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कभी खाने के लिए नहीं थे पैसे, अब है बड़े-बड़े होटलों का मालिक

इंसान के अच्छे कर्म हमेशा उसके साथ रहता है। एक इंसान ने जीवन का बस एक ही मंत्र बनाया- भगवान के बनाये जीव-जंतु की हरसंभव मदद करना। शायद यही वजह से वह आज बड़े-बड़े होटलों का मालिक है। आइये जानते है, इस शख्स के बारे में –

मध्यप्रदेश के इंदौर के समीप ही एक गाँव में रहने वाला ईश्वर यादव के 15 साल की उम्र में किराने की दुकान पर मजदूर के तौर पर नौकरी कर ली। उसे दिन का 100 रु मिलता था जिसमें से वो 30रु का उपयोग उन लोगों के लिए करता था जो बहुत निर्धन होते थे। इसके बाद में उसने एक चाय की दुकान खोल ली। इस चाय की दुकान में सुबह 7 बजे से पहले वो लोगों को चाय और बिस्कुट फ्री में ऑफर करता था। निर्धनों को तो वो दिन में कभी भी वो चाय और बिस्किट दे सकता था।

चाय की दुकान की सफलता के बाद उसने एक सड़क के किनारे ढाबा खोल लिया जिसमें वो अत्यन्त निर्धन या गरीबों को फ्री में खाना खिलाता था। वो ढाबा इतना चल निकला कि लोग 200-250 किमी से दूर उसके ढाबे में खाना खाने आते थे, लेकिन उसके भाग्य में कुछ और ही लिखा था। राज्य सरकार ने उसके ढाबे को गिरा दिया जिसके बाद उसके हाथ मे कुछ नहीं बचा।

इसके बाद वो बहुत गरीब हो गया था। वो गाँव के ही लोगों से 20 या 30रु. मांग कर किसी तरह अपना और परिवार का पेट भरता था। एक दिन रोज कि तरह वो रूपये मांगकर घर आ रहा था कि अचानक से एक निर्धन महिला उसके रास्ते मे आ गयी और उससे पैसे मांगने लगी खाने के लिए।

अपनी मदद करने के आदत से माजबूर उसने वो 30रु में से 10 रु उस महिला को दे दिया बिना कुछ सोचे समझे। जिसके बदले में वो महिला उसे आशीष देते हुए आगे बढ़ गयी। हमेशा दूसरों का भला करते रहने का कर्म और इस महिला वाली घटना के बाद उसका ढाबा दोबारा खुल गया 2 महीने के बाद जिसके बाद उसने दोबारा पीछे मुड़ कर नहीं देखा।

पूरे मध्यप्रदेश में उसका ढाबे का नाम खूब हैं, यहां आम दिनों में ये ढाबा 10 से 15 हज़ारों लोगों को खाना खिलाता है। पर्व के समय ये संख्या बढ़ कर 30 हज़ार तक पहुँच जाती है। सबसे खास बात इस ढाबे के दरवाजे नहीं है वो हमेशा खुले रहते है 24 घण्टे और साल के 365 दिन और निर्धनों के लिए तो उसके ढाबे हमेशा खुले रहते है।

 

 

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