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पूरे बुदेंलखंड की प्यास बुझा रही हैं हैंडपंप वाली चाचियां

इस तपती हुयी गर्मी में पूरा बुदेंलखंड  पानी की समस्या से जूझ रहा है। यहां के लोग पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रहे हैं। आपको बता दे कि यहाँ चारों तरफ सूखा पड़ा हुआ है। और प्राकृतिक जल स्रोत पूरी तरह से सूख चुके हैं वहीं ट्यूबवेल और हैंडपंप भी जवाब देने लगे हैं। ऐसे में इन गांव वालों के लिए एक आदिवासी महिलाओं का समूह मिसाल बन कर आया है। गांव वालों ने इन्हें नाम दिया है ‘हैंडपंप वाली चाचियां’। तो वहीं कुछ जगह पर लोग इन्हें ‘ट्यूबवेल वाली चाचियां’ के नाम से भी पुकारते हैं।

आपको बता दे की इन महिलाओ ने जो काम करने का बीड़ा उठाया हैं। वो शायद आदमी भी न कर पाए जो ये महिलाये कर कर रही हैं। ये महिलाएं भीषण गर्मी के मौसम में लोगों को राहत पहुंचाने का काम कर रही हैं। पानी की विकराल समस्या वाले बुंदेलखंड क्षेत्र में ये महिलाएं औजार लेकर खुद नलकूपों को ठीक कर रहीं हैं। यह महिलाएं अलग-अलग जगहों पर वो भी पैदल जाकर हैंडपंप सुधारने का काम करती हैं। इनके समूह में 15 आदिवासी महिलाएं हैं।

आपको बता दे कि इन महिलाओं ने यह काम करीब 8-9 साल से कर रहीं हैं। इन महिलाओ ने भोपाल, राजस्थान और राजधानी दिल्ली की कई जगहों पर हैंडपंप ठीक किए हैं। आदिवासी महिलाओं के अनुसार उन्हें इस काम के लिए सरकारी संस्थाओं से किसी भी प्रकार की मदद नहीं मिली है।

महिलाओं का यह समूह छतरपुर के घुवारा तहसील के झिरियाझोर गांव से ताल्लुक रखता है। महिलाओं ने बताया कि- कभी-कभी 50 किमी दूर स्थित गांवों से भी हैंडपंप और ट्यूबवेल की मरम्मत के लिए कॉल आते हैं। तो हम महिलाये तेज धूप और गर्मी की चिंता किए बिना टहलते हुए अपनी मंजिल की ओर निकल पड़ती हैं। खबरों के मुताबिक सूचना देने के बाद सरकार या प्रशासन की ओर से इंजीनियर काफी देर से आते हैं इसलिए लोग हैंडपंप वाली चाचियों से मदद लेने को प्राथमिकता देते हैं।

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