के साथ मिलकर क्षेत्र की सुरक्षा के लिए काम करना चाहिए, क्योंकि अब और अधिक देश बीआरआई परियोजना के स्वामित्व, वित्तीय मदद और दीर्घकालिक व्यवहार्यता पर सवाल उठा रहे हैं।

उन्होंने कहा, बीआरआई चीन की एक महाशक्ति के रूप में उदय और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर हावी होने की कोशिश है।

उनके मुताबिक, यह निकट भविष्य में हमारी विदेश नीति के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक होगी।

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