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पॉलिथीन में आंत रख भटकने को मजबूर है सात गोलियां झेलने वाला जवान

नई दिल्ली। जो दुश्मन की साथ गोलियां खाकर भी मैदान में डटा रहा और हार नहीं मानी, उसे सरकारी सिस्टम से हार माननी पड़ी। हम बात कर रहे है सीआरपीएफ जवान मनोज तोमर की। मनोज मार्च 2014 में छत्तीसगढ़ की झीरम घाटी में नक्सली मुठभेड़ में गंभीर रूप से घायल हो गए थे। पेट में सात गोलियां लगीं। बावजूद इसके वह दुश्मनों से मुकाबला करते रहे। वही मनोज अब इलाज के अभाव में मनोज पेट से बाहर निकली आंत पॉलीथिन में लपेटकर इधर-उधर भटकने को मजबूर हैं। उनकी आंख की रौशनी भी चली गई है लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। इसका इलाज संभव है लेकिन पैसों की कमी के चलते मनोज अपना इलाज नहीं करवा पा रहे हैं। सरकार भी उनकी नहीं सुन रही है। मनोज प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और मुख्यमंत्री तक से गुहार लगा चुके हैं लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई है।

मनोज को केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह से 5 लाख रुपए की सहायता का आश्वासन भी मिला, लेकिन मदद आज तक नहीं मिल पाई। विशेषज्ञों द्वारा ऑपरेशन किए जाने के बाद मनोज की आंत पेट में रखी जा सकती हैं, वे सामान्य जिंदगी जी सकते हैं। आंख की रोशनी भी लौट सकती है लेकिन दोनों के इलाज का संभावित खर्च 5 से 7 लाख रुपए है। इसकी व्यवस्था निजी स्तर पर कर पाना उनके लिए मुश्किल हो रहा है। सीआरपीएफ भी नियमानुसार केवल अनुबंधित अस्पताल में इलाज करवा सकता है लेकिन किसी अन्य अस्पताल में इलाज का खर्च संबंधित जवान को ही उठाना पड़ता है।

मनोज के मुताबिक उनकी शिकायत सीआरपीएफ से नहीं है बल्कि सरकार और उसके नियमों से है। नियम कहता है कि वे छत्तीसगढ़ में ड्यूटी के दौरान जख्मी हुए थे इसलिए उनका उपचार अनुबंधित रायपुर के नारायणा अस्पताल में ही होगा। सिर्फ सरकार ही एम्स में आंत के ऑपरेशन और चेन्नई में आंख के ऑपरेशन का इंतजाम करवा सकती है, जो नहीं हो रहा है।

बता दें कि नवम्बर 2014 में सुकमा जिले के तोंगपाल थाना में मनोज सुबह 8 बजे अपनी टीम के साथ झीरम घाटी की ओर जा रहे थे, तभी घात लगाए बैठे 350-400 नक्सलियों ने अचानक से हमला बोल दिया। जिसमें 11 सीआरपीएफ के जवान और 6 छत्तीसगढ़ पुलिस के जवान शहीद हो गए थे। इस हमले में केवल मनोज तोमर ही जिंदा बचे थे। मनोज 8 साल तक पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सुरक्षा टीम में एसपीजी कमांडो रहे है।

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BRIJESH SINGH
the authorBRIJESH SINGH