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दिल्ली में 16,500 पेड़ों पर आफत, गर्म है सियासत

नई दिल्ली, 25 जून (आईएएनएस)| दक्षिणी दिल्ली की छह सरकारी कॉलोनियों में पुनर्विकास के नाम पर 16,500 पेड़ों को काटे जाने के फैसले के खिलाफ स्थानीय लोग और पर्यावरणविद् चिपको आंदोलन की तर्ज पर सड़कों पर उतरे और इस मुहिम को नाम दिया ‘सेव 16,500 ट्री ऑफ दिल्ली’। गनीमत रही कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने एनबीसीसी को चार जुलाई तक पेड़ों की कटाई पर रोक लगाने के आदेश दे दिए।

एनबीसीसी यानी राष्ट्रीय भवन निर्माण निगम जिसे इन पेड़ों की कटाई का जिम्मा सौंपा गया है लेकिन पर्यावरणविदों का मानना है कि एनबीसीसी इस काम में दक्ष नहीं है और ये पेड़ केंद्र सरकार की स्मार्ट सिटीज की भेंट चढ़ रहे हैं।

पर्यावरणविद् विक्रांत तोंगाड़ ने आईएएनएस को बताया, यह सब मोदी जी की स्मार्ट सिटी के लिए हो रहा है। किदवई नगर में पहले ही बड़े पैमाने पर पेड़ काटे जा चुके हैं। अब सरोजिनी नगर, नौरोजी नगर जैसी ऑफिसर्स कॉलोनियों में पुनर्विकास के नाम पर 16,500 पेड़ काटे जाने हैं। केंद्र सरकार और डीडीए की इस पुनर्विकास योजना में इन पेड़ों को काटा जाना है। अभी सात ब्लॉक में 16,500 पेड़ों का कटना बाकी हैं, जिसमें से कई हजार पेड़ बीते चार वर्षो में पहले ही काटे जा चुके हैं।

वह कहते हैं, दिल्ली में वायु प्रदूषण चरम पर है। दुनिया के 15 सबसे प्रदूषित शहरों में दिल्ली शीर्ष पर रहा है। दिल्ली गैस चैंबर का पर्यायवाची बन गया है। दक्षिण दिल्ली को सर्वाधिक हरित क्षेत्र माना जाता है, यहां कई पेड़ तो 100 साल से भी अधिक पुराने हैं, जिनमें बरगद, पीपल, नाम, पिलखन, बड़ हैं।

वह सवाल उठाते हुए कहते हैं कि क्यों न इस तरह की योजना बनाई जाए, जिससे पर्यावरण को इतना नुकसान न हो। इस पर नगर योजना (टाउन प्लानिग) विशेषज्ञ कीर्ति पांडेय कहती हैं, ऐसे उपाय भी हैं, जिनसे बड़ी मात्रा में पेड़ों को काटने से बचाया जाए और साथ में विकास भी हो जाए। सरकार समय बचाने के लिए इस तरह की पुनर्विकास योजना को अमलीजामा पहना रही है।

दिल्ली में पेड़ों को बचाने की इस मुहिम के बीच केंद्रीय शहरी एवं विकास मंत्री हरदीप पुरी ने ट्वीट कर लोगों को गुमराह किए जाने की बात कही है, जिस पर विक्रांत कहते हैं, सरकार कह रही है कि हम एक पेड़ के बजाय 10 पेड़ लगाएंगे, लेकिन समस्या यह है कि सरकार इन पेड़ों को कहां लगाएगी। दिल्ली में जगह कहां है? यहां तक कि कूड़ा डालने के लिए जगह नहीं है। दिल्ली मेट्रो ने अपनी परियोजना के तहत जितने पेड़ काटे थे, उसके एक चौथाई भी नहीं लगा पाई है। किदवई नगर में पांच साल से कंस्ट्रशन हो रहा है, जबकि वहां अभी तक प्लांटेशन नहीं हुआ।

वह कहते हैं, सरकार अब तक इन 16,500 में से 1800 पेड़ काट चुकी है।

पेड़ों को बचाने की इस मुहिम में आम आदमी पार्टी भी कूद पड़ी है। इस पर विक्रांत कहते हैं, हमने किसी पार्टी से सहयोग नहीं मांगा है। यह कुछ एनजीओ और स्थानीय लोगों का एक इनिशिएटिव है लेकिन अब हम देख रहे हैं कि इस मूवमेंट को कैप्चर करने की कोशिश की जा रही है। इसका राजनीतिकरण करना ठीक नहीं है। सिर्फ एक पार्टी नहीं बाकी पार्टियां भी इसमें लगी हुई हैं।

विक्रांत कहते हैं, हमारा कहना सिर्फ इतना है कि पुनर्विकास इस तरह से किया जाए कि कम से कम पेड़ काटे जाए। एक भी पेड़ नहीं कटे, यह संभव नहीं है तो कम से कम नुकसान हो, इतना तो हम कर ही सकते हैं। ग्रेटर नोएडा में मेट्रो ट्रैक बिछाने के दौरान बड़ी तादाद में पेड़ कटने थे लेकिन स्थानीय लोगों के विरोध के बाद उन्होंने अपना रूट थोड़ा सा चेंज किया। सरकार को भी चाहिए कि इस 16,500 की संख्या को कम करे।

वह कहते हैं, सबसे निराशाजनक बात यह है कि सरकार ने कंस्ट्रक्शन कंपनी राष्ट्रीय भवन निर्माण निगम (एनबीसीसी) को पेड़ काटने का जिम्मा सौंपा है लेकिन यह कंपनी इसमें बिल्कुल भी दक्ष नहीं है।

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