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भोपाल गैस त्रासदी के समय के डीएम व एसपी को राहत

जबलपुर, 2 अगस्त (आईएएनएस)| भोपाल गैस त्रासदी के दौरान यूनियन कार्बाइड कंपनी के मालिक वारेन एंडरसन को भगाने के आरोप में तत्कालीन जिलाधिकारी मोती सिह और तत्कालीन पुलिस अधीक्षक स्वराज पुरी को जबलपुर उच्च न्यायालय से बड़ी राहत मिली है। न्यायाधीश एस.के. पालो की एकलपीठ ने भोपाल की अदालत द्वारा जारी उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें दोनों के खिलाफ परिवाद दर्ज कराने को कहा गया है। भोपाल गैस त्रासदी के दौरान तत्कालीन जिलाधिकारी मोती सिह तथा तत्कालीन पुलिस आीक्षक स्वराज पुरी की तरफ से दायर पुनरीक्षण याचिका में कहा गया कि दो दिसंबर, 1984 की देर रात को यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में हुए रिसाव के कारण 3800 से अधिक लोगों की जान गई थी और 18 हजार से अािक लोग घायल हुए थे। इसी तरह करीब 10 हजार लोग विकलांग हो गए थे।

याचिकाकर्ता के अािवक्ता ए.पी. सिंह ने बताया कि इस मामले को लेकर भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के समन्यवक अब्दुल जब्बार और अािवक्ता शहनवाज खान ने भोपाल के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत में परिवाद दायर करके आरोप लगाया था कि यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के मालिक वारेन एंडरसन को भगाने में याचिकाकर्ता तत्कालीन पुलिस अधीक्षक स्वराज पुरी और तत्कालीन जिलाधिकारी मोती सिह की अहम भूमिका थी। इसलिए उनके खिलाफ मुकदमा चलाया जाए।

सिंह के मुताबिक, इस परिवाद पर भोपाल सीजेएम की अदालत ने 19 नवंबर, 2016 को भादंवि की धारा 212, 217 और 221 के तहत परिवाद दर्ज करने के निर्देश दिए थे। इसके खिलाफ पुनरीक्षण याचिका उच्च न्यायालय में दायर की गई थी।

याचिकाकर्ता के अािवक्ता ए.पी. सिंह ने बताया कि सुनवाई के दौरान एकलपीठ को बताया गया था कि 26 साल बाद दायर हुए परिवाद पर निचली अदालत ने संज्ञान लिया है, जो कि गलत है। यह परिवाद सिर्फ तत्कालीन जिलाधिकारी मोती सिह की किताब ‘भोपाल गैस त्रासदी का सच’ के अंशों के आधार पर दायर किया गया है।

वारेन एंडरसन को न्यायालय से जमानत मिल गई थी और जमानत की शर्तो में इस बात का जिक्र नहीं था कि अभियुक्त देश से बाहर नहीं जा सकता। दोनों सरकार के जिम्मेदार अधिकारी थे और उन पर कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी थी। अपनी जिम्मेदारी का परिपालन करते हुए उन्होंने वारेन एंडरसन को सुरक्षित हवाईअड्डे तक पहुंचाया था।

उन्होंने बताया कि उच्च न्यायालय की एकलपीठ ने याचिका की सुनवाई के बाद 25 अप्रैल को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। एकलपीठ के बुधवार को आए आदेश में भोपाल न्यायालय में लंबित मामले को खारिज करने के निर्देश दिए गए हैं।

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