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चीन और पाकिस्तान के लिए अफ़ग़ानिस्तान का तालिबान पर क़ब्ज़ा खुशखबरी या चिंता का विषय

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चीन और पाकिस्तान दोनों ही उन चुनिंदा देशों में भी शामिल हैं, जिनके दूतावास अफ़गानिस्तान में तालिबान के क़ब्ज़े के बाद भी सक्रिय हैं। एक तरफ़ जहाँ अफ़गानिस्तान से हैरान-परेशान लोगों की चिंताजनक तस्वीरें सामने आ रही है। वहीं, दूसरी तरफ़ चीन और पाकिस्तान का तालिबान के लिए नरम रवैया भी चर्चा का विषय है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक़ अफ़गानिस्तान में शांति प्रक्रिया के लिए नियुक्त दूत ज़ालमे ख़लीज़ाद ने तालिबान से कहा था कि अगर वो बलपूर्वक सत्ता हथियाते हैं, तो उन्हें अंतरराष्ट्रीय मान्यता नहीं मिलेगी। हालाँकि पूरी तरह ऐसा होता नज़र नहीं आ रहा है। कई विशेषज्ञ चीन-पाकिस्तान और तालिबान के बीच इस ‘रोमांस’ पर बिल्कुल हैरान नहीं हैं। वो इसे तालिबान की एक बड़ी ‘कूटनीतिक जीत’ के रूप में देख रहे हैं।

प्रोफ़ेसर गौतम मुखोपाध्याय अफ़गानिस्तान, सीरिया और म्यांमार में भारत के राजदूत रह चुके है। उन्होंने कहा, “चीन का समर्थन मिलने से तालिबान के हौसले ज़रूर बढ़ेंगे और एक तरह से यह उनकी कूटनीतिक जीत भी है लेकिन चीन के लिए इसके ख़तरे भी है।” गौतम मुखोपाध्याय के मुताबिक़, “पाकिस्तान की छवि पहले से ही बहुत ख़राब है और ऐसे में चीन का उसके साथ मिलकर तालिबान को समर्थन देना कुछ हद तक चीन की अपनी छवि ही ख़राब करेगा।”

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