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महिला सशक्तिकरण की एक मिसाल हैं: डॉ. अमृता पटेल

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नई दिल्ली। केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने कुछ दिन पहले राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की पूर्व अध्यक्ष और फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी (एफईएस) की अध्यक्ष डॉ. अमृता पटेल की तारीफ में कहा था कि वह महिला सशक्तिकरण की एक मिसाल हैं लेकिन खुद पटेल मानती हैं कि देश में अभी महिलाओं को आगे लाने के लिए जमीनी स्तर पर काफी कुछ किया जाना बाकी है।

डेयरी उद्योग क्षेत्र में अपने अनुकरणीय योगदान के लिए देश के तीसरे सबसे बड़ा नागरिक अलंकरण-पद्म भूषण से सम्मानित पटेल कहती हैं कि आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मात्र एक औपचारिकता बनकर रह गया है। साल में सिर्फ एक दिन महिलाओं और उनके योगदान को याद किया जाता है। पटेल यह भी मानती हैं कि महिलाओं को सिर्फ विशेष दर्जा या आरक्षण देकर सशक्तिकरण की बातें नहीं हो सकती। जब तक कि उन्हें समाज में ही नहीं बल्कि परिवार में भी स्वयं से जुड़े फैसले लेने का अधिकार नहीं दिया जाएगा, इस तरह की बातें बेमानी रहेंगी।

डॉ. पटेल ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर मीडिया से बताया कि इन दिनों महिलाओं को खूब काफी प्रोत्साहित किया जा रहा है लेकिन उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए जमीनी स्तर पर कुछ ठोस नहीं हुआ है। पटेल ने कहा, महिलाओं के विकास की कुछ बातें कागजी ही रह गई हैं। अभी भी गावों में महिलाएं एनीमिया की समस्या से ग्रसित हैं। कन्या भ्रूण हत्या, लड़कियों को शिक्षा से वंचित रखना, बाल विवाह, किशोरावस्था में गर्भावस्था, प्रसव के दौरान मृत्यु, यौन शोषण, घरेलू हिंसा, लैंगिक असमानता में कितनी कमी आई है। इन सब बातों को लेकर कोई भी आंकड़ें उठाकर देख लें, सच्चाई सामने आ जाएगी।

पटेल कहती हैं कि महिलाओं के स्वास्थ्य और शिक्षा को प्राथमिकता देनी पड़ेगी। यदि एक महिला ही अस्वस्थ और असहज है, तो उसका प्रभाव पूरे परिवार पर पड़ेगा। और अगर एक महिला स्वस्थ और शिक्षित है तो उसका सकारात्मक असर परिवार पर दिखेगा। उन्होंने कहा, एक बात समझने की जरूरत है कि महिलाएं और पुरुष समान नहीं है और समान हो भी नहीं सकते। महिला होना ही अपने आप में एक जिम्मेदारी है। महिलाओं में एक साथ एक ही समय पर तमाम तरह की चीजों को प्रबंधित करने की क्षमता है जो पुरुषों के बस के बाहर है।

तो क्या महिलाओं को सशक्त करने के लिए उन्हें आरक्षण या विशेष दर्जे की जरूरत है? इस पर पटेल ने कहा, इसकी कोई जरूरत नहीं है। महिलाओं को पुरुषों की तरह फैसला लेने का अधिकार देना होगा। उन्हें खुद से जुड़े फैसलों पर राय रखने और फैसला लेने की स्वतंत्रता देनी होगी। आरक्षण से सिर्फ आप समाज में महिलाओं की स्थिति को बढ़ावा दे सकते हैं लेकिन यदि परिवार में ही महिलाओं को फैसले लेने का अधिकार नहीं है तो महिला सशक्तिकरण और महिला दिवस की बातें बेमानी है।

पटेल मानती हैं कि महिलाओं को आरक्षण के लॉलीपॉप की जरूरत नहीं बल्कि उन्हें काबिल बनाने की जरूरत है। बकौल पटेल, हमें उन्हे किसी तरह का लॉलीपॉप नहीं देना है बल्कि उन्हें इस लायक बनाना है कि इसकी जरूरत ही नहीं पड़े। गांवों के पंचायती चुनावों में महिलाओं को आरक्षण दिया गया है लेकिन जो महिलाएं चुनाव में जीतती हैं, वे किसी न किसी क्षेत्रीय नेता की पत्नी या उसके परिवार की सदस्या होती हैं जो एक रबर स्टैम्प बनकर रह जाती हैं। सभी फैसले पुरुष करता है तो इस आरक्षण या सशक्तिरण का क्या लाभ?

डॉ. पटेल ने कहा कि विकास की सही दिशा के लिए शहरी और ग्रामीण महिलाओं के बीच की खाई को भी पाटने की जरूरत है। वह कहती हैं, शहर और गांवों में ही महिलाओं की स्थिति एक-दूसरे से काफी भिन्न है। शहर की एक शिक्षित महिला स्वतंत्र और आत्मनिर्भर है। घर के साथ-साथ कामकाजी भी है और स्वयं से जुड़े फैसले बड़ी आसानी से लेती है। शहर की शिक्षित महिला ग्रामीण इलाकों में जाना पसंद नहीं करती है। मेरा मानना है कि शहर की हर शिक्षित महिला को अपने जीवन में एक बार ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर ग्रामीण महिलाओं की स्थिति में सुधार करने की जरूरत है।

खुद एक सशक्त महिला होकर भी पटेल महिला दिवस को महज एक औपचारिकता मानती हैं। वह कहती हैं कि यह साल के 365 दिनों में से एक दिन ही है, जिसे मात्र महिलाओं की ‘तुष्टिकरण’ के लिए मनाया जा रहा है। पटेल ने कहा, ऐसा करने से आजतक कोई लाभ नहीं हुआ और तब तक नहीं होगा जब तक महिलाओं को हम एक घरेलू औरत की तरह देखते रहेंगे क्योंकि महिला होना ही अपने आप में एक जिम्मेदारी है, जिसे समाज नहीं समझ पा रहा है।

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