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शिवराज हर मुंह में मीठी गोली डालने में माहिर

भोपाल, 7 अगस्त (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश की सियासत में अर्जुन सिंह के बाद संभवत: शिवराज सिंह चौहान दूसरे ऐसे मुख्यमंत्री होंगे, जो हर किसी को संतुष्ट करने में माहिर हैं। उनसे मिलने वाला हर व्यक्ति संतुष्ट नहीं तो नाराज होकर भी नहीं लौटता। शिवराज मांग उठाने वाले के मुंह में ऐसी गोली डाल देते हैं कि वह काफी समय तक अपनी मांग को दोहरा ही नहीं पाता।

राज्य की सियासत में दो ताजा उदाहरण ऐसे हैं, जो इस बात की गवाही देते हैं कि शिवराज मुंह में स्वादिष्ट गोली डालकर मुंह ही बंद करा चुके हैं। पहला मामला अध्यापकों को शिक्षक बनाए जाने का है। शिवराज ने अध्यापकों का शिक्षक कैडर में संविलियन किए जाने का ऐलान किया था। अध्यापकों को लगा कि उनकी मांग मान ली गई है, जब बात सामने आई कि शिक्षक का एक कैडर नहीं किया गया है, बल्कि अध्यापकों का अलग नया कैडर बनाया जा रहा है। अध्यापकों ने इस पर सवाल उठाए, मगर तब तक नए कैडर की सूचना राजपत्र (गजट) में प्रकाशित करवा दिया गया।

अब अध्यापकों से कहा जा रहा है कि अपनी आपत्तियां दीजिए, उसमें सुधार किया जाएगा। सुधार होगा या नहीं, ये कोई नहीं जानता। हो सकता है, तब तक आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू हो जाए और सरकार को नया बहाना मिल जाए।

इसी तरह बुंदेलखंड क्षेत्र के तीन जिलों- छतरपुर, टीकमगढ़ और पन्ना में लंबे अरसे से मेडिकल कॉलेज खोलने की मांग उठ रही है। इस मांग पर दतिया, शिवपुरी सहित अन्य स्थानों पर मेडिकल कॉलेज खोलने का ऐलान तो हुआ ही, अन्य प्रक्रियाएं भी तेजी से बढ़ गईं। दतिया में तो कॉलेज भी बनकर तैयार हो गया है।

दतिया से 25 किलोमीटर दूर झांसी और 70 किलोमीटर दूर ग्वालियर में मेडिकल कॉलेज है, मगर इन तीन जिलों से मेडिकल कॉलेज कम से कम 100 किलोमीटर की दूरी पर है, फिर भी यहां की मांगों को अनसुना किया गया। जब सरकार को लगा कि इस क्षेत्र में उसके खिलाफ माहौल बन रहा है, तो आनन-फानन में सिवनी व छतरपुर में मेडिकल कॉलेज खोलने का कैबिनेट ने फैसला कर दिया। अब सवाल उठ रहा है कि क्या यह घोषणा सिर्फ चुनावी लाभ के लिए की गई है या वाकई सरकार की मंशा यहां के लोगों का दर्द हरने की है!

राजनीतिक विश्लेषक रवींद्र व्यास का कहना है, चुनाव नजदीक है, सरकार या सत्ताधारी दल मतदाता को लुभाने का हर संभव प्रयास करेगा और यह लाजिमी भी है। शिवराज भी वही कर रहे हैं। हां, विपक्ष अपनी भूमिका ठीक तरह से निभा नहीं पा रहा है। वह सरकार की असफलताओं तक को गिनाने में कंजूसी करता है, जबकि सत्तापक्ष अपनी नाकामियों को भी खूबियां बताकर जनता के दिल में जगह बनाए हुए है। किसानों को फसल का उचित दाम नहीं मिला, भावांतर योजना भी कारगर नहीं रही, उसके बावजूद सरकार अपने को किसान हितैषी होने का ढिंढोरा पीट रही है।

मुख्यमंत्री शिवराज इन दिनों जन आशीर्वाद यात्रा पर हैं और आम लोगों की हर समस्या दूर करने का वादा कर रहे हैं। उनका कहना है कि उन्होंने राज्य की सड़कों को अमेरिका से बेहतर बताया तो कांग्रेस को रास नहीं आया, दिग्विजय सिंह नर्मदा का पानी क्षिप्रा में लाने को असंभव बताते थे, उसे संभव कर दिखाया। कांग्रेस ने गुलामी का चश्मा पहन रखा है, इसीलिए उसे विकास नहीं दिखता।

कांग्रेस की प्रदेश चुनाव प्रचार अभियान के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया का कहना है कि मप्र की शिवराज सरकार 14 सालों से विकास का ढिढोरा पीटकर स्वणम प्रदेश का राग आलाप रही है, जबकि जमीनी हकीकत यही है कि प्रदेश के आम नागरिकों तक अभी मूलभूत सुविधाएं भी नहीं पहुंची हैं। आमजन नित नई समस्याओं से जूझ रहे है और सरकार चैन से सो रही है।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने जब शिवराज को ‘डमरू बजाने वाला’ बताया तो शिवराज खुद को मदारी कहने लगे। इन नेताओं की भाषा और शब्दावली सुर्खियां बन जाती हैं, मगर जमीनी हकीकत सामने नहीं आ पाती। यही कारण है कि समस्याएं अनेक हैं, मगर चर्चा में एक भी नहीं। वादे अनेक हैं, मगर पूरे बहुत कम हुए।

क्रिकेट की भाषा में कहें, तो सियासत के मंजे हुए खिलाड़ी एक-दूसरे के खिलाफ गुगली पर गुगली फेंके जा रहे हैं। जनता का शॉट तो चुनाव में ही लगेगा, और तब गेंदबाजों की हकीकत उजागर होगी।

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