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‘बॉब बिस्वास’ के किरदार में खूब जमे अभिषेक बच्चन, सुजॉय घोष की बेटी ने भी दिखाय कमाल

लखनऊः फिल्म ‘बॉब बिस्वास’ की सीधी ओटीटी पर हो रही रिलीज से पहले अमिताभ बच्चन ट्विटर पर लिखते हैं, “मेरे बेटे, बेटे होने से मेरे उत्तराधिकारी नहीं होंगे। जो मेरे उत्तराधिकारी होंगे, वो मेरे बेटे होंगे।” उनके व्यक्तित्व जैसी ही गूढ़ इन पंक्तियों का अर्थ समझने के लिए आपको फिल्म ‘बॉब बिस्वास’ देखनी होगी। बॉब बिस्वास याद है ना आपको? सुजॉय घोष की नौ साल पहले रिलीज हुई फिल्म ‘कहानी’ का वह किरदार जिसका ‘एक मिनट’ कहना ही दर्शकों को सिहरा देता था। बीमा कंपनी में काम करने वाला और अपने बॉस से बात बात पर डांट खाने वाला बॉब बिस्वास दरअसल भाड़े का हत्यारा है। उसका निशाना अचूक है। चेहरे पर किसी भी तरह का भाव नहीं। कर्म ही उसका धर्म है और कृष्ण पर उसका पक्का विश्वास है।

हिंदी सिनेमा के लिए ‘बॉब बिस्वास’ एक ऐसा प्रयोग है जिसकी बुनियाद पर आने वाले दिनों में कई रोचक कहानियों के बीज पड़ सकते हैं। किसी लोकप्रिय कहानी में प्रसंगवश आने वाले चरित्रों की क्षेपक कथाएं भारतीय लोकसंस्कृति में शुरू से रही हैं। अभी नीरज पांडे ने ऐसा ही एक अधपका प्रयोग अपनी चर्चित वेब सीरीज ‘स्पेशल ऑप्स’ के नायक हिम्मत सिंह को लेकर किया। ‘बॉब बिस्वास’ उस पैमाने पर हिम्मत सिंह पर सीरीज बनाने से बड़ी हिम्मत का काम है। ये विचार फिल्म ‘कहानी’ के निर्देशक सुजॉय घोष के साथ अरसे से रहा और अपने सहायक के तौर पर काम करती रहीं अपनी बेटी दीया की बतौर निर्देशक पहली फिल्म के लिए उन्होंने इसी चरित्र पर सिनेमा बनाने का फैसला किया। फिल्म ‘कहानी’ के लिए सुजॉय घोष को जयंती लाल गडा जैसे निर्माता ने हौसला दिया था और फिल्म ‘बॉब बिस्वास’ के लिए उन्हें मिला शाहरुख खान का साथ। फिल्म शुरू होती है तो परदे पर लिखा आता है, ‘वी लव यू शाहरुख खान’ और वहां से फिल्म पहुंचती है शाहरुख खान के प्रिय शहर कोलकाता में।

कोलकाता का बच्चन परिवार से भी दिल का और खून का रिश्ता है। बड़े बच्चन को वहां दामाद जैसा दुलार मिलता है। अभिषेक को मिलता है घर के नाती जैसा स्नेह। कोलकाता फिल्म ‘बॉब बिस्वास’ में एक किरदार की तरह है। भले सुजॉय ने बदलते समय में बॉब बिस्वास को संदेश की बजाय हक्का नूडल्स खूब खाते दिखाया है लेकिन बॉब बिस्वास की पहचान उसके शहर कोलकाता से है। कालि दा की दुकान से है। घाटों पर लगी सब्जी की दुकानों से है और है एक ऐसे शहर के रूप में जहां के युवा अब भद्रलोक से निकलकर दुनिया पर छा जाना चाहते हैं।

कहानी में यहां अपने पिता के सपनों को पूरा करने के लिए डॉक्टर बनने की दिन रात कोशिशें कर रही एक बेटी है। स्कूल में दादागिरी का शिकार होता एक बेटा है और दफ्तर में अपने बॉस की ललचाती नजरों से परेशान एक बीवी है। बॉब बिस्वास को भी नहीं पता कि ये परिवार उसका है। वह तो अभी अभी कोमा से बाहर आया है। याददाश्त जा चुकी है। उसे कत्ल की सुपारी देने वालों को लगता है कि वह होश में आ गया है तो उनके विरोधियों के होश ठिकाने लगाने का काम भी कर ही लेगा। लेकिन जैसे जैसे उसकी याददाश्त वापस आती है। साथ ही उसका ग्लानिबोध भी लौटता है। उसे लगता है कि ये उसने क्या सब कर दिया अभी तक। चर्च में वह अपने अपराध स्वीकार भी करता है लेकिन फादर बताते हैं कि गुनाह परछाइयों की तरह होते हैं, आसानी से पीछा नहीं छोड़ते। बॉब सुधरना चाहता है। दुनिया उसे सुधरने नहीं देती। गलती अब उसकी कहां हैं?

