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अटल के शब्दों ने जीवन बदला : शिवराज

भोपाल, 17 अगस्त (आईएएनएस)| पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने श्रद्घांजलि अर्पित करते हुए कहा है कि उनके (चौहान) जीवन को वाजपेयी के शब्दों ने बदला है और उन्हीं की प्रेरणा से वह राजनीति में आए। चौहान ने एक ब्लॉग में वाजपेयी को याद करते हुए लिखा है, मैं बचपन से अपने गांव से भोपाल पढ़ने चला आया था। भोपाल में मैंने सुना कि भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी की एक सभा चार बत्ती चौराहे पर है। मैंने सोचा चलो भाषण सुन आएं। अटल जी को जब सुना तो सुनते ही रह गया। ऐसा लग रहा था जैसे कविता उनकी जिह्वा से झर रही है।

चौहान ने लिखा है कि वाजपेयी बोल रहे थे, यह देश केवल जमीन का टुकड़ा नहीं, एक जीता जागता राष्ट्र-पुरुष है। हिमालय इसका मस्तिष्क है, गौरी-शंकर इसकी शिखा हैं, पावस के काले- काले मेघ इसकी केश राशि हैं, दिल्ली दिल है, विंध्यांचल कटि है, नर्मदा करधनी है, पूर्वी घाट और पश्चिमी घाट इसकी दो विशाल जंघाए हैं, कन्याकुमारी इसके पंजे हैं, समुद्र इसके चरण पखारता है, सूरज और चंद्रमा इसकी आरती उतारते हैं, यह वीरों की भूमि है, शूरों की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है, तर्पण की भूमि है, इसका कंकड़-कंकड़ हमारे लिए शंकर है, इसका बिंदु-बिंदु हमारे लिए गंगाजल है, हम जीएंगे तो इसके लिए और कभी मरना पड़ा तो मरेंगे भी इसके लिए और मरने के बाद हमारी अस्थियां भी अगर समुद्र में विसर्जित की जाएंगी तो वहां से भी एक ही आवाज आएगी -भारत माता की जय, भारत माता की जय।

चौहान ने अपने ब्लॉग में आगे लिखा है, इन शब्दों ने मेरा जीवन बदल दिया। राष्ट्र प्रेम की भावना हृदय में कूट-कूट कर भर गई और मैंने फैसला किया कि अब यह जीवन देश के लिए जीना है। यह राजनीति का मेरा पहला पाठ था। इसके बाद से राजनीति में मैं अटल जी को गुरु मानने लगा़, जब भी कभी अटल जी को सुनने का अवसर मिलता, मैं कोई अवसर नहीं चूकता। बचपन में ही भारतीय जनसंघ का सदस्य बन गया और मैं राजनीति में सक्रिय हो गया। आपातकाल में जेल गया, और जेल से निकल कर जनता पार्टी में काम करने लगा, फिर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गया। अटल जी से मेरी पहली व्यक्तिगत बातचीत भोपाल में एक राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान तब हुई, जब मेरी ड्यूटी एक कार्यकर्ता के नाते उनके चाय-नाश्ते की व्यवस्था के लिए की गई।

उन्होंने आगे लिखा, मैं अटल जी के लिए फल, सूखे मेवे इत्यादि दोपहर के विश्राम के बाद खाने के लिए ले गया, तो वह बोले, ‘क्या घास-फूस खाने के लिए ले आए, अरे भाई, कचौड़ी लाओ, समोसे लाओ, पकौड़े लाओ या फाफड़े लाओ’ और तब मैंने उनके लिए नमकीन की व्यवस्था की। एक छोटे से कार्यकर्ता के लिए उनके इतने सहज संवाद ने मेरे मन में उनके प्रति आत्मीयता और आदर का भाव भर दिया। उनके बड़े नेता होने के नाते मेरे मन में जो हिचक थी, वह समाप्त हो गई।

चौहान ने अपने अनुभव को साझा करते हुए लिखा है, 84 के चुनाव में वह ग्वालियर से हार गए थे, लेकिन हारने के बाद उनकी मस्ती और फक्कड़पन देखने के लायक था। जब वह भोपाल आए तो उन्होंने हंसते हुए मुझे कहा, ‘अरे शिवराज, अब मैं भी बेरोजगार हो गया हूं। 1991 में उन्होंने विदिशा और लखनऊ, दो जगह से लोकसभा का चुनाव लड़ा, और यह तय किया कि जहां से ज्यादा मतों से चुनाव जीतेंगे, वह सीट अपने पास रखेंगे। मैं उस समय उसी संसदीय क्षेत्र की बुधनी सीट से विधायक था। बुधनी विधानसभा में चुनाव प्रचार की जिम्मेदारी तो मेरी थी ही, लेकिन युवा मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते, मुझे पूरे संसदीय क्षेत्र में काम करने का मौका मिला था।

उन्होंने कहा, उस समय अटल जी से और निकट के रिश्ते बन गए। जब मैं उनके प्रतिद्वंद्वी से उनकी तुलना करते हुए भाषण देता था, तो मेरे एक वाक्य पर वह बहुत हंसते थे। मैं कहता था कि कहां मूंछ का बाल और कहां पूंछ का बाल, तो वह हंसते हुए कहते थे ‘क्या कहते हो भाई, इसको छोड़ो’।

चौहान ने लिखा है, विदिशा लोकसभा चुनाव वह एक लाख चार हजार वोटों से जीते और लखनऊ एक लाख सोलह हजार से। ज्यादा वोटों से जीतने के कारण उन्होंने लखनऊ सीट अपने पास रखी और विदिशा रिक्त होने पर मुझे विदिशा से उपचुनाव लड़वाया। उपचुनाव में जीत कर जब मैं उनसे मिलने गया तो उन्होंने मुझे लाड़ से कहा, ‘आओ विदिशा-पति’ और तब से वह जब भी मुझसे मिलते, मुझे विदिशा-पति ही कहते और जब भी मैं विदिशा की कोई छोटी समस्या भी लेकर जाता तो उसे भी वह बड़ी गंभीरता से लेते।

चौहान ने वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव का जिक्र करते हुए लिखा है कि वर्ष 2003 में मध्यप्रदेश में विधानसभा के चुनाव थे। उस समय तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा सूखा राहत के लिए राशि केंद्र सरकार से मांगी जा रही थी। हम भाजपा सांसदों का एक समूह यह सोचता था कि विधानसभा चुनाव आने के पहले यदि यह राशि राज्य शासन को मिलेगी तो सरकार इस राशि का दुरुपयोग चुनाव जीतने के लिए करेगी, इसलिए कई सांसद मिलकर अटल जी, जो उस समय प्रधानमंत्री थे, के पास पहुंचे, और उनसे कहा कि इस समय राज्य सरकार को कोई भी अतिरिक्त राशि देना उचित नहीं होगा, तब अटल जी ने हमें समझाते हुए कहा कि ‘लोकतंत्र में चुनी हुई सरकार किसी भी दल की हो, उस सरकार को मदद करने का कत्र्तव्य केंद्र सरकार का है, इसलिए ऐसे भाव को मन से त्याग दीजिए’।

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