राम काज कर हनुमान वापस सागर लांघ लेते हैं। इन कर्मों के कारण वे जग प्रसिद्ध (विश्राव्य) हो गए हैं। युद्धभूमि में भगवान राम और लक्ष्मण पर बार-बार आए संकटों को भी हनुमान ही हरते हैं।
महाभारत में भी वे सत्य का साथ देते हैं और अर्जुन की ध्वजा पर विराजते हैं, इसी कारण उन्हें पार्थध्वज कहा गया। अष्ट सिद्धि और नौ निधियों वाले हनुमान को हनुमान सहस्रनाम में सौ शक्तियों वाला या सौ यज्ञ करने वाला (शतक्रतु) कहा गया है।
हनुमान जी का चरित्र सेवा, समर्पण और त्याग का सर्वोच्च उदाहरण दिखलाई पड़ता है। वे कल्याणस्वरूप (स्वस्तिमान्) हैं। वे राम के भक्तों के परम मित्र (सुहृत) भी हैं।
सीता माता तो उनमें बुद्धि के आठों गुणों की उपस्थिति बताती हैं। सुनने की इच्छा, सुनना, ग्रहण करना, स्मरण रखना, तर्क-वितर्क, सिद्धांत का निश्चय, अर्थ का ज्ञान और तत्त्व को समझना ये आठ बुद्धि के गुण हनुमान जी में हैं।
उनमें करुणा का भाव भी है इसलिए उनका एक नाम कारुण्य है। रामचरितमानस में वे राम से कहते हैं, “सीता कै अति बिपति बिसाला बिनहिं कहें भली दीनदयाला (सीता की विपत्ति बहुत विशाल है, उसे न ही कहूं तो अच्छा है, हे दीनदयाल!)”
भगवान राम भी उनके सहयोग को नहीं भूलते, वे इस बुंदेली लोकगीत में कहते हैं, “सुनो भैया लक्ष्मण, होते न हनुमान तो पाउते न जानकी।” भगवान राम के संकटों का अंत करने वाले संकटमोचक हनुमान सबके संकट हरें।