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‘भारत में पाकिस्तान जैसी ही है अल्पसंख्यकों की स्थिति’

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इस्लामाबाद | पाकिस्तान के एक अखबार ने लिखा है कि धार्मिक अल्पसंख्यकों को उनके साथ होने वाले अपराध के समय उन्हें सुरक्षा और न्याय दिलाने में भारत लंबे समय से जूझ रहा है और इससे देश में आम माफी जैसा एक माहौल बन गया है। अखबार का मानना है कि अल्पसंख्यकों के संदर्भ में भारत की स्थिति पाकिस्तान जैसी ही है, इसलिए उसे अल्पसंख्यकों के अधिकारों में सुधार करना चाहिए। द नेशन समाचार पत्र में ‘राइजिंग इन्टॉलरेंस’ शीर्षक से सोमवार को प्रकाशित संपादकीय में कहा गया कि भारत ने अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता की निगरानी करने वाली अमेरिकी सरकारी संस्था के प्रतिनिधिमंडल को वीजा देने से मना कर दिया है। इससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सवाल खड़े हुए हैं।

संपादकीय के मुताबिक, “भारत का यह कदम इस बात का संकेत देता है कि जो देश अंतर्राष्ट्रीय मंच पर खुद को महाशक्ति के रूप में स्थापित करना चाहता है, वहां अंदरूनी समस्याएं बरकरार हैं। सबसे बड़े लोकतंत्र होने का कोई फायदा लोगों को नहीं मिलेगा अगर वहां अपने धर्म को मानने की स्वतंत्रता जैसे मूलभूत अधिकार का संरक्षण न हो।” संपादकीय में यह भी कहा गया है कि अमेरिका के 34 सांसदों ने भारत सरकार को पत्र लिख कर सलाह दी है कि वह अपने यहां समाज को और भी बहुलवादी बनाए। सांसदों ने पत्र में ‘गोमांस’ के मुद्दे और सिख धर्म को एक पृथक धर्म के रूप में पंजीकृत नहीं करने को धार्मिक स्वतंत्रता के मार्ग की बाधा बताया है। अखबार की नजर में सांसदों की यह पहल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए असहज सवाल खड़ी कर सकती है।

लेख में यह भी कहा गया कि इस मुद्दे पर जब टिप्पणी करने के लिए वाशिंगटन में भारतीय दूतावास से आग्रह किया गया तो वहां से कोई जवाब नहीं मिला। अखबार ने लिखा, ” जेएनयू मामले से निपटने में सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की आलोचना के बाद और भी साफ जाहिर हो रहा है कि सरकार कुछ छिपाना चाह रही है। ” अखबार का कहना है, “यद्यपि जेएनयू का मुद्दा सीधे तौर पर धार्मिक नहीं है, लेकिन कम से कम भी कहें तो इतना तो कह ही सकते हैं कि इस विरोध को लेकर मोदी सरकार का रुख अतिवादी था। किसी भी तरह के विरोध का दमन लोकतांत्रिक माहौल बनाने में सहायक नहीं होता है और इससे सरकार के लिए और अधिक निंदा का अहसास ही पैदा होता है।”

समाचार पत्र का मानना है कि भारत और पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की स्थिति करीब-करीब एक जैसी है। भारत को अल्पसंख्यकों के अधिकार के मामले में स्थिति सुधारनी होगी। अगर दोनों पड़ोसी अपने यहां और अधिक धार्मिक स्वतंत्रता देते हैं तो धार्मिक राष्ट्रवाद से बने माहौल में शत्रुता में भी कमी हो जाएगी। अखबार ने लिखा है कि आज के वैश्विक माहौल को ठीक नहीं कहा जा सकता है क्योंकि एक धर्म के लोगों में दूसरे के प्रति संदेह और विद्वेष बढ़ रहा है। इसलिए एक समुदाय के लोग दूसरे समुदाय से पूरी तरह विमुख न हो जाएं, उससे पहले माहौल में तेजी से बदलाव लाने की जरूरत है और यह शुरुआत विश्व के दो बड़ी आबादी वाले देशों (भारत और पाकिस्तान) से हो तो अर्थपूर्ण होगा।

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