फिल्म ‘बॉब बिस्वास’ देखा जाए तो पूरी तरह से अभिषेक बच्चन की फिल्म है। पिता ने 58 साल की उम्र में जो सबक फिल्म ‘मोहब्बतें’ से सीखा, वही सबक अभिषेक ‘मनमर्जियां’ करके सीख चुके हैं। 14 साल पहले अभिषेक ने फिल्म ‘गुरु’ से लीक से इतर किरदार करने की हिम्मत बांधी थी। इस पोटली का नया स्वाद है ‘बॉब बिस्वास’। प्रोस्थेटिक, मेकअप, कपड़े, चाल ढाल सब बिल्कुल बॉब बिस्वास जैसी। शुरू के 15-20 मिनट लगते हैं फिल्म को सेट होने में लेकिन, उसके बाद अभिषेक बच्चन आखिर तक नजर नहीं आते और यही इस फिल्म की सबसे बड़ी जीत है। बॉब के अपने बेटे से मिलने स्कूल पहुंचने वाले सीन में अभिषेक का अभिनय इनाम का हकदार है।

फिल्म की कहानी अच्छी है। पटकथा में जगह जगह काफी झोल हैं। हिंदी फिल्में देखने वाला कोई भी दर्शक क्लाइमेक्स में सीन दर सीन पहले ही बता सकता है कि अब क्या होने वाला है, सुजॉय के लेखन ने यहां मात खाई है। संवाद भी हिंदी और बंगाली में दोहराने की जरूरत नहीं थी। लेकिन, अपने पिता की गलतियों को सबक बनाकर सीखा है दीया अन्नपूर्णा घोष ने। फिल्म देखकर लगता नहीं कि इसका कप्तान पहली बार फिल्म निर्देशित कर रहा है। दीया ने अपने पिता के साथ रहकर सिनेमा सीखा है। ये उनकी पहली परीक्षा है और इसमें वह सम्मान सहित अंकों के साथ उत्तीर्ण भी रहीं। जी5 के लिए फिल्म ‘बॉब बिस्वास’ एक टर्निंग प्वाइंट साबित हो सकती है। उसकी ब्रांडिंग का स्तर उठाने में तापसी पन्नू की फिल्म ‘रश्मि रॉकेट’ ने काफी मदद की। अब बारी फिल्म ‘बॉब बिस्वास’ की है।

इस फिल्म में सहायक कलाकरों ने भी कमाल का काम किया है। हक्का नूडल्स बेचने वाले के किरदार में पवबित्रा राहा ने कमाल काम किया है। कालिदा बने परन बंदोपाध्याय का अपना अलग ही आभामंडल है। पुलिस इंस्पेक्टर के रोल में टीना देसाई भी छाप छोड़ने में सफल रहीं। लेकिन, फिल्म का सुखद अहसास है चित्रांगदा सिंह की कैमरे के सामने लंबे अरसे बाद वापसी। प्रौढ़ महिलाओं के किरदारों वाली कहानियों की इन दिनों विश्व सिनेमा में जबर्दस्त मांग है और सुष्मिता सेन, रवीना टंडन और लारा दत्ता जैसी अभिनेत्रियों से वह इस मामले में हमेशा इक्कीस साबित हो सकती हैं।

फिल्म ‘बॉब बिस्वास’ का गीत संगीत औसत है। किशोर कुमार के हिट हिंदी गानों के बांग्ला मूल गीतों का अच्छा प्रयोग फिल्म में किया गया है। लेकिन, इसके अलावा फिल्म तकनीकी रूप से बहुत ही दमदार फिल्म है। गैरिक सरकार का कैमरा यहां दर्शकों को कहानी की नब्ज साधने में चौंकाने वाले तरीके से मदद करता है। उनका कैमरा किरदारों के साथ नहीं है। वह शहर के साथ है। और, कोलकाता की नजर से कहानी को देखता चलता है। यशा रामचंदानी ने फिल्म की गति और अवधि दुरुस्त रखने में बहुत चुस्त चौकस काम किया है।

 

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