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चुनाव आयोग का नया प्लान ‘एक साल, एक चुनाव’

चुनाव आयोग ने चुनावों पर लगातार बढ़ते खर्च देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के प्‍लान को मद्देनजर रखते हए एक नया विकल्‍प तालश लिया है. आयोग ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की जगह ‘एक साल, एक चुनाव’ का सुझाव दिया है. इस सुझाव के मुताबिक, एक साल में होने वाले सभी चुनाव को एक साथ कराया जा सकता है.

इससे पहले इसी संबंध में लॉ कमिशन ने 24 अप्रैल को चुनाव आयोग को एक खत लिखा था. इसमें चुनाव आयोग से ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को लेकर सुझाव मांगा गया था. जिसके जवाब में चुनाव आयोग ने ‘एक साल, एक चुनाव’ का सुझाव पेश किया है. चुनाव आयोग ने एक साथ चुनाव कराए जाने का समर्थन करते हुए सरकार को क़ानूनी  और वित्तीय समस्याओं से भी अवगत कराया है.

 

एक साथ चुनाव के फायदे-

1-चुनावी चक्र का अंत, जहां हर साल औसतन पांच से ज्यादा राज्यों के चुनाव होते रहते हैं और इसके कारण पार्टियों व चुनावी मशीनरी पर बहुत ज्यादा बोझ पड़ता है.

2-चुनावों पर लगातार बढ़ता खर्च घटेगा. चुनाव के लिए सरकारी कर्मचारियों को बार-बार नहीं भेजना होगा.

3-सुरक्षा संसाधनों/शांतिपूर्ण चुनाव कराने के लिए पुलिसकर्मियों के इस्तेमाल में कमी होगी.

4-कुछ ही समय के लिए चुनावी आचार संहिता लागू होगी जिससे सामान्य सरकारी कामकाज में बार-बार रुकावट नहीं आएगी. जबकि बार-बार चुनाव होने से इस तरह की बाधाएं ज्यादा आती रहती हैं.

5-कम संख्या में चुनाव होने से भ्रष्टाचार पर भी लगाम लगाने में मदद मिलती है और दलालों की संख्या व काले धन में कमी आती है.

6-सरकारी प्रक्रिया बाधित होने के अवसर कम हो जाएंगे.

एक साथ चुनाव के नुक्सान

विविधता और गठबंधन राजनीति का दम घुट जाएगा जबकि इससे लोकतंत्र को मुखरता मिलती है और यह वोटरों के व्यवहार व चुनावी नतीजों को प्रभावित करता हैअगर केंद्र में बहुमत वाली सरकार होती है तो यह राज्यों में सत्ता विरोधी भावना को बेअसर करेगा और केंद्र व राज्यों के रिश्ते मालिक और ग्राहक के हो जाएंगे

प्रादेशिक पार्टियों की भूमिका घट जाएगी

 

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